| उत्पल बेनर्जी 
 हिन्दी साहित्य में स्नात्कोत्तर उपाधि। ‘नज़रुल और निराला की क्रांतिचेतना’ पर लघु शोध-प्रबंध। मूलत: कवि। पहला कविता-संग्रह ‘लोहा बहुत उदास है’ वर्ष २००० में सार्थक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित। विगत कई वर्षों से बँगला के महत्त्वपूर्ण साहित्य के हिन्दी अनुवाद में संलग्न। वर्ष २००४ में संवाद प्रकाशन मुंबई-मेरठ से अनूदित पुस्तक ‘समकालीन बंगला प्रेम कहानियाँ’, वर्ष २००५ में यहीं से ‘दंतकथा के राजा रानी’ (सुनील गंगोपाध्याय की प्रतिनिधि कहानियाँ), ‘मैंने अभी-अभी सपनों के बीज बोए थे’ (स्व. सुकान्त भट्टाचार्य की श्रेष्ठ कविताएँ) तथा ‘सुकान्त कथा’ (महान कवि सुकान्त भट्टाचार्य की जीवनी) के अनुवाद पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित। वर्ष २००७ में भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली से ‘झूमरा बीबी का मेला’ (रमापद चौधुरी की प्रतिनिधि कहानियों का हिन्दी अनुवाद) तथा द्रोणाचार्य के जीवनचरित पर आधारित पुस्तक ‘द्रोणाचार्य’ का रे-माधव पब्लिकेशंस, गाज़ियाबाद से प्रकाशन। अनुवाद की तीन पुस्तकें प्रकाशनाधीन। 
 देश की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं तथा समाचार-पत्रों में कविताओं तथा अनुवादों का प्रकाशन। कविताओं का आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारण। वर्ष २००५ में दिल्ली में आयोजित सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में बँगला कविता के हिन्दी अनुवादक के रूप में दिल्ली आकाशवाणी केंद्र द्वारा आमंत्रित।  संगीत तथा रूपंकर कलाओं में गहरी दिलचस्पी। मन्नू भण्डारी की कहानी पर आधारित टेलीफ़िल्म 'दो कलाकार` में अभिनय। कई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मों के निर्माण में भिन्न-भिन्न रूपों में सहयोगी। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन केंद्रों द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्रियों कें लिए आलेख लेखन। 'प्रगतिशील लेखक संघ` इन्दौर के सदस्य तथा भूतपूर्व सचिव। 'इप्टा` के सदस्य। 
 नॉर्थ कैरोलाइना स्थित अमेरिकन बायोग्राफ़िकल इंस्टीट्यूट के सलाहकार मण्डल के मानद सदस्य तथा रिसर्च फ़ैलो। बाल-साहित्य के प्रोत्साहन के उद्देश्य से सक्रिय ‘वात्सल्य फ़ाउण्डेशन’ नई दिल्ली की पुरस्कार समिति के निर्णायक मण्डल के सदस्य। 
 सम्प्रति: डेली कॉलेज, इन्दौर, मध्यप्रदेश में हिन्दी अध्यापन। सम्पर्क: बंगला नं. १०, डेली कॉलेज कैम्पस, इन्दौर - ४५२ ००१, मध्यप्रदेश। फोन: 0731-2700902/94259 62072 Email: utpalbanerjee_1@yahoo.com    | 
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 उत्तर आधुनिकता के कदम बढ़े आ रहे हैं। रिश्तों के   खत्म होने की घोषणाएँ शुरू हो गई हैं और पूंजी कमाने की व्यस्तता और होड़ के   सामने प्रेम व्रेम के लिये वक़्त कहाँ बच रहा है? ऐसे में भी कोई प्रेम कर रहा   हो, कोई प्रेम कविता लिख रहा हो और कोई प्रेम कविता पढ़ कर ही प्रेम के बचे रहने   की आस कर रहा हो। प्रेम - जिसके होने से ही बैर न होने का अहसास बचता है।  तत्सम में इस बार प्रेम की इसी शास्वत अनुभूति को   दर्ज करती उत्पल बेनर्जी की कुछ प्रेम कविताएँ... - प्रदीप कांत | 
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 1 लड़की 
 लड़की को बोलने दो लड़की   की भाषा में  सुदूर नीलाकाश में खोलने   दो उसे  मन की खिड़कियाँ,  उस पार शिरीष की डाल   पर बैठा है  भोर का पहला पक्षी  पलाश पर उतर आई है प्रेमछुई   धूप  उसे गुनगुनाने दो कोई   प्रेमगीत  सजाने दो सपनों के वन्दनवार    बुनने दो कविता  भाषा के सूर्योदय में   मन की बात कहने दो उसे  अन्तहीन पीड़ा के नेपथ्य   से फूठने दो  निशिगन्धा की किलकारियाँ,  सदियों से बँधी नाव   को जाने दो  सागर की उत्ताल तरंगों   में  आदर्श शिखरों से उतर   आना चाहती है लड़की  भविष्य की पगडंडियों   पर  उसे रोको मत  उसे चुनने दो झरबेरी   सीप और मधुरिमा  करने दो उसे उपवास और   प्रार्थनाएँ  रखने दो देहरी पर दीप    उसे मत रोको प्रेम करने   से,
 
 अगर सचमुच बचाना चाहते   हो  सृष्टि की सबसे सुन्दर   कविता को  तो ... आग की ओर जाती   लड़की को रोको  रोको -- उसके जीवन में दोस्त की तरह प्रवेश करते  दुःख और विवशता को  रोको उसे दिशाहीन होकर   नदी में डूबने से  रोको – ‘सब कुछ’ को   ‘कुछ नही’ हो   जाने से! ००००० 
 2 कविता से बाहर 
 एक दिन अचानक हम चले जाएँगे  तुम्हारी इच्छा और घृणा से भी दूर  किसी अनजाने देश में  और शायद तुम जानना भी न चाहो  हमारी विकलता और अनुपस्थिति के बारे में!
 
 हो सकता है इस सुन्दर पृथ्वी को छोड़कर  हम चले जाएँ दूर .... नक्षत्रों के देश में  फिर किसी शाम जब आँख उठाकर देखो  चमकते नक्षत्रों के बीच तुम शायद पहचान भी न पाओ    कि तुम्हारी खिड़की के ठीक सामने हम ही हैं  अपने वरदानों और अभिशापों में बँधे...
 
 हम वहीं दूर से तुम्हें देखते रहेंगे  अपना वर्तमान और अतीत लेकर  अपने उदास अकेलेपन में  भाषा और कविता से बाहर  सृष्टि की अंतिम रात तक 
 चाहत के आकाश में  उदास और अकेले!! ००००० 
 3 वह प्रेम करेगी  वह प्रेम करेगी -  और चाँद खिल उठेगा आकाश में  सुनाई देगा बादलों का कोरस,  वह प्रेम करेगी -  और मैं भेज दूँगा बादलों को  जलते हुए रेगिस्तानों में,  वह प्रेम करेगी -  और आकाश में दिखाई देंगे इंद्रधनुष के सातों रंग    वह प्रेम करेगी -  और थम जाएगा हिरोशिमा का ताण्डव  लातूर का भूकम्प  अफ्रीका के अरण्य में पहली बार उगेगा सूरज  सागर की छाती पर फिर कोई जहाज नहीं डूबेगा  फिर विसुवियस के पहाड़ आग नहीं उगलेंगे,
 
 वह प्रेम करेगी -  और मैं देखूँगा अनन्त में डूबा आकाश  देखूँगा -- मोर के पंखों का रंग,  प्यार करुँगा -- जिन्हें कभी किसी ने प्यार नहीं   किया,  देखूँगा -- लहरों के उल्लास में  उफनती मछलियाँ  पंछी ... विषधर साँपों के अनोखे खेल  ऋतुमती पृथ्वी  झीलों का गहरा पानी  अज्ञात की ओर जाती अनन्त चीटियों की कतार,  किसी प्राचीन आकाशगंगा में हम दोनों खेलेंगे  चाँद और सूरज की गेंद से,
 
 और मैं उसे भेजूँगा  अंजुरी भर धूप  एक मुट्ठी आसमान  एक टुकड़ा चाँद  थोड़े-से तारे,
 
 वह प्रेम करेगी --  और किसी दिन  जाकर न लौट पाने की  असंभव दूरी से  जो आख़िरी बार हाथ हिलाकर  मन ही मन केवल कह सकूँ विदा ...
 
 जीवन के किसी मधुरतम क्षण में  तिस्ता किनारे सौंपना मुझे  तुम्हारी आँखों का एक बूँद पानी  और हृदय का थोड़ा-सा प्यार!  ००००० छायाचित्र: प्रदीप कांत 
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शुक्रवार, 12 नवंबर 2010
उत्पल बेनर्जी की प्रेम कविताएँ
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7 टिप्पणियां:
वह प्रेम करेगी --
और मैं उसे भेजूँगा
अंजुरी भर धूप
एक मुट्ठी आसमान
एक टुकड़ा चाँद
थोड़े-से तारे...
उत्पल बनर्जी की कविताओं उषाकाल का उजाला-जैसा है। उनकी पहली कविता 'लड़की' तो जैसे सार्वकालिक है। मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
pradeep ji bahut sundar post badhai
very nice post
बहुत सुंदर कविताएं
उत्पल बनर्जी को मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई।
बहुत सुंदर भावों को प्रस्तुत करती कवितायेँ ..
शुभकामनायें
बहुत अच्छी कविताएँ
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