शनिवार, 17 जनवरी 2009

एक कविता उर्दू से


शीन काफ़ निजाम मेरे प्रिय शायरों में से एक हैं. २६ नवम्बर १९४७ को जोधपुर, राजस्थान में जन्मे शीन काफ़ निजाम उर्दू शायरी में एक अहम नाम है. इस बार तत्सम में इनकी एक प्रेम कविता आप सबके पढ़ने के लिये. (शायद प्रेम की संवेदनाएँ और गहन हो जाएँ इसलिये अपना एक छायाचित्र भी साथ मे लगा दिया है)


चाँद सा प्यार


जाने, कितने लम्हे बीते-

जाने, कितने साल हुए हैं-

तुम से बिछड़े!


जाने कितने-

समझौतों के दाग़ लगे हैं

रूह प’ मेंरी!


जाने क्या-क्या सोचा मैं ने

खोया, पाया

खोया मैं ने

ज़ख्मो के जंगल पर लेकिन

आज-

अभी तक हरियाली है।


तुम ने

ठीक कहा था

उस दिन­­-

‘प्यार – चाँद सा ही होता है

और नहीं बढने पाता तो

धीरे-धीरे

खुद ही

घटने लग जाता है। ’


(शायर के १९९६ में वाग्देवी प्रकाशन से प्रकाशित संकलन ‘सायों के साये में’ से साभार)

6 टिप्‍पणियां:

Dev ने कहा…

तुम ने
ठीक कहा था
उस दिन­­-
‘प्यार – चाँद सा ही होता है
और नहीं बढने पाता तो
धीरे-धीरे
खुद ही
घटने लग जाता है।


Bahut sundar kavita...par bhai pyar chand ki tarha ki hota hai....gahatne ke bad vah phir se badhane lagata hai....

Lovable poem...
Regards....

Bahadur Patel ने कहा…

तुम ने ठीक कहा था उस दिन­­- ‘प्यार – चाँद सा ही होता है और नहीं बढने पाता तो धीरे-धीरे खुद ही घटने लग जाता है। ’

bahut achchhi kavita padhawai aapane. thanx.

परेश टोकेकर 'कबीरा' ने कहा…

مُبارکباد اُستاد

प्रदीप कांत ने कहा…

परेश भाई,

लगता है कि मुझे भी उर्दू सीखनी पडेगी.

Krishna Patel ने कहा…

bahut bahut achchhi kavita hai.

Rajeysha ने कहा…

‘प्यार – चाँद सा ही होता है
जब पूरा बढ जाता है तो
धीरे-धीरे खुद ही घटने लग जाता है।