शनिवार, 8 मई 2010

एक गीत

बहुत दिन हुऐ कि कोई नई पोस्ट नहीँ डाली’ - शिकायत वाजिब है। बीमार था भाई, अब शिकायत दूर किये देता हूँ। कुछ और नहीं इस बार अपना ही एक गीत जो जनवरी 2010 में पाखी में छपा है। बहुत दिनों से यही कुछ मित्रों का भी आग्रह था कि भाई अपना भी कुछ डालिये सो पूरा कर रहा हूँ।

- प्रदीप कांत
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राग बसन्त के छेड़ें
या पतझड़ की कथा गढ़ें
प्रीत तुम्ही समझादो ना
खुशी बुने या व्यथा पढ़ें


पहली
बरखा की बूंदे
चुभती हैं शूलों जैसी
यादें आईं बरबस ही
बचपन की भूलों जैसी

थकी हुई सोचों बतलाओ
अब अपनी क्या सज़ा पढ़ें

चेहरा सुबह का उतरा
रंगत साँझ की पीली हैं
कैसे पोंछेगा चकोर
आँखें चन्दा की गीली हैं

पत्तों के मुखड़ों पर जो
अंकित है जो हवा पढ़ें

- प्रदीप कांत
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छाया: प्रदीप कांत