| 
नीरज गोस्वामी  
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट, संवेदनशील
  किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति। 
जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद
  फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत, कल का पता नहीं। 
लेखन स्वान्त सुखाय के लिए|  | 
नीरज गोस्वामी एक ऐसे गज़लकार हैं जो सादा सरल बात करते हैं। और इसका सबूत
  ये शेर है -  
बंद रखिए तो इक अँधेरा है 
खोलिए आँख तो सवेरा है 
सच यही है कि ऊजाला आपको क्या देगा यह आँख बन्द करके नहीं जाना जा सकता। नीरज बड़े सीधे ढंग से एक आम आदमी के डर
  को बयान कर देते हैं - 
साँप,
   रस्सी को समझ डरते रहे और सारी ज़िन्दगी मरते रहे 
तत्सम में इस बार नीरज गोस्वामी की कुछ ग़ज़लें  
प्रदीप कांत  | 
| 
1 
मैं राज़ी तू राज़ी है क्यों ग़ुस्से में क़ाज़ी है आंखें करती हैं बातें मुँह करता लफ्फाज़ी है जीतो हारो फर्क नहीं ये तो दिल की बाज़ी है तुम बिन मेरे इस दिल को दुनिया से नाराज़ी है कड़वा मीठा हम सब का अपना अपना माज़ी है दर्द अभी कम है ‘नीरज’ चोट अभी कुछ ताज़ी है 
2 
जड़ जिसने थी काटी प्यारे था अपना ही साथी प्यारे सच्चा तो सूली पर लटके लुच्चे को है माफ़ी प्यारे उल्टी सीधी सब मनवा ले रख हाथों में लाठी प्यारे सोचो क्या होगा गुलशन का माली रखते आरी प्यारे इक तो राहें काँटों वाली दूजे दुश्मन राही प्यारे भोला कहने से अच्छा है दे दो मुझको गाली प्यारे मन अमराई यादें कोयल जब जी चाहे गाती प्यारे तेरी पीड़ा से वो तड़पे तब है सच्ची यारी प्यारे तन्हा जीना ऐसा "नीरज" ज्यों बादल बिन पानी प्यारे 
3 
बंद रखिए तो इक अँधेरा है 
खोलिए आँख तो सवेरा है 
साँप् यादों के छोड़ देता
  है 
शाम का वक्त वो सँपेरा है 
फ़ासला इक बहुत जरूरी है 
यार के भेष में बघेरा है 
ताजपोशी उसी की होनी है 
मुल्क में जो बड़ा लुटेरा
  है 
मरहला है सरायफानी ये 
चार दिन का यहाँ बसेरा है 
रूह बेरंग क्यों ना हो
  साहब 
हर कोई जिस्म का चितेरा
  है 
शाम दर पे खड़ी है ऐ 'नीरज' 
अब समेटो जिसे बिखेरा है 
4 
समझेगा
  दीवाना क्या बस्ती क्या वीराना क्या ज़ब्त करो तो बात बने हर पल ही छलकाना क्या हार गए तो हार गए इस में यूँ झल्लाना क्या दुश्मन को पहचानोगे ? अपनों को पहचाना क्या दुःख से सुख में लज्ज़त है बिन दुःख के सुख पाना क्या ? इसका खाली हव्वा है दुनिया से घबराना क्या फूलों की सूरत झरिये पत्तों सा झड़ जाना क्या किसने कितने घाव दिये छोडो भी, गिनवाना क्या 'नीरज' सुलझाना सीखो मुद्दों को उलझाना क्या 
5 
हाल
  बेताब हों रुलाने को तू मचल कहकहे लगाने को मुश्किलों का गणित ये कैसा है बढ़ गयीं जब चला घटाने को दौड़ हम हारते नहीं लेकिन थम गये थे तुझे उठाने को साँस लेना मुहाल कर देगा सर चढ़ाया अगर ज़माने को बिजलियों का है खौफ़ गर तारी भूल जा आशियाँ बनाने को हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का चल दिए जब कहा निभाने को सबसे बेहतर है चुप रहें 'नीरज' जब नया कुछ न हो सुनाने को 
6 
 देखने में मकाँ जो पक्का है  दर हक़ीक़त बड़ा ही कच्चा है ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाये ये सिखाता हर एक बच्चा है छाँव मिलती जहाँ दोपहरी में वो ही काशी है वो ही मक्का है जो अकेले खड़ा भी मुस्काये वो बशर यार सबसे सच्चा है जिसको थामा था हमने गिरते में दे रहा वो ही हमको धक्का है आप रब से छुपायेंगे कैसे जो छुपाकर जहाँ से रक्खा है जब चले राह सच की हम ‘नीरज’ हर कोई देख हक्का बक्का है 
7 
 तन्हाई में गाया कर ख़ुद से भी बतियाया कर हर राही उस से गुज़रे ऐसी राह बनाया कर रिश्तों में गर्माहट ला मुद्दे मत गरमाया कर चाँद छुपे जब बदली में तब छत पर आ जाया कर जिंदा गर रहना है तो हर गम में मुस्काया कर नाजायज़ जब बात लगे तब आवाज़ उठाया कर मीठी बातें याद रहें कड़वी बात भुलाया कर ‘नीरज’ सुन कर सब झूमें ऐसा गीत सुनाया कर 
8 
 साँप,  रस्सी को समझ डरते रहे और सारी ज़िन्दगी मरते रहे खार जैसे रह गए हम डाल पर आप फूलों की तरह झरते रहे थाम लेंगे वो हमें ये था यकीं इसलिए बेख़ौफ़ हो गिरते रहे कौन हैं? क्यूँ है ?कहाँ जाना हमें? इन सवालों पर सदा घिरते रहे तिश्नगी बढ़ने लगी दरिया से जब तब से शबनम पर ही लब धरते रहे छांव में रहना था लगता क़ैद सा, इसलिये हम धूप में फिरते रहे रात भर आरी चलाई याद ने, रात भर ख़़ामोश हम चिरते रहे जिंदगी उनकी मज़े से कट गई रंग ‘नीरज’ इसमें जो भरते रहे 
9 
 बोल कर सच ही जियेंगे जो कहा करते हैं साथ लेकर वो सलीबों को चला करते हैं आ पलट देते हैं हम मिल के सियासत जिसमें हुक्मराँ अपनी रिआया से दगा करते हैं साथ जाता ही नहीं कुछ भी पता है फिर क्यूँ और मिल जाये हमें रब से दुआ करते हैं धूप दहलीज़ से कमरों में उन्हीं के पहुँची खोल दरवाज़े घरों के जो रखा करते हैं फूल हाथों में, तबुस्सम को खिला होंटों पर तल्खिया सबसे छुपाया यूँ सदा करते हैं दोष आंधी को भले तुमने दिये हैं लेकिन ज़र्द पत्ते तो सदा खुद ही गिरा करते हैं इक गुजारिश है कि तुम इनको संभाले रखना दिल के रिश्ते हैं ये मुश्किल से बना करते हैं चाह मंजिल की मुझे क्यूँ हो बताओ "नीरज" हमसफ़र बन के मेरे जब वो चला करते हैं 
10 
ज़िन्दगी
  में यहाँ- वहाँ भटके क्या मिला अंत में बता खटके आचरण में न बात ला पाये वक़्त ज़ाया किया उसे रटके आखरी जब उड़ान हो या रब मन हमारा ज़मीं पे ना अटके वार पीछे से कर गये अपने काश करते मुकाबला डटके संत है वो कि जो रहा करता भीड़ के संग भीड़ से कटके राह आसान हो गयी उनकी जो चलें यार बस जरा हटके बोलना सच शुरू किया जबसे लोग फिर पास ही नहीं फटके आजमाना न डोर रिश्तों की टूटती है अगर लगें झटके रहनुमा से डरा करो नीरज क्या पता कब कहाँ किसे पटके | |
सोमवार, 30 सितंबर 2013
खोलिए आँख तो सवेरा है - नीरज गोस्वामी की ग़ज़लें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)

 
