आज हमारी परम्परा का एक महत्वपूर्ण दिवस है - दीपोत्सव यानि दीपावली। यह पर्व हमारे लिये मुफ्त में हषोल्लास का कारण नहीं है। इसके पीछे बुराई पर अच्छाई की जीत की चिरपरिचित कथा है। और वही सबसे बड़ा सत्य भी है, कम से कम उन लोगों की नज़र में जिनका काम केवल अच्छाइयों को कहीं से भी तलाश करके आत्मसात करते हुए जीना होता है। सत्य के पक्ष में बोलना होता है। जैसा कि कृष्ण बिहारी नूर ने अपने एक शेर में कहा भी है -
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो
आइना झूठ बोलता ही नहीं
अब त्योहार तो है हषोल्लास का और आप सभी को दीपोत्सव की शुभकामनाएँ भी। बावजूद इसके कि बढ़ती जा रही महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है। ग्लोबलाइजेशन की लम्बीऽऽ ट्रेन छोटे दुकानदारों को रोंद रही है। भ्रष्टाचार का मुँह सुरसा की तरह खुलता ही जा रहा है। और सुरसा का मुँह तो वापस छोटा भी हो गया था, ये तो बन्द होने का नाम भी नहीं लेता। स्त्रियों की असुरक्षा दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। बलात्कार के मामलों में देश में राज्यों की रेंकिग होती है। और शायद ही कोई राज्य बुराई की इस रेंकिग में अपने आप को पीछे करने का प्रयास कर रहा हो। समस्याएँ बहुत गम्भीर हैं और ऐसे में हमारे समय के महत्वपूर्ण शायर निदा फाज़ली याद आते हैं -
वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए
जहाँ से देखिये कुछ कम है क्या किया जाए
मिली है ज़ख्मों की सौगात जिसकी महफिल से
उसी के हाथ में मरहम है क्या किया जाए
और हम है कि बावजूद इसके कि बहुत कुछ बुरा हो रहा है, अच्छे की उम्मीद बनाए रखे हुऐ है। क्यों कि किसी भी चीज़ की अति बहुत देर तक कायम नहीं रह सकती। एक ना एक दिन उसे खत्म होना होता है। ठीक वैसे ही, जैसे दीपोत्सव के पीछे की कथा का खलनायक माना जाने वाला रावण। और सबसे बढ़िया दृष्टांत तो भस्मासुर का है। घोर तप के बाद शिवजी से वरदान पाकर, शिवजी के ही सर पर हाथ रख उन्हे भस्म करने चला था। बचा तो वो भी नहीं। हालांकि ग़लत अपने आप खत्म नहीं होगा, उसके खिलाफ़ बोलना होगा। इसलिये आप भी ग़लत के खिलाफ़ सही के लिये संघर्ष करते हुए सकारात्मक रहें, मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
पुनश्च:
दीपोत्सव की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ
-प्रदीप कान्त
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चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार