शुक्रवार, 1 मई 2020

सुरक्षा इन दिनो कितनी असुरक्षित हो गई है - आनन्द गुप्ता की कविताएँ

तुम्हारी सारी चालाकियाँ
धरी की धरी रह जाएंगी
तुम देख लेना
हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा पर भारी पड़ेगा

यह पंक्तियाँ हमे आश्वस्त करती है कि कवि में केवल घृणा से जूझने की ही नहीं, उसे प्रेम में बदल देने की भी ताकत है| अपनी कविता खिलखिलाती हुई नदी से वे जीवन की जीजिविषा और उसके रास्ते को समझते हैं तो सुरक्षा इन दिनों से वे सुरक्षा के असुरक्षा में बदलने को रेखांकित करते हैं|

जीवन की अनुगूंज और उसके समकालीन दृश्यों को रेखांकित करती यह कविताएँ हमें कवि के कर्म की इमानदारी पर भरोसा देती हैं| तत्सम पर इस बार युवा कवि आनंद  गुप्ता की कविताएँ...
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खिलखिलाती हुई नदी

कल-कल बहती नदी
दरअसल खिलखिला रही है
खिलखिलाती हुई नदी
मानव सभ्यता की सबसे बड़ी निशानी है

मनुष्य ने नदियों से ही
सर्वप्रथम सीखा खिलखिलाना
नदियों ने ही हमें प्रेम करना सिखाया
प्रेम में सर्वस्व लुटाना
और कठिन से कठिन दुख सहना भी

नदियाँ खिलखिलाती हैं
तो खिलखिलाते हैं खेत और खलिहान
खिलखिलाते हैं किसानों के चेहरे
खिलखिलाती है वसुधा
दरअसल खिलखिलाती हुई नदी
संसार की हर जड़ता 
हर बंजरपन के खिलाफ
आस है....विश्वास है....
प्रतिरोध की आवाज है
खिलखिलाती हुई नदी
संसार का सबसे खूबसूरत गीत है
जिसे कोरस में गाती है चिड़ियाँ, मछलियाँ
और बारिश की रिमझिम फुहारें
खिलखिलाती हुई नदियाँ
जीवन का आदिम प्रमाण है
हर प्यास की है तृप्ति

नदियाँ खिलखिलाती है 
तो कविता में जीवन की अनुगूंज कायम रहती है।
000

स्मृतियों के कैनवस पर

मेरी स्मृतियों के कैनवस पर
जितने भी रंग हैं
उन सभी रंगों में हम तुम घुले मिले हैं
मन के गहरे भीतर 
इन स्मृतियों का 
एक खूबसूरत मकान बना रखा है मैंने
जहाँ तुम बेरोकटोक 
बसंत के सारे रंगों को
अपने आँचल में समेट लाती हो
या सावन की रिमझिम फुहारों के साथ
हरियाली की सौगात लेकर
अथवा सर्दियों की कंपकंपाती ठंड में
गुनगुनी धूप सी अपनी चमक बिखेरती हुई

जानती हो तुम्हारे प्रथम स्पर्श की स्मृतियाँ
अब भी हरसिंगार सा झरता है मन में
अब भी बालकनी में तुम्हारी उपस्थिति को
उतनी ही अच्छी तरह पहचानता है मैना का जोड़ा
तुम्हारी शहद भरी मीठी आवाज़ पर
एक नन्ही गिलहरी अब भी तेज-तेज दौड़ लगाती है
एक नौका अब भी काँपती है
स्मृतियों का ज्वार जब भी उफान मारता है
अब भी चाँद के पास 
तुम्हारे नाम लिखे मेरे अनगिनत खत पड़े हुए हैं
अब भी मैं उतना ही कम बोलता हूं
मेरे अनकहे को तुम पूरे का पूरा  समझ लेती हो
कहे और अनकहे के बीच
ये जो तमाम शिकायतें और उलाहने हैं
अब भी वहीं प्रेम बच हुआ है
 
अब भी तुम्हारी मुस्कान
मुझमें भरोसा जगाती है
दुनिया की तमाम उदासियों के बीच
इस घृणा से भरे समय में।
000

हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा

तुम्हारी सारी चालाकियाँ 
धरी की धरी रह जाएंगी
तुम देख लेना
हमारा प्रेम तुम्हारी घृणा पर भारी पड़ेगा

हम तुम्हारे नापाक दिवास्वप्नों में 
बज्र की तरह आएंगे
हम तुम्हारे इरादों पर
प्रश्न की तरह आएंगे
तुम्हारे हाथों में हथियार होगा
हमारे हाथों में कविता
तुम्हारी ज़ुबान पर ज़हर होगा
हमारे हाथों में फूल
तब हाथों में हाथ डाले लोगों से 
तुम्हें डर लगेगा
और उससे भी ज्यादा
तुम्हें यहाँ की मूर्तियाँ डराएंगी

जानते हो बाबू!
हमारे शहर में मई की कड़कड़ाती धूप में भी
डंठलों पर दहकता है लाल-लाल पलाश
जब-जब हावड़ा ब्रिज से कोई नारा गूंजता है
हुगली झुक कर 
उसे सलामी देती हुई गुजरती है
एक बच्चे की कोमल मुस्कान पर
अभी भी ठहर जाता है हमारा शहर

देख लेना
तुम्हारे सारे समीकरणों को
बंगाल की खाड़ी के
किसी अंधेरे गर्त में जगह मिलेगी
तुम्हारे बोए चरस उगाने से
हमारी धरती अस्वीकार करती है
हमारा शहर तुम्हारी प्रयोगशाला बनने से इंकार करता है।
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सुरक्षा इन दिनों

हमने जंगलों को बचाने का संकल्प लिया
और जंगल तक पहुंचने के लिए लाखों पेड़ कटवाए
हमने नदियों को बचाने का संकल्प लिया
और उस पर असंख्य बांध बनाए
हमने पहाड़ों को बचाने का संकल्प लिया
और आदिवासियों को उनकी जमीन से हाँक ले आए
हमने पृथ्वी को बचाने का संकल्प लिया
और जानलेवा हथियार तैयार करवाए
हमने नागरिकों की सुरक्षा के लिए कानून तैयार किए
और उनसे कहा 
कि अब वे अपनी नागरिकता साबित करके दिखलाएं
सुरक्षा इन दिनो
कितनी असुरक्षित हो गई है।
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आनंद गुप्ता 
जन्म-19 जुलाई 1976, कोलकाता 
शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर 
प्रकाशन देश की कुछ महत्वपूर्ण पत्रपत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन। कुछ आलेख एवं समीक्षाएं  भी प्रकाशित।
कई ब्लॉग पर कविताएँ प्रकाशित
कुछ भारतीय भाषाओं में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित 
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन कोलकाता केंद्र  में कविता पाठ
सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा कविता नवलेखन के लिए शिखर सम्मान 
साहित्यिक संस्था नीलांबर के उपसचिव
संप्रति पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित विद्यालय में अध्यापन 
संपर्क पता –  गली न. 18, मकान सं.-2/1, मानिकपीर पोस्ट कांकिनारा, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल - 743126
मोबाइल - 09339487500 , ईमेल- anandgupta19776@gmail.com

चित्र: गूगल खोज से साभार 

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