गुरुवार, 24 मार्च 2022

युद्ध के विरोध में बारह कविताएँ -विनोद विट्ठल

मनुष्य की बेहतरी के लिए आज तक नहीं हुआ कोई युद्ध


यह न केवल हमारे समय का, वर्ण जब से पृथ्वी पर जीवन आया है तब से अब तक का शास्वत सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता| हालांकि ऐसा नहीं कि युद्ध पर पहले कभी कविताएँ न लिखी गई हों पर पिछले दिनों जब से रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू हुआ है तब से युद्ध पर कविताएँ कुछ ज़्यादा पढ़ने/सुनने में आ रही हैं| विनोद की इन कविताओं में कुछ वाक्य सूत्र वाक्यों की तरह आते हैं, जैसे - सारे युद्ध लड़े जाते हैं हारने के लिए या विजित के कुछ सालों बाद मर जाता है विजेता भी | तत्सम पर इस बार विनोद विट्ठल की ताज़ा कविताएं...


प्रदीप कान्त

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I am an Indian Poet and I am not ABSTAIN!! 


(1)

बसंत : 2022


अंतिम स्पर्श 

अंतिम चुम्बन 

अंतिम आलिंगन 

कुछ बसंत 

फूल नहीं युद्ध लेकर आते हैं । 


(2)

शांति समय 

अगले युद्ध की तैयारी के लिए दी गई एक प्रिपरेशन लीव है 


कुछ परीक्षाएँ हर बार फ़ेल करती हैं । 

(3)

उपजाऊ ज़मीनों 

महँगे खनिजों 

नस्लों-धर्मों 

और राजाओं की सनक के लिए हुए युद्ध 


मनुष्य की बेहतरी के लिए आज तक नहीं हुआ कोई युद्ध । 


(4)

हर विजेता अपना इतिहास लिखता है 

हर पराजित; हाशिए में ही सही पर अपनी जगह बचा लेता है 


मैदान की घास की तरह होते हैं नागरिक 

रौंदे जाकर इतिहास के बाहर बैठे हुए । 


(5)

राजाओं के अत्याचार 

क़िलों और महलों में दमकते हैं 


सैनिकों की बर्बरता 

शौर्य स्मारकों और वीरगाथाओं में चमकती हैं  


मारे गए निर्दोष नागरिक 

इस चमक-दमक से दूर सुबकते रहते हैं 

बिना किसी उल्लेख के । 


(6)

न पुतिन जीतेगा 

न हारेगा ज़ेलेन्स्की 


चलते-फिरते लोग 

तस्वीरों में तब्दील होकर लटक जाएँगे 


दुनिया को बदसूरत दीवारें नहीं 

दीवारों पर टँगी ये तस्वीरें बनाती हैं । 


(7)

जीतने के बाद ही सही 

तुम यूक्रेन की गलियों में घूमना पुतिन 


तस्वीरों में सिमटे लोग ज़िंदा मिलेंगे तुम्हारी बर्बरता के बाद भी । 


(8)

यूक्रेन हारेगा 

ज़ेलेंस्की मार दिए जाएँगे 


पिता, पति और प्रेमी भी मारे जाएँगे 


लेकिन जीत नहीं पाएगा पुतिन भी

 

सारे युद्ध लड़े जाते हैं हारने के लिए । 


(9)

हर युद्ध एक माइल स्टोन है : 


मनुष्यता अभी बहुत दूर है । 


(10)

एक ही परिणाम है हर युद्ध का 


विजित के कुछ सालों बाद मर जाता है विजेता भी । 


(11)

एक रूसी सैनिक को देख 

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अकेले में तुमने किया प्रेम 

अकेले में तुमने किया इंतज़ार 

अकेले में तुमने छुआ उसे 

अकेले में तुमने चूमा उसे 

अकेले में तुमने डायरी में बनाया पीला फूल 


अकेले में तुमने याद किया अपनी बेटी को 

अकेले में तुमने सहलाई माँ की तस्वीर 

अकेले में तुमने अपने बचपन के एक खिलौने को देखकर आँखें पोंछी 


अकेले में सोचना कभी 

तुम हमेशा पाप करते हो समूह में रहते हुए 

अपने जैसे ही दूसरे अकेले को मार कर 


पोशाक नहीं, बर्बरता है जो तुमने पहन रखी है । 


(१२)

युवाल नूह हरारी के लिए *

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युवाल तुम्हें भी लग रहा होगा 

ठीक से डी-कोड नहीं कर पाए समय 

और कह दिया,

सबसे लम्बा शांति काल है यह; बिना युद्धोंवाला 


टैंक सबसे आख़िर में सरकते हैं किसी भी युद्ध में 

जो शुरू हो चुका होता है किसी ताक़तवर के दिमाग़ में

किसी व्यापारी के लालच में 


दो युद्धों के बीच का समय 

कभी नहीं रहा पश्चाताप और विवेचन का समय 

करुणा और क्षमा का समय 

क्योंकि हथियारों के कारोबारी हथियारों के साथ ही बनाते रहते हैं  

उन्माद और घृणा भी 


युवाल 

फिर सोचो 

इतना सादा और सरल नहीं है इतिहास 

जितनी सरल है तुम्हारी बातें और मेरी बेटी पाती

की हँसी । 


( * हमारे समय के सबसे बड़े बौद्धिक और इतिहासकार )

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विनोद विट्ठल

जन्म: 10 अप्रैल 1970, जोधपुर, राजस्थान 


हिन्दी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लेखन। कविता के अलावा कहानी, व्यंग्य और नाटक लेखन भी। समाज विज्ञान, संस्कृति, सिनेमा, मीडिया, अध्ययन और फ़ोटोग्राफ़ी में भी गहरी रुचि।

कुछ प्रमुख कृतियाँ: भेड़, ऊन और आदमी की सर्दी का गणित (1993), पृथ्वी पर दिखी पाती (2018)