गुरुवार, 24 जून 2010

भगवत रावत की कविताएँ

भगवत रावत

जन्म : 13 सितम्बर 1939, जिलाटीकमगढ़, मध्यप्रदेश।
शिक्षा : एम.ए. बी.एड।

1983 से 1994 तक हिन्दी के रीडर पद पर कार्य के बाद दो वर्ष तक मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमीके संचालक। 1998 से 2001 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भोपाल में हिन्दी के प्रोफेसर तथा समाज विज्ञान और मानिविकी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश परिषद् के निदेशक रहे एवं मासिक पत्रिका साक्षात्कारका संपादन किया।


प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह समुद्र के बारे में(1977), दी हुई दुनिया(1981), हुआ कुछ इस तरह(1988), सुनो हिरामन(1992), सच पूछो तो(1996), बिथ-कथा(1997), हमने उनके घर देखे(2001), ऐसी कैसी नींद(2004), निर्वाचित कविताएं(2004) आलोचनाकविता का दूसरा पाठ(1993)। मराठी, बंगला, उडिया, कन्नड़, मलयालम, अंग्रेजी, जर्मन तथा रूसी भाषाओं में कविताएं अनूदित।


सम्मान : दुष्यंत कुमार पुरस्कार(1979), वागीश्वरी पुरस्कार(1989), शिखर सम्मान(1997–98)


सम्पर्क : 129, आराधना नगर,

भोपाल–462 003
फोन : 0755–2773945

वरिष्ठ कवि भगवत रावत हिन्दी कविता के एक ऐसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं जिनकी कविताएँ पाठकों या श्रोताओं से तुरन्त संवाद स्थापित कर लेती हैं। इस बार तत्सम में भगवत रावत की कुछ कविताएँ...


ये कविताएँ उनके कविता संग्रह दी हुई दुनिया (1981) से ली गई हैं मतलब ये कि लगभग 29 साल पुरानी कविताएँ... लेकिन इन कविताओं के विषय ही ऐसे हैं जो आज भी हमारे समाज में शाश्वत विषय हैं। भगवत रावत के यहाँ एक दम आम मानवीय संवेदना पर कविताएँ मिलती हैं। बेटी पर बिटिया और पत्नी पर उसकी थकान किसे प्रभावित नहीं करेंगी? बलात्कार जैसी जटिल समस्या पर भगवत रावत की कविता बलात्कार में कवि शर्म सार है - यह मेरा समय है/ और यह मेरी दुनिया है और यह कविता भगवत रावत के मैं को ही नहीं, वरन मुझे, आपको और सभी संवेदनशील मनुष्यों को कचोटती है। कहने को यह कविताएँ छोटी-छोटी एवं बिना किसी शोर की हैं किंतु इनकी गूंज दूर तक साथ रहती हैं।


- प्रदीप कान्त


बिटिया


लगभग चार बरस की बिटिया ने

माँ से

हाथ फैलाते हुए कहा

--दीदी की किताब में

इत्ता बड़ा समुद्र है


माँ ने आश्चर्य जताते हुए कहा

अच्छा !


हाँ

बिटिया ने कहा

देखो मैंने उसमें उँगली डाली

तो भीग गई ।

००००


उसकी थकान


कोई लम्बी कहानी ही

बयान कर सके शायद

उसकी थकान

जो मुझसे

दो बच्चों की दूरी पर

न जाने कब से

क्या-क्या सिलते-सिलते

हाथों में

सुई धागा लिए हुए ही

सो गई है ।

०००


उसका जाना


जाते हुए

उसकी पीठ नहीं

उसका

चेहरा

देखा था ।

०००


आँच


आँच सिर्फ़ आँच होती है

न कोई दहकती भट्टी

न कोई लपट

न कोई जलता हुआ जंगल


किसी अलाव की सी आँच की रोशनी में

चेहरे

दिन की रोशनी से भी ज़्यादा

पहचाने जाते हैं

०००


बलात्कार


अपनी पूरी ताक़त के साथ

चीख़ती है

एक औरत

अपने बियाबान में

और

ख़ामोश हो जाती है


कहीं दूर

एक पत्ता टूट कर गिरता है


सन्नाटे को चीरता

छटपटा कर गिरता है

कहीं एक पक्षी

और दूर-दूर तक

ख़ामोशी छाई रहती है


यह मेरा समय है

और यह मेरी दुनिया है ।

०००


चित्र: गूगल सर्च इंजिन से साभार

6 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Behtareen rachnaon se ru-b-ru karaya aapne...Betee aur thakan to aankhon me aasoo bhar gayi.

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

भगवत जी मेरे भी प्रिय कवियों में है, जिन्‍हें मैं हमेशा गंभीरता से पढ़ता हूं. प्रस्‍तुत चयन भी उम्‍दा है.

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

इन बेहतर कविताओं की प्रस्तुति के लिए आभार आपका...

अमित ने कहा…

भगवत रावत की कवितायेँ हमेशा सोचने पर मजबूर करती हैं ..इस प्रस्तुति के लिए बहुत आभार !

Shabad shabad ने कहा…

Pardeep kant ji
bahut hee badhya kavitaon se ru-b-ru karaya hai aapne...
maine abhee tak Bhagvat ji kee koee bhee rachna nahee padee thee, yeh pad kar laga ke aur padoon.
Thanks for letting us know that such a great poet.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत बधाई भाई प्रदीप जी भगवत रावत जी को पढना अच्छा लगा