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1 अगस्त, 1932 को जन्मी मीना कुमारी का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। उनका असल नाम महज़बीन बानो था। उनकी सफल फिल्मों में परिणीता, शारदा, मिस मेरी, साहिब बीवी और गुलाम, आरती, मैं चुप रहूँगी, दिल एक मंदिर, काजल, फूल और पत्थर जैसी कई बेहतरीन फिल्में शामिल थीं। 1962 में उन्हें ’साहिब बीवी और गुलाम’, ’आरती’ और ’मैं चुप रहूँगी’ के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के सम्मान के लिये नामांकित किया गया जो अपने आप में एक रिकार्ड है। मीनाकुमारी ने 1952 में कमाल अमरोही से शादी की। परंतु यह शादी सफल न हो सकी। मीनाकुमारी ने खुद को शराब में डुबो दिया और एक ज़माने की सफलतम अभिनेत्री अपने ही अंधेरों में खोती चली गई। 1972 में अपनी आखिरी फिल्म "पाक़ीज़ा" की रिलीज के तीन सप्ताह बाद 31 मार्च, 1972 को उनका इंतकाल हो गया।
नई पीढ़ी तो शायद ही जानती हो कि मीनाकुमारी सशक्त अभिनेत्री होने के साथ शायरा भी थीं और "नाज़" तखल्लुस का इस्तेमाल करतीं थीं। कारण जो भी रहा हो पर उनकी शायरी एक लम्बे समय तक लोगों के सामने नहीं आ पाई । उनकी मौत के बाद उनकी डायरियाँ मशहूर गीतकार और निर्देशक गुलज़ार को वसीयत में मिलीं जिन्होंने इनमें से कुछ गज़लों और नज़्मों को बाद में छपवाया। इससे पहले खुद उनकी आवाज़ में उनकी कुछ रचनाओं का एक एलबम "I Write, I Recite" ज़रूर आया था जिसमें संगीत दिया था मशहूर संगीतकार खैयाम ने।
तत्सम मे इस बार मीनाकुमारी की गज़लें..... । मीनाकुमारी की शायरी में उनके अपने नाखुशगवार जीवन का दर्द शिद्दत से महसूस होता है। इन्तज़ार रहेगा कि इन गज़लों की खलिश आपको भी मह्सूस हुई कि नहीं?
1
चाँद तनहा है आस्माँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तनहा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
जिन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जाँ तन्हा
हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे यह जहाँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तनहा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा
जिन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जाँ तन्हा
हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा
जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे यह जहाँ तन्हा
2
रिमझिम- टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम बूँदों में, जहर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते-आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम बूँदों में, जहर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते-आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
3
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वह नाम नहीं होता
जब जुल्फ की कालिख में गुम जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हँस-हँस के जवाँ दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में ईनाम नहीं होता
बहते हुए आँसू ने आँखों से कहा थमकर
जो मय से पिघल जाए वह जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
जब मेरी कहानी में वह नाम नहीं होता
जब जुल्फ की कालिख में गुम जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हँस-हँस के जवाँ दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में ईनाम नहीं होता
बहते हुए आँसू ने आँखों से कहा थमकर
जो मय से पिघल जाए वह जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
4
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीं तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभें काँच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की ज़ुदाई भी अगर होती है
एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती खुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है
दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बेज़ाँ अल्फ़ाज़
तर्ज़मा दर्द की खामोश नज़र होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीं तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभें काँच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की ज़ुदाई भी अगर होती है
एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती खुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है
दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बेज़ाँ अल्फ़ाज़
तर्ज़मा दर्द की खामोश नज़र होती है
5
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
वरना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सज्दे
एक एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलते हुये काँटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हाथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
ख़ून के छींटे कहीं पोछ न लें रहरौं से
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
6
यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल थल क्या हो
बहती नदी की बाँधे बाँध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही ग़र चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो
7 टिप्पणियां:
badhiya ...gulzar sahab ne inhin nazmon ko meena kumariji ki hi tanhan aur gam mein doobi awaz ko bahut behtar andaz mein pesh kiya hai
उदास धुन। मार्मिक।
मीना जी की नज्में पेश कर आपने मेरी ये मुराद भी पूरी कर दी ....शुक्रिया .....!!
Meena kumari ji ki gazalon se parichay karane ka shukriya.
mahan adakara Meenaji ke es pahlu se tasavvur karwane ke liye sukriya......esi tarah KHOJPARAK bloging karate raho.....
kamal,indore
बहुत बेहतरीन गजलें हैं ये मीना कुमारी की। शुक्रिया!
kise kaise nagiine liil gayaa bazaar
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