मंगलवार, 5 मई 2020

गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह – रोहित ठाकुर की कविताएँ



एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर हाथ रखती है 
एक गौरैया भर का भार
महसूस करता हूँ अपने कंधे पर

एनीमिया से पीड़ित एक लड़की को गौरैया की तरह देखने से समझा जा सकता है कि किस तरह एक कवि गौरैया के माध्यम से अपने आसपास के दृश्य बुन सकता है| युवा कवि रोहित ठाकुर की इन कविताओ में समय के दृश्य इस तरह से दिखाई पड़ते हैं 

जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती है
इस गणतंत्र में

तत्सम पर इस बार रोहित ठाकुर की कविताएँ...

प्रदीप कान्त

गौरैया

गौरैया को देखकर
कौन चिड़िया मात्र को याद करता है
गौरैया की चंचलता देखकर
छायाचित्र: प्रदीप कान्त 
बेटी की चंचल आँखें याद आती है

पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान
गौरैया याद आती है
एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर हाथ रखती है 
एक गौरैया भर का भार
महसूस करता हूँ अपने कंधे पर 

गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह
000

जाल

उस जाल का बिम्ब
जो छान ले तमाम दुःख
जीवन से
और
रोहित ठाकुर
विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं बया, हंस, वागर्थ, पूर्वग्रह ,दोआबा , तद्भव, कथादेश, आजकल, मधुमति आदि में कविताएँ प्रकाशित
विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों  - हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला आदि में कविताएँ प्रकाशित
100 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित
कविताओं का मराठी और पंजाबी भाषा में अनुवाद प्रकाशित ।
संपर्क- रोहित ठाकुर C/O – श्री अरुण कुमार, सौदागर पथ, काली मंदिर रोड के उत्तर
संजय गांधी नगर, हनुमान नगर, कंकड़बाग़, पटना- 800 026, बिहार 
मोबाइल6200439764, मेल - rrtpatna1@gmail.com

सुख की मछलियाँ
मानस में तैरती रहे 
हम मामूली लोगों की
कल्पना में
रह-रह कर आता है 
000

गिनती

किसी भी चीज को ऊँगलियों पर गिनता हूँ
उदासी के दिनों को
ख़ुशी के दिनों को                    
ट्रेन के डिब्बों को
पहाड़ को
नदी को
थाली में रोटी को
तुम्हारे घर लौटने के दिनों को

जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती है
इस गणतंत्र में
000

कविता

कविता में भाषा को
लामबन्द कर
लड़ी जा सकती है लड़ाइयाँ
पहाड़ पर
मैदान में
दर्रा में
खेत में
चौराहे पर
पराजय के बारे में
न सोचते हुए
000

रेलगाड़ी

दूर प्रदेश से

घर लौटता आदमी
रेलगाड़ी में लिखता है कविता

घर से दूर जाता आदमी
रेलगाड़ी में पढ़ता है गद्य 

घर जाता हुआ आदमी
कितना तरल होता है

घर से दूर जाता आदमी
हो जाता है विश्लेषणात्मक
000


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