कविताओं से पहले इस सन्दर्भ में रविवार का एक समाचार पढ़ा जाए।
तुर्की कवि नाज़िम हिक़मत को तुर्की ने स्वीकारा
06 जनवरी. अंकारा
तुर्की की सरकार ने निर्णय लिया है कि विश्व-प्रसिद्ध तुर्की कवि नाज़िम हिक़मत को फिर से तुर्की की नागरिकता लौटा दी जाएगी और उन्हें तुर्की का नागरिक कहा जा सकेगा. कम्युनिस्ट विचारधारा का होने के कारण 1951 में नाज़िम हिक़मत से उनकी तुर्की की नागरिकता छीन ली गई थी और उन्हें जेल में ठूँस दिया गया था. नाज़िम हिक़मत की कविताएँ दुनिया की दो सौ से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं. वर्ष तक तुर्की की जेलों में सड़ने के बाद नाज़िम हिक़मत अन्ततः वहाँ से भाग निकले और समुद्र के रास्ते रूस पहुँचे. मास्को में उन्होंने एक रूसी फ़िल्मकार वेरा से विवाह कर लिया और वहीं रहने लगे. 1963 में मास्को में ही उनका देहान्त हो गया.
तुर्की सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि जिस अपराध के कारण उस समय नाज़िम की नागरिकता वापिस ली गई थी, उसे आज तुर्की में अपराध नहीं माना जाता इसलिए सरकार ने उनकी नागरिकता लौटाने का फ़ैसला किया है. तुर्की की सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि यदि नाज़िम हिक़मत के संबंधी चाहें तो नाज़िम के अवशेषों को तुर्की वापिस ला सकते हैं. नाज़िम हिक़मत मास्को में नोवोदेविच कब्रिस्तान में दफ़्न हैं.
हिन्दी में नाज़िम हिक़मत की कविताओं का अनुवाद सबसे पहले 1951-52 में कवि चंद्रबली सिंह ने किये थे और एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराए थे. उसके बाद कवि सोमदत्त ने 1981 में नाज़िम हिक़मत की बहुत सारी कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित कराया.उनके बाद अनिल जनविजय ने उनकी ढेर सारी कविताओं का अनुवाद और उनकी पत्नी वेरा हिक़मत का इन्टरव्यू विपक्ष नामक पत्रिका में छपवाए. तब से अब तक भारत की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में उनकी रचनाओं के अनुवाद और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी .
- www.raviwar.com/dailynews/d198_nazim-hikmet-citizenship-restored-06012009.html
यानि वक्त के साथ अपराध की परिभाषा भी बदल जाती है. एक महान कवि को विचारधारा के कारण उसके जीवन काल में अपराधी सिद्ध कर किया गया और अब, जब उसके कृतित्व का लोहा दुनिया मानने लगी… तो मृत्यु के बाद उसकी नागरिकता लौटाई जाऐगी !
तुर्की के सर्व-श्रेष्ठ कवि नाज़िम हिकमत की अधिकांश रचनाएं कारागार की चहारदीवारियों में ही लिखी गयीं. इस बार पढ़िये उनकी रात्रि 9.10 की कविताएँ. इस श्रंखला का शीर्षक जेल में रात 9.10 बजे बत्ती बुझने के समय से सम्बन्धित है. हिक़मत ने अपनी पत्नी पिराये, जो उनकी दुसरी पत्नी थी, से वायदा किया था कि इन क्षणों में वे सिर्फ़ उसी के बारे में सोचेंगे और उसी को सम्बोधित करके लिखेंगे. उनमें से कुछ कविताएँ यहाँ पर …
24 सितम्बर 1945
सबसे सुन्दर समुद्र
अभी तक लांघा नहीं गया।
सबसे सुन्दर बच्चा
अभी तक बड़ा नहीं हुआ।
सबसे सुन्दर दिन
अभी तक देखे नहीं हमने।
और सुन्दर शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता था
अभी कहे नहीं मैने……
27 अक्टुबर 1945
हम हैं एक सेव का आधा हिस्सा
बाकी का आधा है यह पूरी दुनिया।
हम हैं एक सेव का आधा हिस्सा
बाकी का आधा है हमारे जन।
तुम हो एक सेव का आधा हिस्सा
बाकी का आधा हूँ मैं,
हम दोनो……
4 दिसम्बर 1945
वही पोशाक निकालो जिसमें पहले पहल देखा था मैने तुम्हे,
सुन्दरतम सजो,
सजो वसन्त वृक्षों की तरह…
अपने बालों में लगाओ वह गुलाबी कार्नेशन फूल जो मैने भेजा था जेल से
अपने पत्र में तुम्हे,
उठाओ अपना चूमने काबिल रेखा खिचा चौड़ा गौरा माथा।
आज - टूटी हुई उदास नहीं - हरगिज़ नहीं।
आज नाजिम हिकमत की स्त्री को लगना चाहिये सुंदर
एक बागी़ झण्डे की तरह
-सभी अनुवाद: वीरेन डंगवाल, 'पहल' पुस्तिका - जनवरी-फ़रवरी १९९४ से साभार
4 टिप्पणियां:
prdeep bhai najim hikmat ke bare me bahut achchhi khabar di aapane.
उठाओ अपना चूमने काबिल रेखा खिचा चौड़ा गौरा माथा।
आज - टूटी हुई उदास नहीं - हरगिज़ नहीं।
आज नाजिम हिकमत की स्त्री को लगना चाहिये सुंदर
एक बागी़ झण्डे की तरह
bahut badhiya hai.
dhanywaad.
नाज़िम जैसे कवि को मान्यता जनता देती है।
किसी साहित्यिक सँस्थान के हू इज़ हू उनके लिये मायने नही रखते ना किसी सरकार की मान्यता।
फ़िर भी होश में आयी सत्ता को बधाई।
अशोक भाई,
आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। ये सरकारें नाजिम जैसे जनता के कवि को क्या मान्यता देंगी? और शायद इन्हे होश भी इनकी मज़ी से न आया हो। ये तो नाजिम जैसे कवि के सच्चे शब्द हैं जो जिनकी सच्चाई और खरे अथों का लोहा दुनिया मानती है।
पुनश्च:, गम्भीर टिप्पणी के लिये मैं आपका बेहद आभारी हूँ।
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक
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