शनिवार, 13 जून 2009

कुमार विकल की दो कविताएँ

कुमार विकल हिन्दी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। पंजाब के नये लेखकों में महत्वपूर्ण व वर्ष 1992 में पहल सम्मान से सम्मानित कुमार विकल के तीनो कविता संग्रह ‘एक छोटी सी लड़ाई’, ‘रंग खतरे में है’ और ‘निरूपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ’ विशेष रूप से चर्चित रहे। तत्सम में इस बार कुमार विकल की छोटी छोटी किन्तु दो महत्वपूर्ण कविताएँ…
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फर्क़
एक छोटी सी बात को लेकर
मैं बहुत रोया
रोने के बाद बहुत सोया
सोकर उठा तो बहुत सोचा
क्या हर आदमी रोता है?
मार्क्स एंगिल्स और लेलिन भी रोये थे ?

हाँ ज़रूर रोये थे
लेकिन, रोने के बाद कभी नहीं सोये थे
अगर वे इस तरह सोये रहते
तो दुनिया के करोड़ों लोग कभी जाग पाते।

चिड़िया

चिड़ियों के बारे में कविता
लिखना ए
क सहज बात नहीं है
परिंदों के बारे में कविता
ल्खिने से पहले
सालिम अली से मिलना
या उनकी पुस्तकें पढ़ना बहुत ज़रूरी है
क्योंकि वही आपको बता सकता है
कि कौन-सी चिड़िया आपसे
दोस्ती करती है
और कौन-सी दुश्मनी
वरना साधारण आदमी की
उम्र यह बात जानने में बीत जाती है
कि कौन-सी चिड़िया दोस्त होती है
कि कौन-सी चिड़िया दुश्मन होती है
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5 टिप्‍पणियां:

Arun Aditya ने कहा…

vaah pradeep, kumar vikal ki achchhi kavita padhvaai.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

कुमार विकल मेरे प्रिय कवियों में से हैं अभी दख़ल मे उनकी कविता दुख लगायी थी।
धन्यवाद

sandhyagupta ने कहा…

Dono hi kavitayen bahut achchi lagi.

बेनामी ने कहा…

कुमार विकल की दो बेहतरीन कविताएं पढ़वाने के लिए शुक्रिया...

भागीरथ परिहार जी के जरिए आप तक पहुंचना संभव हुआ...

अच्छा लगा...

sukhdev ने कहा…

Greattttttttt ... ... ...

Sukhdev.