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छाया - प्रदीप कान्त
यश मालवीय जन्म: 18 जुलाई 1962 कानपुर, उत्तर प्रदेश कुछ प्रमुख कृतियाँ: कहो सदाशिव, उड़ान से पहले, एक चिडिया अलगनी पर एक मन में, राग-बोध के 2 भाग
संपर्क: रामेश्वरम, ए - 111, मेंह्दौरी कालोनी, इलाहाबाद -211 004, उ प्र मो: 098397 92402
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साठोत्तरी गीतकारों में जिन गीतकारों ने अपनी पहचान बनाई है उनमे यश मालवीय का नाम महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सम्मान, मुम्बई के मोदी कला भारती और ऋतुराज सम्मान से सम्मानित यश जी के गीतों में आज की कविता का कथ्य देखा जा सकता है। आम आदमी की समस्याओं और समाज की विसंगतियों का चित्रण करते यश जी के गीत पाठक को गहरे तक कचोटते चले जाते हैं। यश जी के गीत अपनी एक अलग और सहज भाषा गढते हैं – एक ऎसी भाषा, जो राजा की नहीं, परजा की है। उनके गीतों में आम आदमी अपने को तलाशने लगता है और किसी भी रचना की यही सबसे बडी सफलता भी है। तत्सम में इस बार यश मालवीय के कुछ गीत... - प्रदीप कांत |
1 चला गया वो साल...
लम्बी छोटी हिचकी रखकर
चिड़ियों वाले दाने रखकर
उजियारे, कुछ स्याही रखकर
भूले बिसरे गाने रखकर
नीली आँखों, चिठ्ठी रखकर
सच के सोलह आने रखकर
2 लोग कि अपने सिमटेपन में बिखरे-बिखरे हैं, राजमार्ग भी, पगडंडी से ज्यादा संकरे हैं ।
हर उपसर्ग हाथ मलता है प्रत्यय झूठे हैं, पता नहीं हैं, औषधियों को दर्द अनूठे हैं, आँखें मलते हुए सबेरे केवल अखरे हैं ।
है भविष्य भी बीते दिन के गलियारों जैसा आँखों निचुड़ रहे से उजियारों के कतरे हैं ।
देख मज़ारों को हम शीश झुकाया करते हैं, सही बात कहने के सुख के अपने ख़तरे हैं ।
3 सिंहासन के आगे-पीछे
4 भीड़ से भागे हुओं ने
कुतर ली सिर्फ़ ऎसी और तैसी में रहे
रहे होकर
ज़िन्दगी भर असलहे
जब हुई ज़रूरत,
आँख भर ली रोशनी की आँख में भरकर अंधेरा आइनों में स्वयं को घूरा तरेरा
वक़्त ने हर होंठ पर
आलपिन धर दी उम्र बीती बात करना नहीं आया था कहीं का गीत, जाकर कहीं गया
दूसरों ने ख़बर ली,
अपनी ख़बर दी |