जन्म: 22 अगस्त 1924को जमानी, होशंगाबाद¸ (मध्य प्रदेश) में
निधन: 10 अगस्त 1995
प्रमुखकृतियाँ: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल, तिरछी रेखाएँ।
व्यंग्य को विधा का दरजा दिलवाने का श्रेय व परसाई जी को ही जाता है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी पैदानहीं करतीं¸ बल्कि हमें उन वास्तविकताओं के सामने खड़ा करतीहै¸ जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मनकी सच्चाईयाँ, सामाजिक पाखंडों औररूढ़िवाद को विवेक औरविज्ञान–सम्मत दृष्टि से नकार देने की ताकत उनके व्यंग्यों मे मिल जाती है। तत्सम में इस बार परसाई जी के तीन व्यंग्य – जो कहने को बहुत पुराने हैं किंतु निरंतर खोखलीहोती जा रहीहमारी व्यवस्था में आज भी प्रासंगिक हैं।
- प्रदीप कांत
खेती
सरकार ने घोषणा की कि हम अधिक अन्न पैदा करेंगे और एक साल में खाद्य में आत्मनिर्भर हो जायेंगे।
दूसरे दिन कागज के कारखानों को दस लाख एकड़कागज का आर्डर दे दिया गया। जब कागज आ गया, तो उसकी फाइलें बना दी गयीं।प्रधानमंत्री के सचिवालय से फाइल खाद्य विभाग को भेजी गयी। खाद्य विभाग नेउस पर लिख दिया कि इस फाइल से कितना अनाज पैदा होना है और अर्थ विभाग कोभेज दिया।
अर्थ विभाग में फाइल के साथ नोट नत्थी किये गये और उसे कृषि विभाग भेज दिया गया।कृषि विभाग में उसमें बीज और खाद डाल दिये गये और उसे बिजली विभाग को भेज दिया।बिजली विभाग ने उसमें बिजली लगायी और उसे सिंचाई विभाग को भेज दिया गया।
अब यह फाइल गृह विभाग को भेज दी गयी। गृहविभाग विभाग ने उसे एक सिपाही को सौंपा और पुलिस की निगरानी में वह फाइलराजधानी से लेकर तहसील तक के दफ्तरों में ले जायी गयी। हर दफ्तर में फाइलकी आरती करके उसे दूसरे दफ्तर में भेज दिया जाता।
जब फाइल सब दफ्तर घूम चुकी तब उसे पकीजानकर फूड कार्पोरेशन के दफ्तर में भेज दिया गया और उस पर लिख दिया गया किइसकी फसल काट ली जाए। इस तरह दस लाख एकड़ कागज की फाइलों की फसल पककर फूडकार्पोरेशन के पास पहुँच गयी।
एक दिन एक किसान सरकार से मिला और उसनेकहा- "हुजूर हम किसानों को आप जमीन, पानी और बीज दिला दीजिए और अपनेअफसरों से हमारी रक्षा कीजिए, तो हम देश के लिए पूरा अनाज पैदा कर देंगे।"
सरकारी प्रवक्ता ने जवाब दिया- "अन्न की पैदावार के लिए किसान की अब जरूरत नहीं है। हम दस लाख एकड़ कागज पर अन्न पैदा कर रहे हैं।"
एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह में उनकीमुख्यमंत्री से भेंट हो गयी। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था।मुख्यमंत्री ने उनसे कहा- आप मजे में तो हैं। कोई कष्ट तो नहीं है? लेखकने कह दिया- कष्ट बहुत मामूली है। मकान का कष्ट। अच्छा सा मकान मिल जाए, तो कुछ ढंग से लिखना-पढ़ना हो। मुख्यमंत्री ने कहा- मैं चीफ सेक्रेटरी सेकह देता हूं। मकान आपका ‘एलाट’ हो जाएगा।
मुख्यमंत्री ने चीफ सेक्रेटरी से कह दिया कि अमुक लेखक को मकान ‘एलाट’ करा दो।
चीफ सेक्रेटरी ने कहा- यस सर।
चीफ सेक्रेटरी ने कमिश्नर से कह दिया। कमिश्नर ने कहा- यस सर।
कमिश्नर ने कलेक्टर से कहा- अमुक लेखक को मकान ‘एलाट’ कर दो। कलेक्टर ने कहा- यस सर।
कलेक्टर ने रेंट कंट्रोलर से कह दिया। उसने कहा- यस सर।
रेंट कंट्रोलर ने रेंट इंस्पेक्टर से कह दिया। उसने भी कहा- यस सर
सब बाजाब्ता हुआ। पूरा प्रशासन मकान देने के काम में लग गया। साल डेढ़ सालबाद फिर मुख्यमंत्री से लेखक की भेंट हो गई। मुख्यमंत्री को याद आया किइनका कोई काम होना था। मकान ‘एलाट’ होना था।
उन्होंने पूछा- कहिए, अब तो अच्छा मकान मिल गया होगा?
लेखक ने कहा- नहीं मिला।
मुख्यमंत्री ने कहा- अरे, मैंने तो दूसरे ही दिन कह दिया था।
लेखक ने कहा- जी हां, ऊपर से नीचे तक ‘यस सर’ हो गया।
संस्कृति
भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था । एक दयालु आदमीरोटी लेकर उसके पास पहँचा और उसे दे ही रहा था कि एक-दूसरे आदमी ने उसकाहाथ खींच लिया । वह आदमी बड़ा रंगीन था।
पहले आदमी ने पूछा, "क्यों भाई, भूखे को भोजन क्यों नहीं देने देते?
रंगीन आदमी बोला, "ठहरो, तुम इस प्रकार उसका हित नहीं कर सकते । तुम केवलउसके तन की भूख समझ पाते हो, मैं उसकी आत्मा की भूख जानता हूँ । देखतेनहीं हो, मनुष्य-शरीर में पेट नीचे है और हृदय ऊपर । हृदय की अधिक महत्ताहै ।"
पहला आदमी बोला, "लेकिन उसका हृदय पेट पर ही टिका हुआ है । अगर पेट में भोजन नहीं गया तो हृदय की टिक-टिक बंद नहीं हो जायेगी !"
रंगीन आदमी हँसा, फिर बोला, "देखो, मैं बतलाता हूँ कि उसकी भूख कैसे बुझेगी !"
यह कहकर वह उस भूखे के सामने बाँसुरी बजाने लगा । दूसरे ने पूछा, "यह तुम क्या कर रहे हो, इससे क्या होगा ?"
रंगीन आदमी बोला, "मैं उसे संस्कृति का राग सुना रहा हूँ । तुम्हारी रोटीसे तो एक दिन के लिए ही उसकी भूख भागेगी, संस्कृति के राग से उसकी जनम-जनमकी भूख भागेगी ।"
वह फिर बाँसूरी बजाने लगा ।
और तब वह भूखा उठा और बाँसूरी झपटकर पास की नाली में फेंक दी ।