1 भाषा
प्रेम ही प्रेम की भाषा।
प्रेम ही प्रेम की अभिलाषा।
प्रेम ही प्रेम ही प्रत्याशा।
प्रेम ही प्रेम ही परिभाषा। 00
2 गणित
प्रेम का गणित कुछ ऐसा
उलझ गया तो सुलझ गया।
जो सुलझाने बैठा उलझ गया। 00 3 राजनीति
राजनीति में प्रेम एक कुटनीति मगर प्रेम में राजनीति अनीति सिर्फ अनीति। 00
4 इतिहास
इतिहास की आँख में हमेशा किरकिरीसा चुभता रहा है प्रेम। फिर भी इतिहास में दाखिल होता रहा है प्रेम। 00
5 दर्शन
प्रेम जहाँ से शुरू होता है दुनिया भी शुरू होती है या यूँ भी कह लें कि जहाँ प्रेम खत्म होता है दुनिया भी हो जाती है खत्म। 00
6 अर्थशास्त्र
कल तक तो नहीं था
आज जरूर है प्रेम में अर्थशास्त्र और यही मेरी चिंता उनका दुःख है। 00
7 मनोविज्ञान
प्रेम किया तो क्या किया?
प्रेम नहीं किया तो क्या किया? 00
8 भूगोल
प्रेम के भवसागर से उतरा वही पार देह के भूगोल से जो रहा निरंकार। 00
9 पर्यावरण
न रंग है न गंध है न मादकता प्रकृत अलान्कारुपकरण नहीं।
चलो यहाँ से चले प्रेम के लिए यह अनुकूल पर्यावरण नहीं। 00 |
मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011
प्रदीप जिलवाने की प्रेम कविताएँ
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9 टिप्पणियां:
Sabhi rachnayen badee hee anoothee hain!
भाई प्रदीप जी आपके ब्लॉग पार अद्भुत प्रेम कविताएं पढ़ने को मिलीं आपको और जिलावने जी को बधाई |
छोटी-छोटी आकर्षक कविताएं
prem ka darshan aur bhoogol badhiya hai.
chhoti magar gahari kavitaye
chhoti magar gahari kavitaye
भाई प्रदीप कांत जी, प्रदीप जिलवाने जी की प्रेम कविताएं पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। प्रेम पर बहुत ही जीवन्त कविताएं लगीं। आपको और कवि प्रदीप जिलवाने जी को बधाई !
prem ke itne vividh aayam hain in kavitaon men ki ek bar ko apne saare kiye par shanka hone lagti hai--kya sachmuch apne samay men hamne thoda dekha aur jyada chhod diya?...ap pachhtaaye hot ka ????
yadvendra
pradeep jilwane g ko adbhut anuthi aur anmol prem kavitao k liye badhai
sath hi pradeep kant g ko bhi
jinke madhyum se prem ki
bhasha,
ganit,
rajniti,
itihas,
darshan,
arthshastra,
manovigyan aur
bhugol ka
hame gyan ho paya....
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