नए साल का एक महीना तो निकल गया है। दूसरा महीना भी वैसा ही लग रहा है। वही बढ़ती महंगाई, अपराध, सब कुछ तो वही... । बदला क्या ? इब्राहिम अश्क के इस शेर की तरह
वही हमेशा का आलम है, क्या किया जाऐ
जहाँ से देखिये कुछ कम है, क्या किया जाऐ
बताईये क्या किया जाऐ। चलो कुछ करेंगे तो सही हो ही जाऐगा, उम्मीद तो की ही जा सकती है। फिलहाल तो कुछ कर नहीं रहा हूँ, इसलिये तत्सम में इस बार अपनी एक ग़ज़ल आपके लिये...। यह ग़ज़ल जनसत्ता वार्षिक अंक 2010 में छपी है।
- प्रदीप कांत
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कहाँ हमारा हाल नया है
कहने को ही साल नया है
कहता है हर बेचने वाला
दाम पुराना माल नया है
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
इन्तज़ार है रोटी का बस
आज हमारा थाल नया है
लोग बेसुरे समझाते हैं
नवयुग का सुर-ताल नया है
नहीं सहेगा मार दुबारा
गाँधी जी का गाल नया है
- प्रदीप कान्त
(छायाचित्र: प्रदीप कान्त)
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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
कहने को ही साल नया है...
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10 टिप्पणियां:
bahut hi badiya
Sach me bahut khoob!Pata nahee,ki,halaat behtar hain ya badttar!
bahut hee badhiyaa gajal hai. din mahine saal gujarte jaayenge, puraane ko nayaa banaane ka bazaar ka paitraa naya hai.
pushpendra dubey
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
ADBHUT...ADBHUT!
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
एक-एक शे’र मेम दम है। गेय ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया।
chhe chhe jan ek kuthariya me, kahte fir bhi hall nya hai.
matarayen tou fit hai na pradeep bhai.
बहुत सुंदर गज़ल भाई प्रदीप जी बधाई |
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
इन्तज़ार है रोटी का बस
आज हमारा थाल नया है
शे’र मे दम है।
इन्तज़ार है रोटी का बस
आज हमारा थाल नया है
लाजवाब शे’र....
यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई |
बहुत सुंदर गज़ल| धन्यवाद|
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