शनिवार, 30 मई 2020

मैं नहीं चाहता मेरे बच्चे मुझे किसी वीडियो में भीख मांगता हुआ देखें – सतीश राठी की लघुकथाएँ


मैं नहीं चाहता मेरे बच्चे मुझे किसी वीडियो में भीख मांगता हुआ देखें

यह हमारे समय की सबसे भयावह पंक्तियों में से एक है, एक मजबूर किन्तु स्वाभिमानी गरीब का दर्द| सतीश राठी की इन लघुकथाएँ कहीं खाए पिए अघाए वर्ग का ऐसा व्यक्ति है जिसने कभी गेंहूं ही नहीं पिसवाया था (रोटी की कीमत), कहीं भ्रष्टाचार के लिए अपने आप को जस्टिफाई करता ठेकेदार (पेट का सवाल), कहीं एक चतुर ग्रहिणी है जिसके २५ रूपये के नाश्ते पानी के एवाज़ में मेकेनिक 1500 के बजाए 1200 रूपये ले लेता है| और तो और आज़ाद भारत के वे लोग हैं जो किसी इंतज़ार में अपने सोचने समझाने की शक्ति और यहाँ तक छीन लेने की हैसियत यानी हाथ भी गवां चुके हैं (जिस्मो का तिलस्म) | तो तत्सम पर इस बार सतीश राठी....
- प्रदीप कान्त

रोटी की कीमत

आटा चक्की पर भीड़ लगी हुई थी। सभी लोग गेहूं पिसवाने के लिए आए हुए थे  उसी समय एक महंगी कार में से एक सूटेड बूटेड व्यक्ति ने उतर कर आटा चक्की वाले से पूछा ,'भाई! गेहूं  पीस दोगे।
आटा चक्की वाले ने कहा,' इसीलिए तो बैठे हैं। थोड़ा समय लगेगा। भीड़ काफी है। बैठिये आप।'- इतना कहकर एक कुर्सी उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दी।
कसमसाता  हुआ व्यक्ति उस कुर्सी पर बैठ गया और अपना मोबाइल देखने लगा। उसकी बेचैनी बार-बार उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी।  चक्की वाला लगातार लोगों के डिब्बे के गेहूं चक्की में डालकर उन्हें पीसता जा रहा था।  तकरीबन बीस मिनट इंतजार के बाद उसने पूछा,' हो जाएगा ना!' चक्की वाले ने कहा,' अब आपका ही नंबर है और उसका गेहूं चक्की में पीसने के लिए डाल दिया। वह व्यक्ति बड़ा असहज महसूस कर रहा था।
उसने आटा चक्की वाले को लगभग सफाई देने की भाषा में बोलते हुए कहा,' अपने जीवन के इतने बरसों में आज पहली बार गेहूं पिसाने के लिए आया हूं। कभी मुझे तो आने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
आटा चक्की वाले ने उससे कहा,' चलिए अच्छा है भाई साहब !आज आपको रोटी की कीमत तो समझ में आई।'
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राशन

इक्कीस दिन की तालाबंदी ने उसके झोपड़े में सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया था । घर से बाहर निकला तो देखा  कि  एक स्थान पर कुछ लोग राशन का वितरण कर रहे हैं । वह वहां पर जाकर खड़ा हो गया।
एक व्यक्ति ने उससे पूछा," राशन चाहिए क्या?"
उसने कहा," चाहिए तो सही लेकिन आप वीडियो तो नहीं बनाओगे।"
उस व्यक्ति ने पूछा," क्यों वीडियो से  भला क्या दिक्कत है।"
उसने बड़े ही विवशता भरे स्वर में जवाब दिया," मैं नहीं चाहता मेरे बच्चे मुझे किसी वीडियो में भीख मांगता हुआ देखें।"
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पेट का सवाल

"क्यों बे! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या?" गिट्टी में डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा।
" कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी। सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी।मिमियाते हुए लड़का बोला।
 "मेरे काम में बेटा तू नया आया है। इतना डामर डाल कर तूने तो मेरी ठेकेदारी बंद करवा देनी है।" फिर समझाते हुए बोला," यह जो डामर है इसमें से बाबू ,इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा। खराब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं । चल! इसमें गिट्टी का चूरा और डाल।मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला।
 लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा। उसका उतरा हुआ चेहरा  देखकर ठेकेदार बोला," बेटा ,सबके पेट लगे हैं। अच्छी सड़क बना दी और छह माह में गड्ढे नहीं हुए तो, इंजीनियर साहब अगला ठेका किसी दूसरे ठेकेदार को दे देंगे । इन गड्ढों से ही तो सबके पेट भरते हैं बेटा।"
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 गणित

दीपावली का समय था । यह तय हुआ कि निहाल को बुलाकर उससे बिजली की सारी बंद लाइट बदलवा दी जाए तथा और भी बिजली के जो छोटे-मोटे काम बचे हैं, वह करवा कर घर के बाहर की झालर लाइट भी लगवा ली जाए।
वैसे तो बिजली मैकेनिक को बुलाना ही बड़ा टेढ़ी खीर होता है ,लेकिन हमारी धर्मपत्नी की आदत है कि, जब भी कोई कारीगर आता है तो, वह उसकी खातिरदारी अच्छे से कर देती है और वह बड़ा खुश होकर जाता है । इसलिए जब निहाल को फोन लगाया तो निहाल ने तुरंत दोपहर में आने की हामी भर दी।
निहाल ने सारा काम तकरीबन एक घंटे में पूरा कर दिया । जब मैंने उससे पूछा कि ,भाई कितने हुए तो, निहाल ने तुरंत जोड़कर बताया सर पंद्रह सौ रुपए दे दीजिए ।
तभी धर्मपत्नी चाय और उसके साथ नाश्ते की एक प्लेट निहाल के लिए लेकर आ गई । निहाल ने मना किया ,लेकिन मेरी पत्नी ने बड़े आग्रह के साथ उसे नाश्ता भी करवाया और चाय भी पिलाई । 
निहाल जब जाने के लिए तैयार हो गया तो मैंने उससे पूछा,' हां निहाल भाई ! कितने दे दूं।'
अब सर, आपका तो घर का मामला है । आप तो सिर्फ बारह सौ रुपए दे दीजिए |” मैंने उसे तुरंत 12 सो रुपए निकाल कर दे दिए।
उसके जाने के बाद पत्नी ने कहा 'देखा मेरी चाय और नाश्ते की प्लेट का कमाल!  आपके ₹300 बच गए  । मेरी  चाय और नाश्ते की लागत  सिर्फ ₹25  ही थी।'
 मैं मौन रह गया ।पत्नी का गणित मेरी समझ से बाहर का था।
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घर में नहीं दाने

विमला देवी ने सुरेंद्र कुमार से कहा," घर चलाने के लिए पैसे  समाप्त हो गए।"
सुरेंद्र ने कहा," पिताजी के जमाने के पीतल के घड़े पड़े हैं ,उन्हें बेच दो।"
 विमला ने कहा," वह तो पिछले साल ही बेच दिए थे।"
"अरे तो पुराने समय के जो जेवरात पड़े हैं, उन्हें बेच दो।" सुरेन्द्र बोला।
"वह भी बेच दिए थे ।विमला ने दुखी मन से जवाब दिया।
"तो फिर हमारे इस हवेली जैसे प्राचीन  घर में जितनी भी पुरानी एंटीक चीजें हैं, अब उन्हें बेचने की बारी आ गई है। ऐसा करो  अब धीरे धीरे उन्हें बेचने का काम शुरू कर दो। आखिरकार  किसी तरह घर तो चलाना है ना।" सुरेन्द्र बोला।
विमला मौन हो गई। उसे तो सुरेंद्र का कहना मानना ही था।
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जिस्मों का तिलिस्म

वे सारे लोग सिर झुकाकर खड़े थे। उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी। दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे सिरकटे जिस्म पंक्ति बद्ध खड़े हैं। 
मैं उनके नजदीक गया। मैं चकित था कि ये इतनी लम्बी लाईन लगा कर क्यों खड़े हैं?
"क्या मैं इस लम्बी कतार की वजह जान सकता हूं?" नजदीक खड़े एक जिस्म से मैंने प्रश्न किया।
उसने अपना सिर उठाने की एक असफल कोशिश की। लेकिन मैं यह देखकर और चौंक गया कि उसकी नाक के नीचे बोलने के लिए कोई स्थान  नहीं है।
तभी उसकी पीठ से तकरीबन चिपके हुए पेट से एक धीमी सी आवाज आई, "हमें पेट भरना है और यह राशन की दुकान है।"
"लेकिन यह दुकान तो बन्द है। कब खुलेगी यह दुकान?" मैंने प्रश्न किया।
"पिछले कई वर्षों से हम ऐसे ही खड़े हैं। इसका मालिक हमें कई बार आश्वासन दे गया कि दुकान शीघ्र खुलेगी और सबको भरपेट राशन मिलेगा।" आसपास खड़े जिस्मों से खोखली सी आवाजें आईं।
"तो तुम लोग... अपने हाथों से क्यों नहीं खोल लेते यह दुकान?" पूछते हुए मेरा ध्यान उनके हाथों की ओर गया तो आंखें आश्चर्य से विस्फरित हो गई।
मैंने देखा कि सारे जिस्मों के दोनों हाथ गायब थे।
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सतीश राठी।
जन्म :23 फरवरी 1956 को इंदौर में जन्म। 
शिक्षा: एम काम, एल.एल.बी ।
लेखन: लघुकथा ,कविता ,हाइकु ,तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन । देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। 
सम्पादन: क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष 1983 से निरंतर संपादन । इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्रिका का संपादन। 
प्रकाशन:पुस्तकें  शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह), पिघलती आंखों का सच (निजी कविता संग्रह)
संपादित पुस्तकें - तीसरा क्षितिज(लघुकथा संकलन), मनोबल(लघुकथा संकलन), जरिए नजरिए (मध्य प्रदेश के व्यंग्य लेखन का प्रतिनिधि संकलन), साथ चलते हुए(लघुकथा संकलन उज्जैन से प्रकाशित), सार्थक लघुकथाएँ( लघुकथा की सार्थकता का समालोचनात्मक विवेचन), शिखर पर बैठकर  (इंदौर के 10 लघुकथाकारों की 110 लघुकथाएं संकलित)
साझा संकलन- समक्ष (मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की 100 लघुकथाओं का साझा संकलन) कृति आकृति(लघुकथाओं का साझा संकलन, रेखांकनों सहित), क्षिप्रा से गंगा तक(बांग्ला भाषा में अनुदित साझा संकलन),
शिखर पर बैठ कर (दस लघुकथाकारों का साझा संकलन)
अनुवाद: निबंधों का अंग्रेजी, मराठी एवं बंगला भाषा में अनुवाद । लघुकथाएं मराठी, कन्नड़ ,पंजाबी, गुजराती,बांग्ला भाषा में अनुवादित । बांग्ला भाषा का साझा लघुकथा संकलन 'शिप्रा से गंगा तक वर्ष 2018 में प्रकाशित।
विशेष: लघुकथाएं दो पुस्तकों में,( छोटी बड़ी कथाएं एवं लघुकथा लहरी ) मेंगलुर विश्वविद्यालय  कर्नाटक के  बी ए प्रथम वर्ष और बी बी ए के पाठ्यक्रम में शामिल।
 लघुकथाएं विश्व लघुकथा कोश, हिंदी लघुकथा कोश, मानक लघुकथा कोश, एवं पड़ाव और पड़ताल के विशिष्ट खंड में शामिल।
शोध: विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एम फिल में मेरे लघुकथा लेखन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत । कुछ पी एच डी के शोध प्रबंध  में  विशेष रूप  से शामिल । 
पुरस्कार सम्मान: साहित्य कलश, इंदौर के द्वारा लघुकथा संग्रह' शब्द साक्षी हैं' पर राज्यस्तरीय ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान वर्ष 2006 में प्राप्त। लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मां शरबती देवी स्मृति सम्मान 2012 मिन्नी पत्रिका एवं पंजाबी साहित्य अकादमी से बनीखेत में वर्ष 2012 में प्राप्त । सरल काव्यांजलि, उज्जैन से वर्ष 2018 में सम्मानित। 
विशेष:  एक लघुकथा संग्रह एक गजल संग्रह एक व्यंग्य संग्रह वर्ष 2020 में प्रकाशनाधीन।
सम्प्रति:भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इंदौर शहर में निवास, और लघुकथा विधा के लिए सतत कार्यरत।
संपर्क: सतीश राठी, त्रिपुर ,आर- 451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर 452010 
मोबाइल नंबर 94250 67204, लैंडलाइन नंबर 0731 4959 451, Email : rathisatish1955@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

कठोर पर आज की हकीकत पर आधारित लघुकथा

रचना प्रवेश ने कहा…

सामयिक चित्रण ,अच्छी है सभी


talbertcadd ने कहा…

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