एनीमिया
से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर
हाथ रखती है
एक
गौरैया भर का भार
महसूस
करता हूँ अपने कंधे पर
एनीमिया से पीड़ित एक
लड़की को गौरैया की तरह देखने से समझा जा सकता है कि किस तरह एक कवि गौरैया के
माध्यम से अपने आसपास के दृश्य बुन सकता है| युवा कवि रोहित ठाकुर की इन कविताओ
में समय के दृश्य इस तरह से दिखाई पड़ते हैं
जब
ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो
अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती है
इस
गणतंत्र में
तत्सम पर इस बार
रोहित ठाकुर की कविताएँ...
प्रदीप
कान्त
|
गौरैया
गौरैया को देखकर
कौन चिड़िया मात्र को याद करता है
गौरैया की चंचलता देखकर
छायाचित्र: प्रदीप कान्त |
बेटी की चंचल आँखें याद आती है
पत्नी को देखता हूँ रसोई में हलकान
गौरैया याद आती है
एनीमिया से पीड़ित एक परिचित लड़की
कंधे पर हाथ रखती है
एक गौरैया भर का भार
महसूस करता हूँ अपने कंधे पर
गौरैया को कौन याद करता है चिड़िया की तरह
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जाल
उस जाल का बिम्ब
जो छान ले तमाम दुःख
जीवन से
और
सुख की मछलियाँ
मानस में तैरती रहे
हम मामूली लोगों की
कल्पना में
रह-रह कर आता है
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गिनती
किसी भी चीज को ऊँगलियों पर गिनता हूँ
उदासी के दिनों को
ख़ुशी के दिनों को
ट्रेन के डिब्बों को
पहाड़ को
नदी को
थाली में रोटी को
तुम्हारे घर लौटने के दिनों को
जब ऊँगलियों के घेरे से बाहर निकल जाती है गणना
तो अनगिनत चीज़ें गिनती से बाहर रह जाती है
इस गणतंत्र में
000
कविता
कविता में भाषा को
लामबन्द कर
लड़ी जा सकती है लड़ाइयाँ
पहाड़ पर
मैदान में
दर्रा में
खेत में
चौराहे पर
पराजय के बारे में
न सोचते हुए
000
रेलगाड़ी
दूर प्रदेश से
घर लौटता आदमी
रेलगाड़ी में लिखता है कविता
घर से दूर जाता आदमी
रेलगाड़ी में पढ़ता है गद्य
घर जाता हुआ आदमी
कितना तरल होता है
घर से दूर जाता आदमी
हो जाता है विश्लेषणात्मक
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