बुधवार, 30 जुलाई 2014

हम ये नद्दी नहर करेंगे क्या ? - प्रकाश सिंह अर्श की ग़ज़लें


भूख को टाला गया कल के लिये,
आज का ऐसे गुज़ारा हो गया !!
ये शेर कहने वाले प्रकाश सिंह अर्श, मूलतः बिहार के निवासी हैं और कहते हैं कि पिछले चंद सालों से ग़ज़ल सीखने और लिखने की कोशिश कर रहें हैं।  फिलहाल दिल्ली में एक निज़ी कंपनी में ए वि पी के तौर पर कार्यरत हैं। इस बार तत्सम में प्रकाश सिंह अर्श की कुछ ग़ज़लें...
-    प्रदीप कांत
1 
रात को लूट कर करेंगे क्या ?
कल ये तारे सहर करेंगे क्या ?
छन से आ जाये वो भला घर तो ,
हम उदासी से तर करेंगे क्या ?
चाँद तारों की बात क्यूँ करना ,
आसमां पर बसर करेंगे क्या ?
ले तो आये हैं साथ उसूलों को
इन उसूलों का पर करेंगे क्‍या
छेड़खानी करेंगे हम ख़ुद से ,
खुद को फिर दर ब दर करेंगे क्‍या
चल चले दूर का सफ़र है यह ,
हम यहीं दोपहर करेंगे क्या ?
हैं समंदर गिरफ्त में अपने ,
हम ये नद्दी नहर करेंगे क्या ?
इक सिवा चाहने के हम तुमको ,
और फिर उम्र भर करेंगे क्या ?
2
नदी का गाल छूने सज संवर कर,
पहाडी धूप निकली है सफ़र पर !!
बुने ही जा रही खाबों के धागे
अमां ये आँख हैं या कोई बुनकर !!
मुझे बंजर बनाने में लगे हैं ,
तेरी आंखों के ये दो दो  समंदर
तुझे मालूम क्‍या है ? कुछ नहीं है
तेरी बाते हुआ करती हैं अक्सर !!
जवां दहलीज़ पर रखते क़दम ही ,
निकल आये नज़र के सारे पत्थर!!
कई यादों का मुझमें है बसेरा
मैं कहने को तो हूं बस एक खंडहर
मैं खुद से शाम से ही लड़ रहा हूँ ,
अंधेरा बढ़ रहा है मेरे भीतर
सुना जब ये कि पतझड़ आएगा अब
शजर से चल पड़े पत्‍तों के लश्‍कर
बदन चांदी सा चमका है नदी का,
उतर आया कोई चांद उसके  अंदर
3
तुझसे ही रंजिशें भी तेरा ख़्याल भी !
इक पल फिराक़ भी है इक पल विसाल भी
कमबख्‍़त इश्‍क़ ने ये क्‍या हाल कर दिया
जीना मुहाल भी हैजी कर मलाल भी !!
सोंचू तो क्या नहीं है,देखूँ तो क्या नहीं ,
ख़ुद का जवाब भी हैख़ुद का सवाल भी !!
सूरत है उसकी ऐसी तौबा की हाय हाय,
चेहरा जमाल भी हैआंखें ग़जाल भी !!
गर्दिश में देख ली हैं दोनों ही सूरतें
दुनिया की चाल भी थी दुनिया निढाल भी !!
दिल का गुबार भी कुछ लड़ कर निकाल लो
कर लो कहा सुनी से रिश्ता बहाल भी !!
4
आईना थाकिरचा किरचा हो गया,
मैं अकेला सबका हिस्‍सा हो गया
हो चुकी है अब तो हद बर्दाश्‍त की
अब तो पानी सर से ऊंचा हो गया
इक वसीयत बनते बनते रह गई,
शह्र भर का रिश्ता पैदा हो गया !!
जब भी खोला है दरीचा शाम को
खुश्‍बू खुश्‍बू सारा कमरा हो गया
आईना देखा जो तेरी याद में,
अक्स मेरा तेरे जैसा हो गया !!
ग़म मेरे मुझसे क़िनारा कर गये ,
रफ़्ता रफ़्ता मैं अधूरा हो गया !!
दे दिया उन्वान उसने प्यार को ,
और मेरा इश्क़ तारा हो गया ! !
भूख को टाला गया कल के लिये,
आज का ऐसे गुज़ारा हो गया !!
5
मैं हूँ इसी तलाश में अच्छी बुरी सही
कोई ख़ुशी तो पास हो छोटी बड़ी सही
कैसे कहूँ कि ख़ाब मयस्सर नहीं मुझे
आँखें उधार ले न सकीं नींद ही सही
इमकाने-हिज्र ले गया चेहरे की कुछ चमक
वहशत की आंधियों ने उड़ायी रही सही
तस्वीर तेरी छूने न दूँगा किसी को मैं
हो चाहे क्यूँ न घर की ये दीवार ही सही
तुझसे तअल्लुक़ात ज़ुरूरी हैं जाने-मन
सो दोस्ती न रख न सही दुश्मनी सही
मेरे बदन पे रात लपेटी गयी है तो
जुगनू सितारे कुछ न सही तीरगी सही
आँखें वुज़ू ही करती रहीं रो के रात भर
देखूं तो लौट आयी है क्या रौशनी सही ?
6
ये पीपल हो गया पागल ख़ुशी से
कि बगुले लौट आये नौकरी से
सफ़र पर आज भी मैं इक सदी से
गुज़रता जा रहा हूँ ख़ामुशी से
मेरे क़िरदार में है रात होना
मुहब्बत कैसे कर लूँ रौशनी से
ख़ुदा क़ुरआन की इन आयतो को
हक़ीक़त कर दे अब तो कागज़ी से
मेरे भीतर ही इतने मसअले हैं,
शिक़ायत क्या करूँ मैं ज़िंदगी से
ये सूरज डूब कर जाता कहाँ है
चलो हम पूछ लें सूरजमुखी से
तुला हूँ नींद अपनी बेचने पर,
मेरे जब ख़ाब निकले मामुली से
तबाही का वो मंज़र है अभी तक
कभी गुज़रे नहीं क्या उस गली से
मेरे इस राज़ को रखो दबा कर
कि तुमको चाहता हूँ बेरुख़ी से
सज़ा में ख़ुदकुशी बरतो मुझे अब
मैं उकताया वकीली पैरवी से
रवायत की गली वाली तुम्हारी
मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से”
-    प्रकाश अर्श
९९११०७६६५३

3 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

अर्श की गज़लों पर टिप्पणी करने जितनी अपनी तो विसात नही है इसकी गजले हमेशा मुझे हैरान कर्स्ती हैं वाह बेटा ऐसे ही लिखते रहो नाम कमाओ

निर्मला कपिला ने कहा…

अर्श की गज़लों पर टिप्पणी करने जितनी अपनी तो विसात नही है इसकी गजले हमेशा मुझे हैरान कर्स्ती हैं वाह बेटा ऐसे ही लिखते रहो नाम कमाओ

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

काफी दिनों बाद अर्श जी की गज़ले पढ़ने को मिली...उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ