1 लड़की
लड़की को बोलने दो लड़की की भाषा में सुदूर नीलाकाश में खोलने दो उसे मन की खिड़कियाँ, उस पार शिरीष की डाल पर बैठा है भोर का पहला पक्षी पलाश पर उतर आई है प्रेमछुई धूप उसे गुनगुनाने दो कोई प्रेमगीत सजाने दो सपनों के वन्दनवार बुनने दो कविता भाषा के सूर्योदय में मन की बात कहने दो उसे अन्तहीन पीड़ा के नेपथ्य से फूठने दो निशिगन्धा की किलकारियाँ, सदियों से बँधी नाव को जाने दो सागर की उत्ताल तरंगों में आदर्श शिखरों से उतर आना चाहती है लड़की भविष्य की पगडंडियों पर उसे रोको मत उसे चुनने दो झरबेरी सीप और मधुरिमा करने दो उसे उपवास और प्रार्थनाएँ रखने दो देहरी पर दीप उसे मत रोको प्रेम करने से,
अगर सचमुच बचाना चाहते हो सृष्टि की सबसे सुन्दर कविता को तो ... आग की ओर जाती लड़की को रोको रोको -- उसके जीवन में दोस्त की तरह प्रवेश करते दुःख और विवशता को रोको उसे दिशाहीन होकर नदी में डूबने से रोको – ‘सब कुछ’ को ‘कुछ नही’ हो जाने से! ०००००
2 कविता से बाहर
एक दिन अचानक हम चले जाएँगे तुम्हारी इच्छा और घृणा से भी दूर किसी अनजाने देश में और शायद तुम जानना भी न चाहो हमारी विकलता और अनुपस्थिति के बारे में!
हो सकता है इस सुन्दर पृथ्वी को छोड़कर हम चले जाएँ दूर .... नक्षत्रों के देश में फिर किसी शाम जब आँख उठाकर देखो चमकते नक्षत्रों के बीच तुम शायद पहचान भी न पाओ कि तुम्हारी खिड़की के ठीक सामने हम ही हैं अपने वरदानों और अभिशापों में बँधे...
हम वहीं दूर से तुम्हें देखते रहेंगे अपना वर्तमान और अतीत लेकर अपने उदास अकेलेपन में भाषा और कविता से बाहर सृष्टि की अंतिम रात तक
चाहत के आकाश में उदास और अकेले!! ०००००
3 वह प्रेम करेगी वह प्रेम करेगी - और चाँद खिल उठेगा आकाश में सुनाई देगा बादलों का कोरस, वह प्रेम करेगी - और मैं भेज दूँगा बादलों को जलते हुए रेगिस्तानों में, वह प्रेम करेगी - और आकाश में दिखाई देंगे इंद्रधनुष के सातों रंग वह प्रेम करेगी - और थम जाएगा हिरोशिमा का ताण्डव लातूर का भूकम्प अफ्रीका के अरण्य में पहली बार उगेगा सूरज सागर की छाती पर फिर कोई जहाज नहीं डूबेगा फिर विसुवियस के पहाड़ आग नहीं उगलेंगे,
वह प्रेम करेगी - और मैं देखूँगा अनन्त में डूबा आकाश देखूँगा -- मोर के पंखों का रंग, प्यार करुँगा -- जिन्हें कभी किसी ने प्यार नहीं किया, देखूँगा -- लहरों के उल्लास में उफनती मछलियाँ पंछी ... विषधर साँपों के अनोखे खेल ऋतुमती पृथ्वी झीलों का गहरा पानी अज्ञात की ओर जाती अनन्त चीटियों की कतार, किसी प्राचीन आकाशगंगा में हम दोनों खेलेंगे चाँद और सूरज की गेंद से,
वह प्रेम करेगी -- और मैं उसे भेजूँगा अंजुरी भर धूप एक मुट्ठी आसमान एक टुकड़ा चाँद थोड़े-से तारे,
वह प्रेम करेगी -- और किसी दिन जाकर न लौट पाने की असंभव दूरी से जो आख़िरी बार हाथ हिलाकर मन ही मन केवल कह सकूँ विदा ...
जीवन के किसी मधुरतम क्षण में तिस्ता किनारे सौंपना मुझे तुम्हारी आँखों का एक बूँद पानी और हृदय का थोड़ा-सा प्यार! ००००० छायाचित्र: प्रदीप कांत
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