खलील जिब्रान
6 जनवरी 1883 को माउंट लेबनान , सीरिया में जन्में संसार के श्रेष्ठ चिंतक खलील जिब्रान अरबी , अंगरेजी फारसी के ज्ञाता , दार्शनिक और चित्रकार भी थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश -विदेश में तथा हिन्दी , गुजराती , मराठी , उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई , जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे और इसी कारण उन्हे समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन का शिकार होना पड़ा और उन्हे जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। 10 अप्रैल 1931 को न्यूयॉर्क मेंकार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकरउनका देहांत हो गया। तत्सम में इस बारखलील जिब्रान की कुछ लघुकथाएँ ...
- प्रदीप कान्त
1
मेजबान
' कभी हमारे घर को भी पवित्र करो। ' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली -भाली भेड़ से कहा।
' मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता। ' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
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2
तीन चींटियाँ
एक व्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था । तीन चीटियाँ उसकी नाक पर आकर इकट्ठी हुईं । तीनों ने अपने -अपने कबीले की रिवायत के अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया और फिर खड़ी होकर बातचीत करने लगीं।
पहली चीटीं ने कहा , “ मैंने इन पहाड़ों और मैदानों से अधिक बंजर जगह और कोई नहीं देखी । ” मैं सारा दिन यहाँ अन्न ढ़ूँढ़ती रही , किन्तु मुझे एक दाना तक नहीं मिला। ”
दूसरी चीटीं ने कहा , मुझे भी कुछ नहीं मिला , हालांकि मैंने यहाँ का चप्पा -चप्पा छान मारा है । मुझे लगता है कि यही वह जगह है , जिसके बारे में लोग कहते हैं कि एक कोमल , खिसकती ज़मीन है जहाँ कुछ नहीं पैदा होता।
तब तीसरी चीटीं ने अपना सिर उठाया और कहा , मेरे मित्रो ! इस समय हम सबसे बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं , जिसका शरीर इतना बड़ा है कि हम उसे पूरा देख तक नहीं सकते । इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम उसका अनुमान नहीं लगा सकते । इसकी आवाज़ इतनी उँची है कि हमारे कान के पर्दे फट जाऐं । वह सर्वव्यापी है। ”
जब तीसरी चीटीं ने यह बात कही , तो बाकी दोनों चीटियाँ एक -दूसरे को देखकर जोर से हँसने लगीं ।
उसी समय वह व्यक्ति नींद में हिला । उसने हाथ उठाकर उठाकर अपनी नाक को खुजलाया और तीनों चींटियाँ पि स गईं।
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3
बिजली की कौंध
एक तूफानी रात में , एक ईसाई पादरी अपने गिरजाघर में था । तभी एक गैर - ईसाई स्त्री उसके पास आई और कहने लगी , “ मैं ईसाई नहीं हूँ । क्या मुझे नर्क की अग्नि से मुक्ति मिल सकती है ?”
पादरी ने उस स्त्री के ध्य़ान से देखा और य़ह कहते हुए उत्तर दिया, “ नहीं , ईसाई धर्म के अनुसार मुक्ति केवल उन लोगों को ही मिलती है जिनके अनुसार शरीर और आत्मा का शुद्धिकरण करके दीक्षा दी गई है। ”
जैसे ही पादरी ने ये शब्द कहे , उसी समय गिरजाघर पर आकाश से तेज गर्जना के साथ बिजली गिरी और उस गिरजाघर में आग लग गई।
शहर के लोग भागते हुए आए और उस स्त्री को बचा लिया , किंतु पादरी को आग ने अपना ग्रास बना लिया।
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4
मोती
एक बार , एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा , “ मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है। इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ। ”
दूसरी सीप ने अंहकार भरे स्वर में कहा , “ शुक्र है . भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है । मैं अंदर और बाहर सब तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ। ”
उसी समय वहाँ से एक केकड़ा गुजर रहा था । उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से , जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी , कहा , “ हाँ , तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो ; किन्तु तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब मोती है। ”
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5
दूसरी भाषा
मुझे पैदा हुए अभी तीन ही दिन हुए थे और मैं रेशमी झूले में पड़ा अपने आसपास के संसार को बड़ी अचरज भरी निगाहों से देख रहा था । तभी मेरी माँ ने आया से पूछा , “ कैसा है मेरा बच्चा ?”
आया ने उत्तर दिया , “ वह ख़ूब मज़े में है । मैं उसे अब तक तीन बार दूध पिला चुकी हूँ। मैंने इतना ख़ुशदिल बच्चा आज तक नहीं देखा। ”
मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैं चिल्लाने लगा , “ माँ यह सच नहीं कह रही । मेरा बिस्तर बहुत सख़्त है और , जो दूध इसने मुझे पिलाया है वह बहुत ही कड़वा था और इसके स्तनों से भयंकर दुर्गंध आ रही है । मैं बहुत दुखी हूँ। ”
परंतु न तो मेरी माँ को ही मेरी बात समझ में आई और न ही उस आया को ; क्योंकि मैं जिस भाषा में बात कर रहा था वह तो उस दुनिया की भाषा थी जिस दुनिया से मैं आया था।
और फिर जब मैं इक्कीस दिन का हुआ और मेरा नामकरण किया गया , तो पादरी ने मेरी माँ से कहा , “ आपको तो बहुत ख़ुश होना चाहिए ; क्योंकि आपके बेटे का तो जन्म ही एक ईसाई के रूप में हुआ है। ”
मैं इस बात पर बहुत आश्चर्यचकित हुआ । मैंने उस पादरी से कहा , “ तब तो स्वर्ग में तुम्हारी माँ को बहुत दुखी होना चाहिए ; क्योंकि तुम्हारा जन्म एक ईसाई के रुप में नहीं हुआ था। ”
किंतु पादरी भी मेरी भाषा नहीं समझ सका।
फिर सात साल के बाद एक ज्योतिषी ने मुझे देखकर मेरी माँ को बताया , “ तुम्हारा पुत्र एक राजनेता बनेगा और लोगों का नेतृत्व करेगा। ”
परंतु मैं चिल्ला उठा , “ यह भविष्यवाणी गलत है ; क्योंकि मैं तो एक संगीतकार बनूंगा । कुछ और नहीं , केवल एक संगीतकार। ”
किंतु मेरी उम्र में किसी ने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया । मुझे इस बात पर बहुत हैरानी हुई ।
तैंतीस वर्ष बाद मेरी माँ , मेरी आया और वह पादरी सबका स्वर्गवास हो चुका है , ( ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे ), किंतु वह ज्योतिषी अभी जीवित है । कल मैं उस ज्योतिषी से मंदिर के द्वार पर मिला । जब हम बातचीत कर रहे थे , तो उसने कहा , “ मैं शुरु से ही जानता था कि तुम एक महान संगीतकार बनोगे । मैंने तुम्हारे बचपन में ही यह भविष्य वाणी क र दी थी । तुम्हारी माँ को भी तुम्हारे भविष्य के बारे में उसी समय बता दिया था । ”
और मैंने उसकी बात का विश्वास कर लिया क्योंकि अब तक तो मैं स्वयं भी उस दुनिया की भाषा भूल था।
( लघुकथाएँ : गद्यकोश से साभार , चित्र : गुगल सर्च से साभार )
11 टिप्पणियां:
कहानियां अच्छी लगीं धन्यवाद|
खलील जिब्रान साहब की लघुकथायें बहुत बढ़ियां होती हैं... धन्यवाद..
रोचक पोस्ट...
Maza aa gaya ye lagh kathayen padhke! Rochak aur gyan vardhak,donohi hain!
अच्छी लघुकथाएं हैं। कभी एन. उन्नी की लघुकथाएं भी पढ़वाओ। अभी उन्नी जी की किताब भी आई है।
Pradeep,
Please post some Hindi translation from Khalil Gibran's Prophet. To be very specific
"Your children are not your children they are the sons and daughters of life............."
प्रिय बंधुवर प्रदीप कांत जी
नमस्कार !
अच्छी पोस्ट के लिए बधाई !
खलील जिब्रान
की प्रेरक बोध कथाएं जितनी बार पढ़ें , नये अर्थ सामने आते हैं ।
आपको और परिवारजनों को दीवाली की हार्दिक मंग़लकामनाएं !
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान !
लक्ष्मी बरसाए कृपा , बढ़े आपका मान !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रिय बंधुवर प्रदीप कांत जी
नमस्कार !
अच्छी पोस्ट के लिए बधाई !
खलील जिब्रान
की प्रेरक बोध कथाएं जितनी बार पढ़ें , नये अर्थ सामने आते हैं ।
आपको और परिवारजनों को दीवाली की हार्दिक मंग़लकामनाएं !
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान !
लक्ष्मी बरसाए कृपा , बढ़े आपका मान !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bhai maza aa gaya.
very nice
Mahakavi aour darshnik ko logon tak pahuchane ka jo karya aapne kiya hai,woh prashansneeya hai.Aise mahapurshon ke sandarbhon main bhasha,shaily vyakaran ki galtiyan bahut khalti hain.Kirpaya is karya ka proof-reading krayen.
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