बुधवार, 19 अप्रैल 2017

ब्रजेश कानूनगो की दो छोटी कहानियाँ


तत्सम पर इस बार ब्रजेश कानूनगो की दो छोटी किन्तु सशक्त कहानियाँ…| हालांकि ये नई नहीं हैं तो आपकी पढ़ी भी हो सकती हैं...

-प्रदीप कान्त

 रंग बेरंग

 छब्बीस जनवरी से लेकर पन्द्रह अगस्त जैसे त्यौहारों पर वह आशा करता रहता था कि शायद इस बार उसकी दुकान से तिरंगे के कपडों के थान बिक जाएँ, लेकिन ऐसा होता नही था। लोग बने-बनाए झंडे खादी भंडार से खरीद लिया करते थे।

 लेकिन इस बार कुछ विचित्र घटा। एक बूढा व्यक्ति, जिसके बारे में लोग सिर्फ इतना जानते थे कि वह सिलाई वगैरह करके अपना गुजारा करता रहा है , उसकी दुकान पर आया और केसरिया रंग का पूरा थान खरीद ले गया। दुकानदार को बडी खुशी हुई कि उसका बेकार पडा कुछ माल तो बिका।

 कुछ दिनों बाद वही बूढा व्यक्ति पुन: उसकी दुकान पर आया और उसने हरे रंग के कपडे की मांग की और पूरा हरे रंग का थान खरीद लिया। दुकानदार बडा प्रसन्न हुआ। अगले हफ्ते उसने देखा शहर के हर गली-मोहल्ले में हरे और केसरिया रंग के झंडे-झंडियाँ लहरा रहे थे।

 किंतु एक दिन अचानक सारे शहर में लाल ही लाल रंग बिखर गया। दंगे भडक गए थे। कर्फ्यू लगा। सेना आई। राजनीतिक शतरंज खेला गया। और फिर अंतत: शांति के दौरान कर्फ्यू में कुछ समय के लिए छूट भी दी गई।

 दुकानदार ने छूट के दौरान अपनी दुकान भी खोली। वही बूढा पुन: उसकी दुकान पर उपस्थित हुआ। इस बार उसने दुकानदार से दो मीटर सफेद कपडे की माँग की। दुकानदार को आश्चर्य हुआ,पूरा थान खरीदने वाले बूढे से जिज्ञासावश उसने पूछ लिया-‘क्यों बाबा अबकी बार सिर्फ इतना ही? क्या पूरा थान नही खरीदोगे?’

 बूढा फफक कर रो पडा, बोला-‘यह कपडा तो मैं अपने पोते के लिए खरीद रहा हूँ बेटा, जो कल के दंगों की चपेट में आ गया...।’

 कुछ ही घंटों में दुकानदार का सफेद कपडे का थान भी बिक गया,दो-दो मीटर के टुकडों में कट कर।
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 चुइंगम

 ‘हाँ तो अभी आपने देखा, पीडित महिला ने बताया कि किस तरह वह शाम को खेत से काम करके लौट रही थी और किस तरह पाँच बदमाशों ने उसे दबोच लिया।’ टीवी संवाददाता बडे जोश के साथ बता रहा था।

 चौबीस घंटे चैनल का पेट भरने के लिए डबलरोटी का बडा टुकडा उसे मिल गया था जिसे कुतर-कुतर कर पूरी रात चबाते रहना था।

 ‘बिल्कुल प्रमोद, आप बने रहिए वहीं,हम थोडी देर में फिर आपके पास लौटेंगे।’ सीधे प्रसारण को बीच में रोकते हुए स्टूडियो में बैठे सूत्रधार ने संवाददाता से कहा, फिर दर्शकों से मुखातिब होकर बोला-‘जाइएगा नहीं,आगे हम जानेंगें किस प्रकार पीडित आदिवासी महिला ने बहादुरी के साथ अकेले बदमाशों का सामना किया लेकिन अपनी आबरु बचाने में नाकायमाब रही। प्रशासन और राजनेताओं से भी पूछेंगे कि इसी घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है और इन्हे रोकने के लिए उनके स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं,लेकिन फिलहाल एक छोटा-सा ब्रेक।’

 उधर टीवी स्क्रीन पर अभिनेत्री ने साबुन बेचने के लिए अपनी देह को मोहक मुस्कान बिखेरती सहलाने लगी इधर एक बच्चे ने रिमोट का बटन दबा दिया। दूसरे चैनल पर संवाददाता और सूत्रधार एक बडी और रसीली चुइंगम चबा रहे थे।
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1 टिप्पणी:

harshad Ashodiya ने कहा…

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