सिखा दिया तो तोता भी आदमी जैसी बात करता है। ठीक से नहीं सिखाया तो आदमी भी आदमी की तरह बात नहीं करते। (भावुक होना मना है। पृ.15)
लच्छू ने सोचा, डरकर भागने के लिए ही हैं पैर तो किस काम के...... जड़ जमाकर डटे रहना इससे बेहतर हैं। (उम्मीदों का कटहल पृ.17)
पिताजी ने बोझिल स्वर में कहा, बेटे जब प्रजा आजादी की तीव्र इच्छा से जाग उठती है तो बड़े से बड़ा तानाशाह भी घुटने टेकने पर मजबूर हो जाता है। (कबूतरों से भी खतरा है पृ.29)
इस तरह के हजारों सूत्र वाक्यों से भरी पुस्तक " कबूतरों से भी खतरा है" हमारे हाथ में है। 136 पृष्ठों की इस पुस्तक में 59 लघुकथाएं संग्रहित हैं। इन लघुकथाओं के लेखक एन उन्नी मूलतः मलयालम भाषी हैं। उनकी लगभग आधी सदी की हिंदी रचना यात्रा की प्रतिनिधि रचनाओं से इस पुस्तक का जन्म हुआ है। लेखक के बारे में लघुकथा आंदोलन के प्रतिनिधि हस्ताक्षर और हिंदी कथा के प्रतिष्ठित कथाकार बलराम लिखते हैं कि - "एन उन्नी की लघुकथाएं ऐसी हैं कि बीसवीं सदी के श्रेष्ठ लेखकों की सूची बनानी पड़े तो एन उन्नी का नाम किसी भी कीमत पर रखूंगा। लघु कथा को एक विशिष्टता प्रेमचन्द्र ने सौंपी तो दूसरी राजेंद्र यादव ने, तीसरी चित्रा मुद् गल और चौथी सुदर्शन वशिष्ठ ने तो पांचवीं विष्णु नागर एवं चैतन्य त्रिवेदी ने और छठी एन.उन्नी, मुकेश वर्मा तथा मालचंद्र ने। हिंदी लघुकथा को भाषा और भाव की जो गरिमा और ऊंचाई एन.उन्नी ने सौंपी है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। " बलराम के इन दावों की पुष्टि करतीं कई लधुकथाएं इस संग्रह को न केवल पठनीय बनातीं हैं, बल्कि पाठ के बाद पाठक के अंदर एक जिम्मेदार नागरिक का सृजन भी करतीं हैं। इस संदर्भ में शीर्षक कथा-कबूतरों से भी खतरा है के साथ भीमसेन पटेल और अयोध्या, सर्कस, तबाही, फसल बयानवे, आजादी,लंकेश डाट काम, राम-राज्य, राहें समाजवाद की, गुलाम, खबरदार और गेहूँ आदि कथाओं को देखा जा सकता है। इन कथाओं मे हमारे समय को एक जागरूक नागरिक की तरह से देखते हुए जिस जीवन-दृष्टि का अर्जन लेखक करता है वह उर्जा से भरपूर है।
एकदम साफ वैचारिक समझ और समाज, वर्ग और मूल्यों के अस्तित्व से खूब परिचित एन उन्नी के गहन विश्लेषण के सार के रूप में ये लघुकथाएँ जन्म लेती हैं। पात्रों का चयन, संवाद और लेखकीय वक्तव्य का सठीक प्रयोग और किस्सागोई की कलात्मकता की रक्षा एन उन्नी के लघुकथाओं की विशेषता है जिसका उदाहरण ऊपर संकलित अंशों में देखा जा सकता है। वे आज की चुटकुलेनुमा, स्थूल व्यंग्य और करूणा की मसालेदार दाँचे से अलग अपनी संरचना तैयार करते हैं। वे दैनिक जीवन से एक सरल प्रतीक उठाते हैं और आम बोलचाल की भाषा में उसे कथा की पोषाक पहनाते हैं। जिसे पहनते ही रचना विवेक से भर जाती है और जटिल से जटिल पहलुओं का रेशा-रेशा उघाड़ कर रख देती है। पितृत्व कथा में जब एक पिता अपनी पुत्र से कहता है - तेरे पास रूपया नहीं है तो फिर रात भर कुत्ता क्यों भौंका? तो इस छोटे से वाक्य में समाज का एक बहुत ही त्रासद पहलू उभर कर सामने आता है। जहाँ अपनी गरीबी की विवशता में एक पिता चुपचाप पढ़ा कसमसाता रहता है। और उसके बेटी के पास आनेवाले ग्राहकों को देख कर कुत्ते भौंकते रहते हैं। अंत में विवशता के प्रहार से पिता की संवेदना मर जाती है। इस तरह के सूत्र वाक्यों से भरी एन उन्नी की इन लघुकथाओं को पढ़ना आसान है लेकिन पढ़ने के बाद की मानसिक बेचैनी और दायित्वबोध पाठक को थोड़ा और जागरूक तथा मनुष्य बना देतीं हैं। रचनाकार की यह बड़ी सफलता है। सभी तरह के दांव-पेंच से दूर एवं बिना किसी नाम-दाम के लालच में पड़े, अपने रचना संसार में मस्त लेखक के हृदय की सरलता इन कहानियों से टपकती है। इस महत्वपूर्ण कथाकार की अगली रचना की प्यास जगाने में सफल यह पुस्तक हमारे समय की संग्रहणीय कृति है।
पुस्तक का नाम - कबतरों से भी खतरा है
लेखक – एन उन्नी
प्रकाशक - मित्तल एण्ड सन्स, म-32 आर्यानगर सोसायटी दिल्ली-92,
मूल्य - 200 रूपये
-प्रदीप मिश्र, 72ए, सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णा रोड, इन्दौर-09 मो: 0919425314126
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मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
मस्त लेखक के हृदय की सरलता: कबतरों से भी खतरा है
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