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नईम ने अपनी कलम
से नवगीतों की एक अलग और सहज सी भाषा और कबीराना मुहावरा गढ़ा। हालांकि नईम अपने
काष्ठ शिल्प के लिये भी जाने जाते रहे किंतु नवगीत कहो तो नईम याद आते हैं और
नईम कहो तो नवगीत....।
बाद की पीढ़ी के नवगीतकारों में जिन लोगों ने यह काम किया
है उनमें एक नाम यश मालवीय का है। अप्रेल में ही (1 अप्रेल 1935) नईम का
जन्म होता है और दुर्भाग्यवश निधन भी अप्रेल में ही (9 अप्रल 2009)। तत्सम में
इस बार नईम को नईमाना अन्दाज़ में ही याद करता यश मालवीय का एक नवगीत....
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प्रदीप कांत
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- प्रदीप मिश्र
दिव्यांश
72ए सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णा रोड, इन्दौर
- 452009, म.प्र
मो-
919425314126
नईम को देखे बहुत
दिन हो गए
नईम को देखे बहुत दिन हो गए
वो जुलाहे सा
कहीं कुछ बुन रहा होगा
लकड़ियों का
बोलना भी सुन रहा होगा
ख़त पुराने
मानकर पढ़ता नए
ज़रा सा कवि ज़रा
बढ़ई ज़रा धोबी
उसे जाना और जाना
गीत को भी
साध थी कोई
सधी साधू भए
बदल जाना मालवा का सालता होगा
बदल जाना मालवा का सालता होगा
दर्द का पंछी जतन
से पालता होगा
घोंसलों में
रख रहा होगा बए
स्वर वही गन्धर्व
वाला कांपता होगा
टेगरी को चकित
नयनों नापता होगा
याद आते हैं
बहुत से वाक़िए
ज़िन्दगी ओढ़ी
बिछाई और गाया
जी अगर उचटा
इलाहाबाद आया
हो गए कहकहे
जो थे मर्सिए।
- नईम
(चित्र: गुगल सर्च से साभार)