आख़िरश करते भी क्या, जब
क्लास में टीचर न था
सारे बच्चे-बच्चियाँ
ऊधम मचा कर ख़ुश हुए
एक दम सीधी बात, स्कूल के बचपन का दृश्य,
यह शेर है वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ का| तो तत्सम पर इस बार वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की
ग़ज़लें...
-प्रदीप
कान्त
1
लोग भी क्या हैं, किसी
का दिल दुखा कर ख़ुश हुए
फूल पर बैठी हुई
तितली उड़ा कर ख़ुश हुए
प्यास हम अपनी बुझा
लें, ये इजाज़त है कहाँ
फिर भी ऐ दरिया तेरे
नज़दीक आकर ख़ुश हुए
मर्ज़ को पाले हुए
रखना समझदारी नहीं
लोग फिर भी ख़ामियाँ
अपनी छुपा कर ख़ुश हुए
शक्लो-सूरत देखने
लायक़ थी तब सय्याद की
क़ैद पंछी जब परों को
फड़फड़ा कर ख़ुश हुए
आख़िरश करते भी क्या, जब
क्लास में टीचर न था
सारे बच्चे-बच्चियाँ
ऊधम मचा कर ख़ुश हुए
बोझ दिल का एक ही
झटके में हल्का हो गया
हम तुम्हारी याद में
ख़ुद को रुला कर ख़ुश हुए
ऐ 'अकेला'
और क्या होना था, बस इतना हुआ
सरफिरे झोंके चराग़ों
को बुझा कर ख़ुश हुए
000
2
इस दास्ताँ को फिर
से नया कोई मोड़ दे
टूटा हुआ हूँ पहले
से कुछ और तोड़ दे
अब दे के ज़ख़्म मेरे
सितमगर खड़ा है क्यों
मिर्ची भुरक दे ज़ख़्म
पे नींबू निचोड़ दे
बर्बाद हम हुए कि
तेरे मन की हो गई
अब जा के नारियल
किसी मंदिर में फोड़ दे
उकता गया क़फ़स में है
सय्याद अब तो दिल
ऐसा न कर कि तू मेरी
गर्दन मरोड़ दे
तुझको भी पत्थरों से
रहम की उमीद है
नाहक पटक पटक के न
सर अपना फोड़ दे
कातिल ही ऐ ‘अकेला’
अचानक पलट गया
मैंने कहाँ कहा था
मुझे ज़िन्दा छोड़ दे
000
3
कोई बेज़ुबाँ फिर
मुखर हो रहा है
शरीफ़ों में उत्पन्न
डर हो रहा है
मुझे देख कर
मुस्कुराने लगे वो
मुहब्बत का कुछ तो
असर हो रहा है
ज़रा देखिए तो तरक़्क़ी
का आलम
कि पानी, हवा
सब ज़हर हो रहा है
जिसे देखिए बाँटता
मुफ़्त नुस्ख़े
हरिक शख़्स अब चारागर
हो रहा है
जुटा कर करेगा भी
क्या इतना पैसा
जुटा ले अगर तू अमर
हो रहा है
धरे रह गए हैं सभी
धर्म-दर्शन
कि आदम सतत जानवर हो
रहा है
बुढ़ापा छुपाने की
कोशिश है जारी
सफ़ेदी पे जमकर कलर
हो रहा है
अदालत में घुसकर
दरोग़ा को धमकी
गुनहगार कितना निडर
हो रहा है
हुई चूक तुझको समझने
में कैसे
मुझे दुख इसी बात पर
हो रहा है
सवालात अब बस भी कर
ऐ ‘अकेला’
पसीने से वो तर-ब-तर
हो रहा है
000
4
वो चलाये जा रहे दिल
पर कटारी देखिए
हँस रहे हैं फिर भी
हम हिम्मत हमारी देखिए
पायलागी सामने और
पीठ पीछे गालियाँ
आजकल के आदमी की
होशियारी देखिए
एक हरिजन दर्द अपना
क्या बयां कर पाएगा
सामने शुक्ला, दुबे,
चौबे, तिवारी देखिए
सारे अपराधों पे है
हासिल महारथ आपको
आप संसद के लिए
उम्मीदवारी देखिए
मैकशों के साथ
उठना-बैठना अच्छा नहीं
मौलवी जी आप अपनी
दीनदारी देखिए
कब तलक लटका के
रक्खेंगे ये दिल का मामला
सामने वाले की कुछ
तो बेक़रारी देखिए
काम हो पाया नहीं तो
घूस लौटा दी गई
बेईमानों की ज़रा
ईमानदारी देखिए
ऐ ‘अकेला’
इक तमाशा बन गई जम्हूरियत
एक बंदर को नचाते सौ
मदारी देखिए
000
5
कुछ ऐसे ही तुम्हारे
बिन ये दिल मेरा तरसता है
खिलौनों के लिए
मुफ़लिस का ज्यों बच्चा तरसता है
गए वो दिन कि जब ये
तिश्नगी फ़रियाद करती थी
बुझाने को हमारी
प्यास अब दरिया तरसता है
नफ़ा-नुक़सान का झंझट
तो होता है तिज़ारत में
मुहब्बत हो तो पीतल
के लिये सोना तरसता है
न जाने कब तलक होगी
मेहरबानी घटाओं की
चमन के वास्ते कितना
ये वीराना तरसता है
यही अंजाम अक्सर
हमने देखा है मुहब्बत का
कहीं राधा तरसती है
कहीं कान्हा तरसता है
पता कुछ भी नहीं
हमको मगर हम सब समझते हैं
किसी बस्ती की खातिर
क्यों वो बंजारा तरसता है
कि आख़िर ऐ 'अकेला'
सब्र भी रक्खे कहाँ तक दिल
बहुत कुछ बोलने को
अब तो ये गूंगा तरसता है
000
6
वास्ता हर पल नई
उलझन से है
फिर भी हमको प्यार
इस जीवन से है
किस ग़लतफ़हमी में हो
तुम राधिके
मेल मनमोहन का हर
ग्वालन से है
दिल दिया मानो कि सब
कुछ दे दिया
और क्या उम्मीद इस
निर्धन से है
यार उसको भूलना
मुमकिन नहीं
उसका रिश्ता दिल की
हर धड़कन से है
माफ़ करना आप हैं जिस
पर फ़िदा
सारी रौनक़ उसपे रंग
रोगन से है
जो सही उसने दिखाया
बस वही
क्यों शिकायत आपको
दरपन से है
ये कहाँ मुमकिन कि
लिखना छोड़ दूँ
शायरी का शौक़ तो
बचपन से है
ऐ ‘अकेला’
मन में हैं जब सौ फ़साद
फ़ायदा फिर क्या
भजन.पूजन से है
000
7
पुराना मोथरा खंजर
अचानक धार पर आया
तेरा इक़रारे-उल्फ़त
आख़िरश इन्कार पर आया
सितम ढाये गए यूँ तो
मुसल्सल, फिर भी मैं चुप था
मैं तब भड़का किसी का
हाथ जब दस्तार पर आया
गज़ब है किस अदा से
वो किसी को क़त्ल करते हैं
लहू का एक भी धब्बा
नहीं तलवार पर आया
यक़ीनन ग़फ़लतें मल्लाह
की कश्ती को ले डूबीं
तमाशा देखिए इल्ज़ाम
बस पतवार पर आया
ये देखा है, धरी
ही रह गई सब उसकी फ़नकारी
ग़ुरूरे-फ़न कभी भी जब
किसी फ़नकार पर आया
तुम्हारी याद आने पर
ये दिल कुछ इस तरह ख़ुश है
कि जैसे कोई सैनिक
अपने घर त्यौहार पर आया
अधूरा है 'अकेला'
तू अधूरा हूँ 'अकेला' मैं
ज़रा सोचें हमारा
प्यार क्यों तकरार पर आया
000
वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
: जन्म : 18 अगस्त 1968 को छतरपुर (म.प्र.) के
किशनगढ़ ग्राम में
शिक्षा :एम०ए० (इतिहास), बी०एड०
*वागर्थ, कथादेश,वसुधा
सहित विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं रचनाओं का प्रकाशन ।
प्रकाशित कृतियाँ :
1. शेष बची चौथाई रात 1999 (ग़ज़ल
संग्रह), [अयन प्रकाशन, नई दिल्ली]
2. सुबह की दस्तक 2006 (ग़ज़ल-गीत-कविता),
[सार्थक एवं अयन प्रकाशन, नई दिल्ली]
3. अंगारों पर शबनम 2012(ग़ज़ल संग्रह)
[अयन प्रकाशन, नई दिल्ली]
*लगभग 25 वर्षों से आकाशवाणी छतरपुर से
रचनाओं का निरंतर प्रसारण ।
*आकाशवाणी द्वारा गायन हेतु रचनाएँ अनुमोदित ।
*ग़ज़ल-संग्रह 'शेष बची चौथाई रात'
पर अभियान जबलपुर द्वारा 'हिन्दी भूषण'
अलंकरण ।
*मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं बुंदेलखंड हिंदी
साहित्य-संस्कृति मंच सागर [म.प्र.] द्वारा कपूर चंद वैसाखिया 'तहलका ' सम्मान
*अ०भा० साहित्य संगम, उदयपुर द्वारा
काव्य कृति ‘सुबह की दस्तक’ पर
राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान के अन्तर्गत 'काव्य-कौस्तुभ'
सम्मान तथा लायन्स क्लब द्वारा ‘छतरपुर गौरव’
सम्मान ।
सम्प्रति :अध्यापन
सम्पर्क : छत्रसाल नगर के पीछे, पन्ना रोड, छतरपुर (म.प्र.)पिन-471001
मोबाइल: 09981585601, ईमेल: Virendraakelachh@gmail.com
1 टिप्पणी:
बहुत ही खूबसूरती से आपने एक एक शब्दों का चयन किया है सर👌👌👌
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