मंगलवार, 7 सितंबर 2010

हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ

हरे प्रकाश उपाध्याय

जन्म: ०५ नवरी १९८१ को बैसाडीह,

जिला-भोजपुर, बिहार, में प्रकाशन:खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ (2009)

विविध: अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार

जटिल वर्तमान के लिये कुछ सरल कविताएँ


हिन्दी कविता में युवतम पीढ़ी के कवि हरे प्रकाश उपाध्याय एक सजगऔर संवेदनशील कवि हैं। उनका कविता संग्रह खिलाड़ी, दोस्त और अन्य कविताएँ बहुत चर्चित रहा है। जैसा शमशेर कहा करते थे बात बोलेगी, हरे प्रकाश उपाध्याय की कविता सीधे सीधे बोलती है। आज जब कि युवतम पीढ़ी की सोच केवल कमाने और सुविधा अर्जित करने के पीछे भाग रही है, इस कवि की सरल कविताएँ कहीं पिता की संवेदना उठाती है तो कहीं लुहार के जीवन की जटिलता और इस तरह से दिन ब दिन जटिल होते जा रहे हमारे वर्तमान को सरलता से सामने रखती हैं। तत्सम में इस बार हरे प्रकाश उपाध्याय की कुछ कविताएँ.......

- प्रदीप कांत


पिता


पिता जब बहुत बड़े हो गये
और बूढ़े
तो चीज़ें उन्हें छोटी दिखने लगीं
बहुत-बहुत छोटी

आख़िरकार पिता को
लेना पड़ा चश्मा

चश्मे से चीज़ें
उन्हें बड़ी दिखाई देनी लगीं
पर चीज़ें
जितनी थीं और
जिस रूप में
ठीक वैसा
उतना देखना चाहते थे पिता

वे बुढ़ापे में
देखना चाहते थे
हमें अपने बेटे के रूप में
बच्चों को 'बच्चे' के रूप में
जबकि हम
उनके चश्मे से 'बाप' दिखने लगे थे
और बच्चे 'सयाने'



घड़ी


दुनिया की सभी घड़ियाँ
एक-सा समय नहीं देतीं
हमारे देश में अभी कुछ बजता है
तो इंग्लैंड में कुछ
फ्रांस में कुछ
अमेरिका में कुछ....

यहाँ तक कि
एक देश के भीतर भी सभी
घड़ियों में एक-सा समय नहीं बजता
समलन हुक्मरान की कलाई पर कुछ बजता है
मज़दूर की कलाई पर कुछ
अफ़सरान की कलाई पर कुछ

मन्दिर की घड़ी में जो बजता है
ठीक-ठीक वही चर्च की घड़ी में नहीं बजता है
मस्जिद की घड़ी को मौलवी
अपने हिसाब से चलाता है
और सबसे अलग समय देती है
संसद की घड़ी

कुछ लोग अपनी घड़ी
अपनी जेब में रखते हैं
और अपना समय
अपने हिसाब से देखते हैं
पूछने पर अपनी मर्ज़ी से
कभी ग़लत
कभी सही बताते हैं।

मोहनदास करमचन्द गाँधी
अपनी घड़ी अपनी कमर में कसकर
उनके लिए लड़ते थे
जिनके पास घड़ी नहीं थी
और जब मारे गये वे
उनकी घड़ी बिगाड़ दी
उनके चेलों-चपाटों ने
कहना कठिन है अब उनकी घड़ी कहाँ है
और कौन-कौन पुर्ज़े ठीक हैं उसके

हमारी घड़ी
अकसर बिगड़ी रहती है
हमारा समय गड़बड़ चलता है
हमारे धनवान पड़ोसी के घर में
जो घड़ी है
उसे हमारी-आपकी क्या पड़ी है!


लुहार


लोहे का स्वाद भले न जानते हों
पर लोहे के बारे में
सबसे ज़्यादा जानते हैं लुहार
मसलन लुहार ही जानते हैं
कि लोहे को कब
और कैसे लाल करना चाहिए
और उन पर कितनी चोट करनी चाहिए

वे जनाते हैं
कि किस लोहे में कितना लोहा है
और कौन-सा लोहा
अच्छा रहेगा कुदाल के लिए
और कौन-सा बन्दूक की नाल के लिए
वे जानते हैं कि कितना लगता है लोहा
लगाम के लिए

वे महज़
लोहे के बारे में जानते ही नहीं
लोहे को गढ़ते-सँवारते
ख़ुद लोहे में समा जाते हैं
और इन्तज़ार करते हैं
कि कोई लोहा लोहे को काटकर
उन्हें बाहर निकालेगा
हालाँकि लोहा काटने का गुर वे ही जानते हैं
लोहे को
जब बेचता है लोहे का सौदागर
तो बिक जाते हैं लुहार
और इस भट्टी से उस भट्टी
भटकते रहते हैं!


इस बरस फिर


इस बरस फिर बारिश होगी
मगर पानी
सब बह जाएगा समुद्र में
बता रहे हैं मौसम विज्ञानी
इस बरस पौधों की जड़ सूख जाएगी
मछली के कंठ में पड़ेगा अकाल
ऐन बारिश के मौसम में

इस बरस फिर ठंड होगी
और ठिठुरेंगे फुटपाथी
महलों में वसन्त उतरेगा इस बरस फिर
जाड़े के मौसम में
बिने जाएँगे कम्बल
मगर उसे व्यापारी हाक़िम-हुक़्मरान
धनवान ओढ़ेंगे
सरकार बजट में लिख रही है यह बात

इस बरस फिर आयेगा
वसन्त
मगर तुम कोपल नहीं फोड़ पाओगे बुचानी मुहर

इस बरस फिर
लगन आयेगा बता रहे हैं पंडी जी
मगर तुम्हारी बिटिया के बिआह का संजोग नहीं है करीमन मोची
इस बरस फिर तुम जाड़े में ठिठुरोगे
गरमी में जलोगे
बरसात में बिना पानी मरोगे सराप रहे हैं मालिक
अपने आदमियों को।

बढ़ई इस बरस चीरेगा लकड़ी
लोहार लोहा पीटेगा
चमार जूता सिएगा
और पंडीजी कमाएँगे जजमनिका
बेदमन्त्र बाँचेंगे
पोथी को हिफ़ाज़त से रखेंगे
और सब कुछ हो पिछले बरस की तरह
आशीर्वाद देंगे ब्रह्मा, विष्णु, महेश....!


छायाचित्र: प्रदीप कान्त

18 टिप्‍पणियां:

राजेश उत्‍साही ने कहा…

कविताएं बहुत अच्‍छी हैं।

माधव( Madhav) ने कहा…

wonderful poems

बलराम अग्रवाल ने कहा…

इन कविताओं को पढ़कर हरेराम उपाध्याय को नि:संदेह आज के समय का महत्वपूर्ण कवि स्वीकार किया जा सकता है।

विजय गौड़ ने कहा…

yu tou sabhi kavitain achchhi hai par khastaur par pita aur ghadi bha rahi hain.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई प्रदीप जी बधाई हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ बहुत सुन्दर हैँ।गहरे भाव समेटे हैँ।

अजेय ने कहा…

बहुत अच्छी बातें कहीं गई हैं. कुछ और कविताएं पढ़वाईये.

सुशीला पुरी ने कहा…

'मन्दिर की घड़ी में जो बजता है
ठीक-ठीक वही चर्च की घड़ी में नहीं बजता है
मस्जिद की घड़ी को मौलवी
अपने हिसाब से चलाता है
और सबसे अलग समय देती है
संसद की घड़ी'
............
अपने अर्थ -विस्तार मे हरेप्रकाश जी बहुत दूर तक जा रहे हैं ...। 'पिता' कविता को लिखते हुये वे खुद जैसे पिता हो गए हों...! 'इस बरस फिर होगी बारिश ' कविता मे देशज शब्दों का प्रयोग कविता को अलग पहचान पठनीयता और सरोकार प्रदान कर रहे हैं....।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

हरे भाई को बहुत सारी शुभकामनायें और आपका आभार

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

उत्तम

Karuna Saxena ने कहा…

सभी कविताएँ बहुत अच्छी...

डॉ. ओ.पी. सिंह ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ. ओ.पी. सिंह ने कहा…

सभी कविताएं लाजवाब हैं। लुहार, घड़ी, और पिता, तीनों कविताएं जबर्दस्त तरीके से अपनी बात रख रही हैं। धूमिल का लुहार घोड़े की अहमियत में अपनी कीमत खो देता है, पर आप की कवित उसे पहचान देती है। क्या गज़ब की कविताएं हैं। बधाई।
ओ.पी. सिंह
हरिद्वार

रमेश प्रजापति ने कहा…

हरे प्रकाश की इन कविताओं में निम्नवर्ग के जीवन संघर्ष तो हैं। वर्तमान समय की नब्ज़ को उन्होंने बेहतर से पकड़कर जीवन के मर्म को अभिव्यक्त किया है। हरे प्रकाश की कविताओं की भाषा में ताज़गी है। इन बेहतरीन कविताओं के लिए हरे जी को हार्दिक बधाई

Unknown ने कहा…

इन अत्यन्त संवेदनशील और सार्थक कविताओं के लिये आपको हार्दिक बधाई उपाध्याय जी।

Triloki Mohan Purohit ने कहा…

हरे प्रकाश जी की कविताएँ प्रतीकात्मक कथ्य के साथ आगे बढती हैं। बिम्बातमकता के साथ सामाजिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराते हैं । सामाजिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराना चित्रात्मकता नहीं है अपितु आत्मबोध के लिए प्लेटफार्म देना है। जहाँ अर्थ प्राप्ति के लिए कुछ बौद्धिक प्रयास करनेऔर अपने अनुभवों को कविता के साथ समायोजित करना होता है। यही इन कविताओं की सम्प्रेषणीयता है। मैं मन से बंधाई सम्प्रेषित करता हूँ।

Triloki Mohan Purohit ने कहा…

हरे प्रकाश जी की कविताएँ प्रतीकात्मक कथ्य के साथ आगे बढती हैं। बिम्बात्मकता के साथ सामाजिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराते हैं । सामाजिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराना चित्रात्मकता नहीं है अपितु आत्मबोध के लिए प्लेटफार्म देना है। जहाँ अर्थ प्राप्ति के लिए कुछ बौद्धिक प्रयास करनेऔर अपने अनुभवों को कविता के साथ समायोजित करना होता है। यही इन कविताओं की सम्प्रेषणीयता है। मैं मन से बधाई सम्प्रेषित करता हूँ।

Triloki Mohan Purohit ने कहा…
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Akhileshwar Pandey ने कहा…

यहां प्रस्तुत कविताओं में घड़ी पुरजोर असर करती है. अनेक साधुवाद हरे प्रकाश जी को.