सोमवार, 21 अप्रैल 2014

सुषमा मुनीन्द्र की कहानी

मन मोहने का मूल्य
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 के अन्तर्गत बलात्कार के जुर्म में भजनलाल को दस साल कैद की सजा।
दस हजार की आबादी वाला बदेरा मौके-मौके पर स्तब्ध होता रहा है। कचहरी के इस फैसले पर भिन्न भाव से स्तब्ध हुआ। स्तब्ध यूं कि बदेरा की सरजमीं में जो भी उत्थान - पतन हुये, बलात्कार जैसा प्रसंग पहला है। बदेरा अब तक बेस्ट क्वालिटी टमाटरों के प्रचुर उत्पादन और उच्चतर माध्यमिक विधालय के शत-प्रतिशत परिणाम के लिये ख्यात रहा है। अब बलात्कार के मददेनजर स्थानीय अखबारों की सुर्खी बन एक पृथक किन्तु बड़ी पहचान के रूप में चिनिहत हुआ। टमाटरों पर चर्चा करें तो जब से बदेरा को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के फलस्वरूप एक पुख्ता सड़क नसीब हुर्इ है टमाटर बैलगाड़ी, ट्रैक्टर ट्राली, ट्रक, साइकिल, झौआ बहियों में ल दकर सुदूर क्षेत्रों में आपूर्ति कर रहे हैं। विधालय का यह है होते-होते चार बरस हुये शासकीय हो गया है और तीन सौ रुपिया मासिक पर गुरूजी बने बेरोजगार युवक शासकीय वेतनमान के हकदार हो गये हैं। पहले यहाँ माध्यमिक कक्षायें चलती थीं। मैं चुनाव जीत गया तो स्कूल को सरकारी बनाने में जान लड़ा दूंगा जैसी स्थानीय विधायक की संकल्पना पर  बदेरा के जोशीले बेरोजगार युवकों ने उच्चतर माध्यमिक कक्षायें शुरू की। विधायक ने जान लड़ार्इ अथवा नहीं, विधालय शासकीय हो गया है। आरम्भ  में बदेरा  के युवक कक्षायें लेते थे पर अं ग्रेजी और विज्ञान विषय पढ़ाना उनकी दक्षता में एकदम नहीं था। इस निमित्त तीन बाहरी अध्यापकों को फेकेल्टी में जोड़ा गया। इन्हीं में नया-नया एम. एस-सी. फिजिक्स हुआ भजनलाल प्रकाश में आया। कृतज्ञ बदेरा ने स्वीकार किया भजन गुरूजी से अच्छा भौतिक शास्त्र कोर्इ नहीं पढ़ा सकता। उसी भजन ने बदेरा की लुटिया डुबो दी। शुरुआती दिनों में विधालय प्रबंधन और भजन एक अलिखित समझौते के अनुसार व्यवहार करते थे।
प्रबंधन ने स्पष्ट किया -
''तीन सौ रुपये मासिक मिलेंगे, नहीं भी मिलेंगे।
भजन ने पूंछा ''क्यों मिलेंगे और क्यों नहीं मिलेंगे?
''विधार्थियों की संख्या बढ़ेगी, फीस आयेगी तो मिलेंगे वरना नहीं मिलेंगे।
''मैं सप्ताह में एक-दो बार आ सकता हूँ , नहीं भी आ सकता हूँ ।
सुषमा जी की की कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। यह कहानी मुझे सम्बोधन के महिला कथा विशेषांक में पने को मिली तो मैने मंगा ली। और उन्होने सहर्ष मुझे यह कहानी भिजवा दी। तत्सम में इस बार यही कहानी....। इस पर मैं इतना ही कहूंगा कि बडी रोचक कहानी है और अंत में स्तब्ध करती है। बाकी आप पढ़िये और कहिये।
-    प्रदीप कांत
''क्यों आ सकते हैं, क्यों नहीं आ सकते हैं?
''विधायकजी का आश्वासन है स्कूल सरकारी हो जायेगा इसलिये आ सकता हूँ । पापी पेट के बन्दोबस्त के लिये बेला में मुझे टयूशन करनी होती है, इसलिये नहीं आ सकता हूँ ।
इस आपसी सौहाद्र में विधार्थियों की रुचि-अरुचि नहीं थी। उन्हें ज्ञान अर्जन के बिना उत्तम परिणाम वाली अंक सूचि चाहिये थी जो नकल के जोर पर वे पा लेते थे। स्थानीय गुरुओं की रुचि-अरुचि नहीं थी क्योंकि खेती-किसानी, राजनीति, सटटा-गांजा, मामला-मुकदमा जैसी तिकड़मों के कारण वे स्वयं नियमित उपसिथति नहीं देते थे। बोर्ड परीक्षाओं में शत-प्रतिशत परि णाम जैसी प्रगति का हल्ला ऐसा मचा कि जिले और कस्बा के जो विधार्थी दसवीं और बारहवीं में उत्तीर्ण नहीं हो रहे थे, बदेरा केन्द्र से चान्स मारने लगे। हवा ऐसी बही जब बदेरा की बहू-बेटियां बारहवीं उत्तीर्ण कहाने लगीं। प्रवेश और परीक्षा के मोटे शुल्क ने अध्यापकों का वेतन कुछ उत्साहजनक कर दिया। वेतन वृद्धि  से अध्यापकों ने  उपसिथति बढ़ार्इ। विधार्थियों को नियमितता बढ़ानी पड़ी। सहशिक्षा में कुछ रचनात्मक हो ही जाता है।  छात्राओं के स्कूल बैग से प्रेम पत्र बरामद होने लगे और बदेरा की माताओं को समय रहते छात्राओं के हाथ पीले कर देने जैसा शूल उठने लगा। नजाकत ऐसी प्रवेश, प्रायोगिक फिर लिखित परीक्षाओं में बाहरी छात्र आ ते और आंख मार, आय लव यू बोल, रूमाल फहराकर बदेरा की छात्राओं के दिलों में लहरी जगाकर लौट जाते। छात्रायें एक तरह का गुरूर रखने लगीं कि वे इतनी काबिल जरूर हैं जब डिजाइनर टी शर्ट और भारी जूतों वाले शहरी लड़के उन पर फिदा होते हैं। इन गम्भीरताओं में लिप्त बदेरा को खबर न थी भजन गुरूजी और मिसरी (अंक सूचियों में नाम मिश्री है पर लोग मिसरी कहते हैं तो हमें भी कहना होगा) की आशिकी पुख्ता होकर बलात्कार जैसी ऊँचार्इ को छू लेगी। आरमिभक दिनों में भजन नियमित नहीं आता था। जिस दिन आता पढ़ाकर  बेला लौट जाता।  कभी रुकना पड़ता तो शाला भवन में रुक जाता।  स्कूल सरकारी हुआ तब प्राचार्य ने सख्ती बढ़ा दी --
''आपको अब नियमित होना है।
भजन ने माना ''होना ही है। बदेरा में रहने का इंतजाम कर लूं।
ठौर मिली राम बरन के घर में।
ठिकाना बना मिसरी के दिल में।
मिसरी के बेटे राम जनम और राम दरस बदेरा विधालय से लगभग अस्सी प्रतिशत प्रति वर्ष कबाड़ रहे थे। गृह जिला में विक्रय कर विभाग के बाबू पद से समृद्धि बटोर रहा मिसरी का पति राम बरन सप्ताहांत में बदेरा आ या। राम जनम ने भजन गुरूजी की अनुशंसा की -
''पापा, कुयें से लगा पम्प वाला कमरा गुरूजी को किराये पर दे दो। पम्प कोने में है, बाकी जगह में गुरूजी रह लेंगे। मेरी फिजिक्स अच्छी हो जायेगी। यह बारहवीं का इम्तहान है। नम्बर अच्छे आने चाहिये।
राम बरन ने प्रपंच किया ''मैं यहाँ रहता नहीं हूँ । तुम इस साल, अगले साल राम दरस बाहर प ढ़ने चले जाओगे। तुम्हारी अम्मां यहाँ अकेले होंगी। बाहरी आदमी को रखना ठीक नहीं है।
लैनटर्न थामे कुछ भरमाये कुछ बौराये से गुरूजी और ट्रांजिस्टर से फूटती संगीत लहरी 'शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो ....... मानो गुस्ताखी का हौसला दे रही थी। मिसरी को लगा एकांत की एक पीड़ा होती है। वह अपने परिवार में खूब खुश, खूब तुष्ट है जो दरअसल खुश और तुष्ट होना नहीं है।
इधर भजन का  अनुमान लें तो जवान  खून  नहीं था तो तुरंत जोश पकड़ता, उसके भीतर एक लरज, एक धुकधुकी जरूर प्रस्फुटित हो गर्इ। लगा परिवार के संदर्भ में जो सुख है वह है पर उसके समानान्तर जरा सी उमंग, जरा सी दिलचस्पी बने तो जनम सफल हो जाये। जल्द ही साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय हुआ - एक दूसरे पर दावेदारी न करते हुये दोनों प्रेम अपने-अपने परिवार से करेंगे। कभी-कभी कौतूहल पा लेंगे।
मिसरी हर हाल में बेटों की किस्मत बनाना चाहती थी, बोली -
''यह कैसी बात? तुम जिनके घर में रहते हो, उनके लिये बाहरी ही हो। भरोसा करना पड़ता है।
''भरोसा नहीं होता।
''गुरूजी की स्कूल में कितनी इज्जत है। पढ़ार्इ में मेरी और राम दरस की मदद करेंगे। कुंयें में नहा लेंगे, पम्प वाले कमरे में सो जायेंगे, इतवार और दीगर छुटिटयों में बेला चले जायेंगे। पाप ठीक तो है। कह कर राम जनम ने राम बरन को मना लिया।
विक्रय कर विभाग से प्राप्त अच्छी कमार्इ से निर्मित बदेरा के सबसे आलीशान मकान में भजन की अगुआर्इ हुर्इ। भजन को यह सुजलाम - सुफलाम जगह पसंद आर्इ। चौगान में इंदारा, इंदारे को घेरती हुर्इ श्यामा तुलसी की लहलहाती झाडि़यां, मकान के पीछे आम, आंवला, बेल, चीकू के दरख्तों से सम्पन्न बगीची, दो गायों वाली सार। भजन ने परिसर की सराहना की -
''राम बरनजी, यह खूब खुली जगह है, जिसका आप लोगों ने अच्छा उपयोग किया है।
राम बरन ने शान से मिसरी को निहारा ''मैं यहाँ नहीं रहता हूँ। इंतजाम गृहिणी का है।
बदेरा से अस्सी और तिरासी प्रतिशत लेकर, आगे की पढ़ार्इ के लिये राम जनम और राम दरस के जबलपुर जाने तक मिसरी और भजन में उल्लेखनीय संवाद नहीं हुआ था। आगे कुछ खास कारण नहीं बने, नजदीकियां बन गयीं। स्कूल में मीटिंग थी अत:  भजन देर से लौटा था। देखा, मिसरी तुलसी के पौधों से मंजरी तोड़कर अलग रख रही है। सीधे पल्ले की साड़ी, सिर से सरक जा रहा आंचल, चेहरे पर पड़ती सूर्य की विदा होती संतरी किरणें। मिसरी की जो भी आभा रही हो, भजन को लगा मिसरी को पहली बार देखा है। कहें भली प्रकार पहली बार देखा है। भजन प्रेरित हुआ -
''क्या हो रहा है भौजी?
''मंजरी तोड़ रही हूँ । मंजरी से पौधों की बाढ़ रुकती है।
''हां, पूरा इलाका तुलसी की महक से भरा रहता है।
''औरतें काढ़ा बनाने के लिये यहीं से तुलसी दल ले जाती हैं।
''कहते हैं तुलसी के सात पत्ते मुंह में रख कर परीक्षा दो तो पूरा पर्चा हल हो जाता है। मैं यही करता था।
''हमने भी तुलसी के भरोसे परीच्छा पास की।  जानते हैं तु लसी को चबाना नहीं चाहिये। दोस  होता है।
''दोष नहीं, चबाने से दांतों का इनेमल खराब हो जाता है।
''यह क्या होता है, हमें पता नहीं।
मिसरी ने जिस कौतुक से भजन को देखा, भजन को अपने भीतर कुछ संचार होता जान पड़ा।
तुलसी से हुआ सूत्रपात अबाह में सानी बनाते हुये जोर पकड़ने लगा। भार्इ जान ( गाय-भैंस चराने वाले बूढ़े लगुआ का नाम भार्इ जान कैसे पड़ा नहीं मालूम पर उसके बच्चे भी उसे भार्इ जान कहते हैं) गायों को सानी-पानी देने नहीं आया था।
भार पड़ा मिसरी पर। बदेरा में दोपहर दो से शाम आठ तक विधुत प्रवाह बंद रहता है। मिसरी सानी बनाये अथवा लालटेन पकड़े। उसने इंदारा के पास फाइबर चेयर पर बिराजे, ट्रांजिस्टर थामे फिल्म संगीत सुनते भजन से सहायता मांगी -
''गुरूजी, रोसनी दिखा दें, हम सानी बना लें।
लैनटर्न थामे कुछ भरमाये कुछ बौराये से गुरूजी और ट्रांजिस्टर से फूटती संगीत लहरी 'शाम ढले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो ....... मानो गुस्ताखी का हौसला दे रही थी। मिसरी को लगा एकांत की एक पीड़ा होती है। वह अपने परिवार में खूब खुश, खूब तुष्ट है जो दरअसल खुश और तुष्ट होना नहीं है।
इधर भजन का  अनुमान लें तो जवान  खून  नहीं था तो तुरंत जोश पकड़ता, उसके भीतर एक लरज, एक धुकधुकी जरूर प्रस्फुटित हो गर्इ। लगा परिवार के संदर्भ में जो सुख है वह है पर उसके समानान्तर जरा सी उमंग, जरा सी दिलचस्पी बने तो जनम सफल हो जाये। जल्द ही साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय हुआ - एक दूसरे पर दावेदारी न करते हुये दोनों प्रेम अपने-अपने परिवार से करेंगे। कभी-कभी कौतूहल पा लेंगे।
आशिकी गोपनीय तरीके से सम्पन्न हो रही थी फिर भी खबर मिसरी के घर के रंन्ध्रो से होकर बदेरा में प्रसारित हो गर्इ। काढ़ा के लिये तुलसी लेने आती बहुओं-सासों ने मिसरी के चेहरे में फूले न समाने वाले भाव बरामद किये और बदेरा में गोहार पीट दी। उधर जमाने भर की हांकने जैसी पुरुष  वृति से लाचार भज न ने मित्र समुदाय को चौंका दिया - ''अच्छा वेतनमान और सुरुचि सम् पन्न मकान मलकिनी। बदेरा की आबोहवा बड़ी खूब है।
सुनकर लोगों की रगें तनतनार्इ पर नितांत निजी मामला मानते हुये किसी ने राम  बरन को बताने की झंझट नहीं की। सब कुछ ठीक जा रहा था वह तो क्या कहें राम बरन की चार बहनों में तीसरी सोहागी बदेरा आर्इ और कुटनी टाइप औरतों ने पुषिट कर दी।  सोहागी ने  सेल फोन पर राम बरन को मंत्र दिया -
''राम बरन तुम हम बहनों से छोटे हमारे अकेले भार्इ हो। मिसरी का कुछ ध्यान रखो। मास्टर को सूने घर में रख दिये हो। औरतें कहती हैं गांव का माहौल बिगड़ रहा है।
राम बरन को मिसरी की नैतिकता पर खास आस्था थी। शुरुआती असमंजस के बाद भजन भी राम बरन की गुड बुक में आ गया है। राम जनम और राम दरस को भजन ने इतनी अंग्रेजी पढ़ा दी थी कि जब वे जबलपुर गये उन्हें अड़चन नहीं हुर्इ। यही नहीं प्रवेश के समय साथ जाकर अच्छा नेतृत्व करते हुये प्रवेश संबंधी कागजी खानापूर्ति अंग्रेजी में कर भजन ने राम बरन को अपने विश्वसनीय होने का प्रमाण दे दिया। राम बरन की उपसिथति में यह मिसरी को देखता तक नहीं तो राम बरन को भजन पर संदेह करने जैसी वजह दिखार्इ नहीं दी।
''जीजी, गांव का माहौल बना कब था? जिन औरतों की कहावत सच मान बैठी हो वे फूहड़ मजाक करने के लिये प्रसिद्ध हैं। किसी की इज्जत उतार दें।
राम बरन ने सोहागी की निंदा की लेकिन अधीर  हो गया। एक बात यह है पुरुष उपलब्ध के अलावा अनुपलब्ध  के दीवाने होते हैं। दफ्तर में इस समय तीन महिलायें हैं। दो अधिकारी एक बाबू। बडे़ साहब से लेकर भृत्य तक सभी सज-धज, राजा बाबू बनकर दफ्तर आते हैं कि मैडमों की नजरें उन पर पडे़। बडे़ साहब कहते हैं 'माहौल चुस्त और सकि्रय रखना हो तो हर विभाग में महिलायें होनी चाहिये।
ऐसे में भाजन गुरू भंवरा बन गया हो तो कोर्इ अप्राकृतिक कि्रया न होगी। पर एक दूसरी बात भी है। विभागीय लोग मैडमों पर प्रभाव डालने के लिये मेहनत करते हैं किन्तु चरित्रवती मैडमें किसी को लाभानिवत करती नहीं पायी जातीं। तो मि सरी, भजन को पास क्यों मंडराने देगी? तीसरी बात - नैतिकता और चरित्र विकट मसला है । नैतिकता ने कितनों का ठगा और चरित्र के बनने-बिगड़ने से दास्तान तैयार होती है।  सम्भव है सुगृहिणी प्रेम में मुबितला हो।
राम बरन सप्ताहांत में बदेरा आया। काम खत्म कर रात दस बजे मिसरी शयन कक्ष में आर्इ और राम बरन ने दिल तोड़ने जैसी बात कर दी -
''मिसरी तुम अकेले रहती हो। देखना, भजन पहुँच न बना ले। मिसरी फटफटा गर्इ ''गुरूजी कैसे हैं पता नहीं, पर पता है मैं कैसी हूँ ।
''सुनो तो। दफ्तर में तीन मैडम हैं। बड़े साहब काम-बिना काम उन्हें अपने चैम्बर में बुलाते रहते हैं।
''पटाना चाहते हैं?
''पट जायेगी?
''कोसिस करें।
''भजन कोशिश करे तो मिसरी तुम पट जाओगी?
चेहरा अपने-आप में विश्वसनीय साक्ष्य होता है पर मिसरी को दस बजे वाले अंधेरे की मोहलत मिल गर्इ  ''कोर्इ हाथ लगाकर देखे। खुरपी रखकर सोती हूँ ।
राम बरन ने मान लिया मिसरी चरित्रवती है, बस सतर्कता बतौर भार्इ जान से कह गया -
''भार्इ जान बच्चे यहाँ नहीं रहते, घर का कुछ ध्यान रखा करो।
भार्इ जान के लिये यही मौका था ''अउर सब ठीकय हय किसानजू। गुरूजी हमको जम नहीं रहे हैं।
आरमिभक सावधानी के बाद जब साहस और अराजकता आ जाती है ध्यान नहीं रहता जोगकुजोग इसी धारा पर घटित होते हैं और लपेटे में मनुष्य ही आते हैं। मिसरी और भजन कुछ लापरवाह हो चले थे जबकि राम बरन तेजी से सोच रहा था। बुधवार की गहराती रात आकसिमक थी। शुभ रात्रि सम्पन्न कर भजन मिसरी के घर का दालान वाला मुख्य द्वार खोल अपने कमरे में जाने के लिये निकला और दविश देता राम बरन ठीक सामने था। राम बरन तो सप्ताहांत में आता है और जिस बस से आता है वह बदेरा के पहुँच मार्ग वाले मोड़ से होकर शाम आठ बजे निकल जाती है। भजन के ठीक पीछे खड़ी मिसरी तैंतीस करोड़ देवताओं को सुमिरने लगी और भजन की बुद्धि तत्काल प्रभाव से निलमिबत हो गर्इ।
फिर मिसरी तनिक आगे आर्इ ''इतनी रात को तुम  ......।
''बुरा लगा कि मैं?  राम बरन ने कहा मिसरी से ताड़ा भजन को।
खुरपी रखकर सोने वाली सौम्य से चेहरे वाली मिसरी गुरू का मन मोह रही है और जहीन से चेहरे वाला भजन मानो सुराग दे रहा है।
राम बरन के खून मे तेज उबाल आया कि दोनों का खून कर दे पर वह इन दिनों तेजी से सोच रहा था और अपराधियों को दण्ड देने के लिये अपराधी नहीं बनना चाहिये जैसी सावधानी उसे याद रही। सिथति यह थी तीनों वह नहीं लग रहे थे जो वे थे। दरवाजे के पास एक बिन्दु पर सिमटी मिसरी चालाक औरत लग रही थी, दूसरे बिन्दु पर सफेद हुआ भजन आततायी मर्द और दरवाजे को छेंककर खड़ा राम बरन ऐसा बली, बर्बर बलिक बौराया हुआ पहले कभी नहीं लगा था। वह बारी-बारी से बार-बार दोनों को देखता रहा - 
''क्या हो रहा था?
प्रश्न का जवाब दे भजन और मिसरी इनते निर्लज्ज नहीं थे।
राम बरन प्रहार की सी मुद्रा में मिसरी के इतने करीब जा खड़ा हुआ कि मिसरी सहम कर कुछ पीछे हट गर्इ ।
''मिसरी, गुरू की ऐसी चाह है तो जा रह इसके कब्जे में ।
मिसरी ने नकार में शीश डुलाया।
''नहीं है? तब तो मुझे लगता है अभी-अभी तुम्हारे साथ बलात्कार हुआ है।
मिसरी को एस्केप रूट मिल गया ''नहीं .......... हां ......... मैं बताना चाहती थी गुरूजी परेसान करते हैं।  
मिसरी ने पैतरा बदलकर भजन को साफ तौर पर ठग डाला।
भजन ने अपनी हिफाजत की ''बलात्कार नहीं है।
''कुछ तो है।                                                              
''श्रीमतिजी की सहमति रही। सच की एक अपनी मासूमियत होती है और वह इसी तरह प्रकट हो जाती है।
''साबित करो तो गुरूजी तुम बरी और जिस खुरपी को रखकर मिसरी सोती है उसी से मैं इसकी खाल खींचूंगा।
खाल खींच सकता है यह राम बरन की मुद्रा बता रही थी। मिसरी आतंक से हिल गर्इ  ''बलात्कार है। गुरू परेसान करता है।
राम बरन ने असहाय हुये भजन को घेरा ''इसे त्रिया चरित्र कहते हैं। औरतें लगन लगाती हैं और पकड़े जाने पर कह देती हैं मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे। सुनो गुरू ............।
भजन की बुद्धि कुछ चेष्ट हुर्इ। भाग जाने के लिये दरवाजा खुला था। भजन सुनने के लिये नहीं रुका। वेग से चला और अपने कमरे में बन्द हो गया। बन्द कमरे में आभास मिलता रहा राम बरन, मिसरी को पूरी ताकत से धो-पछार रहा है। भजन ने परिणाम पर कुछ नहीं सोचा। सोचा तो यह सोचा राम बरन, मिसरी को कूट-पीस कर चुप बैठ जायेगा। बतंगड़ बना कर अपना तमाशा नहीं बनायेगा। नहीं सोचा राम बरन रिपोर्ट लिखाने के लिये मिसरी को थाने घसीट ले जायेगा। इन्सपैक्टर गिरफ्तार करने आ पहुंचा तब भी भजन को विश्वास नहीं हुआ मिसरी रिपोर्ट लिखाने जैसी दगाबाजी करेगी। वह अपने बचाव में जो भी बोलना चाहता था, बोला यह -
''यह म्यूचुअल कनसेन्ट (आपसी सामन्जस्य) है।
इन्सपैक्टर ने पुलिसिया ढिठार्इ अपनाते हुए कहा ''ऐसे बता रहे हो, मानो गौर व वाली बात है।
बदेरा मौके-मौके पर स्तब्ध होता रहा है।
भजन की गिरफ्तारी पर स्तब्ध बदेरा ने भजन को क्रोध से देखा और करुणा से -
- बलात्कार नहीं आंट-सांट है।
- कानून को साबूत चाहिये। मिसरी ने कहा कुकर्म हुआ है। मेडिकल जांच में मेल-मिलाप सिद्ध हो गया। गुरूजी चले गये जेल।
- सजा मिसरी को भी मिलनी चाहिये।
- मिली है। सुनते हैं राम बरन ने ऐसा पीटा कि चलते नहीं बनता था।
- देखें, कचहरी क्या फैसला करती है।
बलात्कार जैसे मामले में बड़ी जल्दी फैसला हो जाता है।
पुलिस ने आरोपी भजनलाल को गिरफ्तार कर उसके विरुद्ध धारा 376 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर, मामला न्यायिक विचारण हेतु मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया। मजिस्ट्रेट ने केस अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश को कमिट किया। बेला लिंक कोर्ट में सेशन ट्रायल शुरू हुआ। मिसरी का कलम बन्द बयान, पुलिस, राम बरन, चिकित्सकों के बयान, मेडिकल रिपोर्ट, केमिकल एक्जामिनेशन रिपोर्ट, दोनों पक्ष के वकीलों की जिरह, क्रास क्वेश्चन ............। बर्डन आंफ प्रूफ (सिद्धि का भार) भजन पर। भजन खुद को निर्दोष नहीं साबित कर पाया।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के जुर्म में भजनलाल को दस साल कैद की सजा।
मिसरी गहरी तकलीफ में।
लगा आज की तारीख में बदेरा उजाड़ हो गया है और वह अकेली प्रेत की तरह खामोेशियों में डोल-भटक रही है। जिंदगी ने प्रयोजन खोया, परिवार ने मायने बदल लिये। घर वही है, वही इंदारा, वही तुलसी वृन्द, वही अबाह, वही बगीची, वही खेत पर सब कुछ कितना बदल गया है। वह खुद कितना बदल गर्इ है। लगता नहीं, किसी नकल वाले केन्द्र से नहीं वरन जिला से हायर सेकण्डरी पास तमीज सीखी हुर्इ वही मिसरी है जो रिश्तेदारी में सबसे जहीन और भाग्यशालिनी बहू मानी जाती थी - है तो साधारण रूप रंग की स्कूल पास, कुछ खास दहेज न लार्इ पर भाग्य चमक रहा है। तीस एकड़ खेती की मालकिन। खूब कमाने वाला पति। खूब पढ़ने वाले ऐसे हुसियार दोनों लड़के कि नौकरी पक्की समझो। इतना गहना, ऐसा सुन्दर मकान। ढोलकी बजाने और लोकगीत गाने में यही मिसरी ऐसी तेज रही है कि विवाह वाले घर में द्वार  चार, चढ़ावा जेवनार, कन्यादान, लावा परसना, सप्तपदी, कोहबर ..... 
प्रत्येक इवेंट में गीत गाकर रात पार कर देती थी। टनाटन्न लागय दुलहा तोर बहिनी टनाटन्न लागय .......... जैसी गारी सुन पंगत में बैठे विहंसते समधी कहते ''बदेरा की औरतें टनाटन्न हैं, अपने साथ ले जायेंगे।
पर्यावरण में प्रसन्नता भर देने वाली मिसरी अब घर से नहीं निकलती। औरतें तुलसी लेने नहीं आतीं। नहीं आतीं इंदारा से पानी भरने। बेटे घर नहीं आते। जो घर आराम देता था वह उन्हे अश्लील लगने लगा। घर में उनकी अम्मां रहती थी  अब व्यभिचार में लिप्त हुर्इ औरत रहती है। राम बरन न आता। आता तो फिर-फिर दोहराने लगता ''अखबार में छपी तेरी करतूत के कारण मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। दफ्तर के लोग मुझे दया से देखते हैं, कभी मजाक से। जी करता है तेरा गला दबा दूं  .........।
मिसरी जीना नहीं चाहती थी पर जीने का मोह विकट होता है। रोज रात को प्रार्थना करती सुबह का सूरज न देखे और जब राम बरन गला दबा देने जैसी बात कर मिसरी की पसलियों में चिलक उठने लगती। राम बरन की जो मानसिकता बनती जा रही है, कोर्इ गजब न होगा यदि उसे सोता जान गला रेत दे और शव को बोरे में भर कर बदेरा से लगे पहाड़ पर ले जाकर जला दे कि शिनाक्त न हो। राम बरन की उपसिथति
में मिसरी को नींद न आती। नींद वैसे भी न आती। समय बीत कर भी नहीं बीतता था। दिन कब अस्त होगा? रात कब बीतेगी? शर्म, ग्लानि, दंश और  यातना। मिसरी पस्त हो बिस्तर पर ढह जाती। आंखें मूंद लेती कि कुछ दिखार्इ न दे। मुशिकल यह है आंखें बंद हों तो सिथतियां स्पष्ट दिखने लगती हैं। कितने दृश्य, कितने स्वर, कितनी मुद्रायें, कितने चेहरे, कितनी आंखें। याद आता है राम बरन। बेटे याद आते हैं। भजन गुस्जी भूलते नहीं। कुंयें पर नहा रहे हैं, तुलसी दल खा रहे हैं, मीठा पान ले आये हैं, हंस रहे हैं, बलात्कारी कहे जा रहे हैं, गिरफ्तार हो रहे हैं .........। शर्म, ग्लानि, दंश और यातना। मिसरी इंदारे पर जाकर खड़ी हो जाती। इंदारा मीठे पानी के लिये बदेरा में ख्यात है। अब आत्महत्या का श्राप ढोयेगा। देर तक खड़ी रहती। किसी नतीजे पर न पहुंचती। लौट आती।
दिन शर्म बढ़ा रहे थे।
रातें आतंक फैला रही थीं।
किसी अनपेक्षित तिथि पर भजन की पत्नी नूतन, भजन का सामान लेने बदेरा आर्इ। सामान में रुचि नहीं थी उस पदमिनी को देखना चाहती थी जिसके लिये भजन ने चरित्र खोया। नूतन को देख मिसरी को लगा एक बार फिर वह भजन के साथ रंगे हाथों पकड़ी गर्इ है। भजन का बंद कमरा खोलते हुये मिसरी खुद को जब्त न रख सकी और डहक कर रोने लगी।
नूतन ने अर्थ पकड़ा ''रोकर मुझे शर्मिन्दा मत कीजिये। मेरे दिल पर बद़ा बोझ है। मैं अपासे माफी मांगने आर्इ हूँ । मैं मानती हूँ  बलात्कार हिंसा का सबसे बुरा तरीका है। समाज और परिवार में आपकी बुरी दशा हो गर्इ और लोग मुझे बलात्कारी की पत्नी की तरह देखने लगे हैं। मेरे लिये यह मर जाने वाली बात है। तब भी भजन का झूठ देखिये। कहते है बलात्कार नहीं रजामंदी थी। जो हुआ, हो ही गया। मुझे तकलीफ है भजन झूठ बोल रहे हैं। सच कहती हूँ  मैंने बहुत अभाव देखे हैं। जब हमारी शादी हुर्इ भजन बेरोजगार थे। परिवार चलाने के लिये वे टयूशन करने लगे मैं आंगन बाड़ी में पढ़ाने लगी। अब मैं ठीक-ठाक कमा लेती
हूँ । भजन अच्छा वेतन पा रहे थे। मेरे दोनों बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। हम कुछ सम्मान से जीने लगे थे पर हमारी किस्मत खराब है। आप न रोयें वरना मैं भी रो दूंगी।
नूतन ने भजन की किताबें और कपड़े बांध लिये। फोलिडंग बेड, मसहरी, चार फाइबर चेयर, बर्तन, बाल्टी एक ओर सहेज दिये।
''किसी गरीब को दे दें या पड़ा रहने दें।
नूतन लौट चली। कुछ था उस पतली और लम्बी स्त्री में। मिसरी को लगा जमा ने का सामना फिर भी कर लेती है इसका सामना नहीं कर पा रही है। इच्छा हुर्इ नूतन दबाव बनाकर बार-बार पूछे - आप बता सकती हैं यह बलात्कार था या रजामंदी। बता दीजिये, भजन ने जो कुछ कहा वह सच है या झूठ बोलकर वे आपकी पोजीशन खराब करना चाहते हैं। सच बता कर मेरी मदद कीजिये। पर अत्यन्त दीन भाव में वापस लौटती नूतन शायद एक गिरी हुर्इ औरत से मदद नहीं लेना चाहती। जो भी जज्बा-जुनून बना मिसरी चाहने लगी नूतन थोड़ा सा तोष लेकर वापस जाये। बच्चे अपने नहीं रहे, राम बरन अपना नहीं रहा, घर गांव अपना नहीं रहा फिर किस मोह-महत्व को बचाये रखने के लिये भेद को छिपाया जाये? इस जिंदगी में अब कुछ नहीं रखा, पर झूठे आरोप में गुरूजी की जिंदगी तबाह न हो। खत्म हुआ सम्मान लौटना नहीं, नूतन का सम्मान बचे। बदनामी फिर होगी पर जो हो चुकी है उससे अधिक नहीं होगी। बोझ है दिल पर। किसी सूरत जिया नहीं जाता। तो इस जाती हुर्इ को थोड़ा सा आधार मिले। प्रबल भावना या खास विचार से सम्पन्न होकर नहीं भावनाओं और विचारों से पूरी तरह खाली होकर मिसरी बोली -
''मुझे माफ कर दो।
''आप माफी क्यों मांगे?
''माफ कर दो।
''शर्मिन्दा कर रही हैं।
''मै बहक गर्इ थी।
''रजामंदी?
''आप समझती हैं।
''आपने मेरा बोझ कुछ कम कर दिया। हम लोग समाज में जगह तो खो चुके हैं पर यह बलात्कार नहीं था सुनकर मैं थेड़ी तसल्ली पा रही हूँ ।
''आपसे मिलकर मुझमें हिम्मत आ गर्इ है। मेरा कुछ बनना नहीं है, गुरूजी को बचाना चाहती हूँ ।
''फैसला हो चुका है।
''कोर्इ उपाय नहीं है?
''मैं कानून के बारे में कुछ खास नहीं जानती। अपने वकील से पूंछकर आपको जानकारी दूंगी।
''वकील से बात करना ठीक होगा। मैं भी अपने वकील से अरज-विनती करूंगी।
नूतन के जाते ही मिसरी ने सरकारी वकील का फोन कॉल किया। जानती थी यह काम तत्काल नहीं करेगी तो साहस खो देगी। मिसरी की अरज सुन वकील की इच्छा हुर्इ कहे पियारे को बेगुनाह सिद्ध करने की तड़प है  या उसके बिना देह का दर्द नहीं जा रहा है। पर उसे महिला जान उसने सभ्यता दिखार्इ -
''तो वह झूठा केस था?
''मुझसे गलती हो गर्इ वकील साहब।
''ऐसी गलती जिसे सुधारा नहीं जा सकता।
गुरूजी की जिंदगी का प्रश्न है साहब।
''कुछ नहीं हो सकता।
''मैं बराबर की दोषी हूँ। मुझे सजा मिले, यह तो हो सकता है?
''नहीं हो सकता।
''मैं कितनी परेशान हूँ । कुछ नहीं हो सकता तो सुन लीजिये कुंये में कूदकर जान दे दूंगी।
''यह हो सकता है .........। थोड़ा सम्भला, थोड़ा हंसा वकील ''तमाम चैनलों में देख तो रही है कोर्इ मांडल, कोर्इ नौकरानी, कोर्इ प्रेमिका रजामंदी का खेल लम्बे समय तक खेलती रहती है फिर एक दिन अचानक मीडिया के सामने कूद पड़ती है मेरे साथ अमुक छ: महीने से बलात्कार कर रहा है। बलात्कार ऐसे होता है? कानून, पुलिस, वकील, चैनल महिला को पीडि़त बताने में पूरी ताकत लगा देते हैं और पुरुष बलात्कारी साबित हो जाता है। उसकी न कानून सुनता है, न पुलिस, न मीडिया। आपको क्या सूझी जो अचानक आदर्श जैसी बात ले बैठीं? फजीहत झेल चुकी हैं, फजीहत फिर होगी।
''सुनिये तो .........।
''आप समझ नहीं रही हैं। समझ नहीं रही हैं इसलिये मैं आपको कानून नहीं समझा सकता। फैसला हो चुका है। सजा मिल चुकी है। पुलिस अपना काम कर चुकी है। वह अदालत को क्या बतायेगी उसने सही जाँच नहीं की ? मेरी एक पोजीशन है। जिस केस को मैं जीत चुका हूँ  उसे हार  जाऊँ यह मजाक  जैसी बात है। ......... देखिये हर विभाग में  एक तंत्र होता है, पद्धति होती है, व्यवस्था होती है। कानून आपकी समझ में नहीं आयेगा .........।
कानून मिसरी की समझ में सचमुच नहीं आया।
हुआ तो यह हुआ मीठे पानी के लिये ख्यात इंदारा मिसरी के डूब मरने का श्राप ढो रहा है।
सुषमा मुनीन्द्र
द्वारा श्री एम. के. मिश्र
एडवोकेट
लक्ष्मी मार्केट
रीवा रोड, सतना (म.प्र.)-485001

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