बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

मेरी कविता के उनके लिए है - सुशांत सुप्रिय की कविताएँ

जिन्हें वह अँधेरा
नहीं दिख रहा है
मेरी कविता
उनके लिए है

यह पंक्तियाँ कहने वाला कवि हमारे समय को जानता हैं|
अपनी कविताओं में समकाल और उसकी विसंगतियों को पकड़ने वाले इस कवि का नाम है - सुशांत सुप्रिय, जो हिन्दी साहित्य संसार में अपरिचित नहीं है| उनकी कविता ग्लेमर की नहीं वरन मनुष्यता की कविता है जिसे कामगार औरतों की थकी चाल सुन्दर नज़र आती है-

हालाँकि टी.वी. चैनलों पर
सीधा प्रसारण होता है
केवल ' विश्व-सुंदरियों ' की
' कैट-वाक ' का
पर उससे भी
कहीं ज़्यादा सुंदर होती है
कामगार औरतों की
थकी चाल

वे जितने सशक्त कवि हैं उतने ही सशक्त कथाकार  भी| तत्सम पर इस बार सुशांत सुप्रिय की कुछ कविताएँ .. 
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ख़तरा

जब आप
रोशनी की प्रशंसा में
गीत गा रहे थे
मुझे उसके पीछे से झाँकता
अँधेरा नज़र आ रहा था

जब अँधेरे ने
लगा लिया हो
रोशनी का मुखौटा
तब ख़तरा और
बढ़ जाता है

जिन्हें वह अँधेरा
नहीं दिख रहा है
मेरी कविता
उनके लिए है
000

ऐसा होता तो नहीं …
( राजेश जोशी जी को समर्पित )

ऐसा होता तो नहीं
पर हो रहा है
बच्चे वयस्कों के गीत गा रहे हैं
शैशव अपनी मासूमियत खो रहा है
गधे अस्तबलों में हिनहिना रहे हैं
घोड़ा अपनी दुर्गति पर रो रहा है

ऐसा होता तो नहीं
पर हो रहा है
भरी दुपहरी में अँधेरा है
सर्वत्र बौनों का बसेरा है
भेड़ियों के क़ब्ज़े में मशाल है
हम निहत्थे और बेहाल हैं

ऐसा होता तो नहीं
पर हो रहा है
सूर्योदय के मुखौटे में
सूर्यास्त को पहचाने बिना
सारा देश यूँ ही ख़ुश हो रहा है
000

 शब्द

क्या नहीं कर सकते शब्द

आवश्यकता पड़ने पर जहाँ
पत्थर बन सकते हैं शब्द
उछाल कर जिसे दे मारें हम
विरोधी के भाल पर
वहीं मुलायम रेशमी रुमाल भी
बन सकते हैं शब्द
ताकि सहला सकें हम
अपनों को प्यार से

क्रांति का नारा
बन सकते हैं शब्द
पलायन की धुकधुकी भी
बन सकते हैं शब्द

असीमित सम्भावनाएँ
सोयी हैं शब्द के भीतर

चलो
शब्द से शब्द रगड़ कर
वह चिंगारी पैदा करें
जिसमें जल जाएँ
सभी आततायी
वह गर्मी पैदा करें
जिसमें पिघल जाएँ
उपेक्षा के सभी हिम-खंड
वह चमक पैदा करें
जिसमें डूब जाए
निराश आँखों की सारी कालिमा
000

सही पाणिवादी बनें

मुट्ठी से तमाचा तक
कुछ भी बन सकते हैं हाथ
चुनाव-चिह्न से लाल सलाम तक
कुछ भी बन सकते हैं हाथ
लकड़ी भी काट सकते हैं हाथ
गला भी
हल भी चला सकते हैं हाथ
बंदूक़ भी
मूक-बधिरों के लिए
भाषा भी बन सकते हैं हाथ
तमाशा भी बन सकते हैं हाथ
नौटंकीबाज़ के लिए

अँगूठी से हथकड़ी तक
कोई भी यात्रा
तय कर सकते हैं हाथ
हार से फाँसी का फंदा तक
कुछ भी पहना सकते हैं हाथ

पीठ ठोक कर
रीढ़-हीन बना सकते हैं हाथ
अँगूठा काट कर एकलव्य
बना सकते हैं हाथ

अर्जुन के गांडीव से
राम की चरण-पादुका तक
सुकरात के विष-प्याले से
दुर्वासा के शाप-जल तक
कुछ भी उठा सकते हैं हाथ

मानव-श्रृंखला भी बना सकते हैं हाथ
पंजा भी लड़ा सकते हैं हाथ

असीमित सम्भावनाएँ जीती हैं
हाथ की रेखाओं में

चलो
हाथ और मुँह के बीच
निरंतर फैलती जा रही खाई को
सही कर्म कर
भरने का प्रयास करें हम
000

ईंट का गीत

जागो मेरी सोई हुई ईंटो
जागो कि
मज़दूर तुम्हें सिर पर
उठाने आ रहे हैं

जागो कि राजमिस्त्री
काम पर आ गए हैं
जागो कि तुम्हें
नींवों में ढलना है
जागो कि तुम्हें
शिखरों और गुम्बदों पर
मचलना है

जागो मेरी पड़ी हुई ईंटो
जागो कि मिक्सर चलने लगा है
जागो कि तुम्हें
सीमेंट की यारी में
इमारतों में डलना है
जागो कि तुम्हें
दीवारों और छतों को
घरों में बदलना है

जागो मेरी बिखरी हुई ईंटो
जागो कि तुम्हारी मज़बूती पर
टिका हुआ है
यह घर-संसार
यदि तुम कमज़ोर हुई तो
धराशायी हो जाएगा
यह सारा कार्य-व्यापार

जागो मेरी गिरी हुई ईंटो
जागो कि तुम्हें
गगनचुम्बी इमारतों की
बुनियाद में डलना है
जागो कि तुम्हें
क्षितिज को बदलना है

वे और होंगे जो
फूलों-सा जीवन
जीते होंगे
तुम्हें तो हर बार
भट्ठी में तप कर
निकलना है

जागो कि
निर्माण का समय
हो रहा है
000

कामगार औरतें

कामगार औरतों के
स्तनों में
पर्याप्त दूध नहीं उतरता
मुरझाए फूल-से
मिट्टी में लोटते रहते हैं
उनके नंगे बच्चे
उनके पूनम का चाँद
झुलसी रोटी-सा होता है
उनकी दिशाओं में
भरा होता है
एक मूक हाहाकार
उनके सभी भगवान
पत्थर हो गए होते हैं
ख़ामोश दीये-सा जलता है
उनका प्रवासी तन-मन

फ़्लाइ-ओवरों से लेकर
गगनचुम्बी इमारतों तक के
बनने में लगा होता है
उनकी मेहनत का
हरा अंकुर
उपले-सा दमकती हैं वे
स्वयं विस्थापित हो कर

हालाँकि टी.वी. चैनलों पर
सीधा प्रसारण होता है
केवल ' विश्व-सुंदरियों ' की
' कैट-वाक ' का
पर उससे भी
कहीं ज़्यादा सुंदर होती है
कामगार औरतों की
थकी चाल
000

मेरा सपना

एक दिन मैं
जैव-खाद में बदल जाऊँ
और मुझे खेतों में
हरी फ़सल उगाने के लिए
डालें किसान

एक दिन मैं
सूखी लकड़ी बन जाऊँ
और मुझे ईंधन के लिए
काट कर ले जाएँ
लकड़हारों के मेहनती हाथ

एक दिन मैं
भूखे पेट और
बहती नाक वाले
बच्चों के लिए
चूल्हे की आग
तवे की रोटी
मुँह का कौर
बन जाऊँ
000

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परिचय

नाम : सुशांत सुप्रिय
जन्म : 28 मार्च , 1968
शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेज़ी  व भाषा विज्ञान ) 

प्रकाशन 
# हत्यारे ( 2010 ) , हे राम ( 2013 ) , दलदल ( 2015 ) , ग़ौरतलब कहानियाँ ( 2017 ) , पिता के नाम ( 2017 ) , मैं कैसे हँसूँ ( 2019 ) - छह कथा-संग्रह ।
# इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं ( 2015 ) , अयोध्या से गुजरात तक ( 2017 ) , कुछ समुदाय हुआ करते हैं ( 2019 ) - तीन काव्य-संग्रह ।
# विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017 ) , विश्व की कालजयी कहानियाँ ( 2017) , विश्व की अप्रतिम कहानियाँ ( 2019 ) , श्रेष्ठ लातिन अमेरिकी कहानियाँ ( 2019 ) : पाँच अनूदित कथा-संग्रह ।

सम्मान
भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा रचनाएँ पुरस्कृत । कमलेश्वर-स्मृति ( कथाबिंब ) कहानी प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष प्रथम पुरस्कार । स्टोरी-मिरर.कॉम कथा-प्रतियोगिता , 2016 में कहानी पुरस्कृत । साहित्य में अवदान के लिए साहित्य-सभा , कैथल ( हरियाणा ) द्वारा 2017 में सम्मानित ।

अन्य
# कहानी ‘ दुमदार जी की दुम ‘ पर प्रतिष्ठित हिंदी व मराठी फ़िल्म निर्देशक विनय धूमले जी हिंदी फ़िल्म बना रहे हैं ।
# सितम्बर-अंत , 2018 में इंदौर में हुए एकल नाट्य प्रतियोगिता में सूत्रधार संस्था द्वारा मोहन जोशी नाम से मंचित की गई मेरी कहानी ‘ हे राम ‘ को प्रथम पुरस्कार मिला । नाट्य-प्रेमियों की माँग पर इसका कई बार मंचन किया गया ।
# पौंडिचेरी विश्वविद्यालय के Department of Performing Arts ने मेरी कहानी ‘ एक दिन अचानक ‘ के नाट्य-रूपांतर का 4 अगस्त व 7 अगस्त , 2018 को मंचन किया ।
# पीपल्स थिएटर ग्रुप के श्री निलय रॉय जी ने हिंदी अकादमी , दिल्ली के सौजन्य से मेरी कहानी “ खोया हुआ आदमी “ का मंचन 7 फ़रवरी , 2019 को दिल्ली के प्यारे लाल भवन में किया ।
# कई कहानियाँ व कविताएँ अंग्रेज़ी , उर्दू , नेपाली , पंजाबी, सिंधी , उड़िया, मराठी, असमिया , कन्नड़ , तेलुगु व मलयालम आदि भाषाओं में अनूदित व प्रकाशित । कहानी " हेराम ! " केरल के कलडी वि.वि. ( कोच्चि ) के एम.ए. ( गाँधी अध्ययन ) पाठ्य-क्रम में शामिल । कहानी " खोया हुआ आदमी " महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा बोर्ड की कक्षा दस के पाठ्य-क्रम में शामिल । कहानी " एक हिला हुआ आदमी " महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा बोर्ड की ही कक्षा नौ के पाठ्यक्रम में शामिल । कहानी " पिता के नाम " मध्यप्रदेश व हरियाणा केस्कूलों के कक्षा सात के पाठ्यक्रम में शामिल । कविताएँ पुणे वि. वि. के बी. ए.( द्वितीय वर्ष ) के पाठ्य-क्रम में शामिल । कहानियों पर आगरा वि. वि. , कुरुक्षेत्र वि. वि. , पटियाला वि. वि. , व गुरु नानक देव वि. वि. , अमृतसर आदि के हिंदी विभागों में शोधार्थियों द्वारा शोध-कार्य ।
# आकाशवाणी , दिल्ली से कई बार कविता व कहानी-पाठ प्रसारित ।
# लोक सभा टी.वी. के " साहित्य संसार " कार्यक्रम में जीवन व लेखन सम्बन्धी इंटरव्यू प्रसारित ।
# अंग्रेज़ी व पंजाबी में भी लेखन व प्रकाशन । अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ' इन गाँधीज़ कंट्री ' प्रकाशित । अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ' द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ' प्रकाशनाधीन ।
# लेखन के अतिरिक्त स्केचिंग , गायन , शतरंज व टेबल-टेनिस में रुचि | 
# संप्रति : लोक सभा सचिवालय , नई दिल्ली में अधिकारी ।
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
मोबाइल : 8512070086
पता: A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम, ग़ाज़ियाबाद - 201014, ( उ. प्र. )

2 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 04 अप्रैल 2020 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अदभुद सृजन लाजवाब