‘बहुत दिन हुऐ कि कोई नई पोस्ट नहीँ डाली’ - शिकायत वाजिब है। बीमार था भाई, अब शिकायत दूर किये देता हूँ। कुछ और नहीं इस बार अपना ही एक गीत जो जनवरी 2010 में पाखी में छपा है। बहुत दिनों से यही कुछ मित्रों का भी आग्रह था कि भाई अपना भी कुछ डालिये सो पूरा कर रहा हूँ।
- प्रदीप कांत
___________________________________________________________या पतझड़ की कथा गढ़ें
प्रीत तुम्ही समझादो ना
खुशी बुने या व्यथा पढ़ें
प्रीत तुम्ही समझादो ना
खुशी बुने या व्यथा पढ़ें
थकी हुई सोचों बतलाओ
अब अपनी क्या सज़ा पढ़ें
चेहरा सुबह का उतरा
रंगत साँझ की पीली हैं
कैसे पोंछेगा चकोर
आँखें चन्दा की गीली हैं
पत्तों के मुखड़ों पर जो
अंकित है जो हवा पढ़ें
अब अपनी क्या सज़ा पढ़ें
चेहरा सुबह का उतरा
रंगत साँझ की पीली हैं
कैसे पोंछेगा चकोर
आँखें चन्दा की गीली हैं
पत्तों के मुखड़ों पर जो
अंकित है जो हवा पढ़ें
- प्रदीप कांत
____________________________________________________________छाया: प्रदीप कांत