बुधवार, 2 मई 2012

किसी न किसी बहाने की बातें

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-          प्रदीप कांत

किसी न  किसी बहाने  की बातें
ले   देकर   ज़माने  की  बातें

उसी  मोड़ पर गिरे थे  हम भी
जहाँ थी सम्भल  जाने की बातें

रात अपनी, गुज़ार दें ख्व़ाबों में
सुबह फिर वही  कमाने की बातें

समझें न  समझें  हमारी मर्ज़ी
बड़े  हो,  कहो सिखाने की बातें

मैं फ़रिश्ता नहीं, न होंगी मुझसे
रोकर कभी भी  हँसाने की बातें

-          प्रदीप कांत

6 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें

बहुत खूब...वाह

नीरज

विजय गौड़ ने कहा…

अच्छी रचना है प्रदीप भाई\ बधाई\

बलराम अग्रवाल ने कहा…

वाकई खूबसूरत।

varsha ने कहा…

उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें

कविता रावत ने कहा…

किसी न किसी बहाने की बातें
ले देकर ज़माने की बातें
उसी मोड़ पर गिरे थे हम भी
जहाँ थी सम्भल जाने की बातें
..
ek sur mein padhi-samjhi jaane wali sundar rachna..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

"रात अपनी, गुज़ार दें ख्व़ाबों में |
सुबह फिर वही कमाने की बातें |"
अच्छे शेर...उम्दा ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...