सोमवार, 22 नवंबर 2010

अमेय कांत की कविताएँ

अमेय कान्त

जन्म: १० मार्च १९८३, शिक्षा: एम ई (इलेक्ट्रानिक्स )

ज्ञानोदय, साक्षात्कार, परिकथा, कथाचक्र आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित


किताबें पढने, संगीत आदि में रूचि


सम्प्रति: इंजीनियरिंग कॉलेज में व्याख्याता


सम्पर्क: एल आई जी, मुखर्जी नगर

देवास-455001, (म प्र),

फोनः 07272 228097, ई मेल­: amey.kant@gmail.com


लगभग एक साल पहले तत्सम पर आपने युवतम पीढ़ी के कवि अमेय कांत की कविताएँ पढ़ी होंगी। इस बार फिर से अमेय की कुछ कविताएँ...


हालांकि इन छोटी-छोटी कविताओं का शिल्प अनगढ़ सा नजर आता है और यहाँ बहुत बड़ा वैचारिक फलक भी नहीं है किंतु भावों की गहनता कवि के सरोकारों के प्रति आश्वस्त करती है।


- प्रदीप कांत



1

माँ के सपने में


माँ के सपने में आते हैं,

रसोईघर में दूध पीती बिल्ली

पिंजरा तोड़कर भागते चूहे

चिंताओं और कष्टों से भरपूर,

एक पूरा दिन मिलने के बाद भी

माँ का मन नहीं भरता

इस तरह, सपनों में

तमाम चूहों और बिल्लियों से निपटती हुई,

गुज़ारती है वह रात

और सुबह फिर लग जाती है

पिंजरे दुरुस्त करने

और दूध गर्म करने में

00000


2

पृथ्वी की अन्तहीन वेदना


मैं पेड़ पर चिड़िया ढूँढता हूँ

और मिलती है मुझे

एक कुल्हाड़ी

मैं ढूँढता हूँ आकाश में

बादल, इंन्द्रधनुष

और वहाँ मिलता है मुझे

अंधेरे में लथपथ सूरज

मैं खुले में आकर लेना चाहता हूँ,

एक भरपूर साँस

लेकिन भर जाता हूँ जहरीले धुँए से

और पृथ्वी के किसी

बहुत अपने-से एकांत में

ठहरने की कोशिश करता हूँ

तब महसूस करता हूँ,

ठीक अपने पाँव के नीचे

पृथ्वी की अन्तहीन वेदना

00000

9 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Bahut badhiya rachanayen hain dono...khaas kar maa pe likhi rachana man ko chhoo gayi.

बलराम अग्रवाल ने कहा…

अभिव्यक्ति की सहजता को बरकरार रखती स्तरीय कविताएँ।

प्रदीप मिश्र ने कहा…

अमेय की कविताओं के लिए बधाई। अमेय बहुत ही संभावनाशील कवि हैं। जिसकों तुमने अनगढ़ कहा है, वही कवि की उपलब्धि है। अगर इस अनगढ़ता को बचा पाया तो निश्चितरूप से हिन्दी कविता को समृद्ध करेगा। अमेय को शुभकामना।

-प्रदीप मिश्र

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

very nice pradeepji badhai ameyaji ko aur aapko bhi

राजेश उत्‍साही ने कहा…

अमेय की पहले वाली और ये सब कविताएं पढ़ लीं। सही कहा आपने एक तरह का अनगढ़पन है उसकी कविताओं में। पर यह अनगढ़पन ही उसे एक संभावनाशील कवि बनाता है। उसकी कविता में हमारा समय मौजूद है। वह समय से मुठभेड़ कर रहा है,यह मुठभेड़ बहुत जरूरी है आज के युवा के लिए। आपको शुभकामनाएं और अमेय को बधाई।
*
कई बार हम अपने नजदीक के लोगों को ही नहीं पहचान पाते। वे चुपचाप अपना काम करते रहते हैं। मुझे आश्‍चर्य मिश्रित खुशी हो रही है कि क्‍योंकि अमेय मेरे साले साहब के पुत्र हैं। उनकी इस रूप से मैं परिचित ही नहीं था। प्रदीप जी आभार आपका कि आपने यह परिचय करवाया।
*
हालांकि इस बात से अमेय की मेधा पर कोई असर नहीं पड़ता कि अमेय के पिता प्रकाश कांत जाने माने कहानीकार हैं। और मां संजीवनी कांत संगीतज्ञ और कवियत्री भी। पर बधाई के हकदार तो वे भी हैं।

भगीरथ ने कहा…

मैं पेड़ पर चिड़िया ढूँढता हूँ

और मिलती है मुझे

एक कुल्हाड़ी

सदी की प्रमुख चिंता,मनुष्य के भविष्य को अंधेरों
की अनिश्चितता में ले जा चुकी है । अजहुं चेत गवांर

मनोज कुमार ने कहा…

राजेश जी की टिप्पणी के बाद कहने को कुछ रह नहीं जाता। इस प्रस्तुति के लिए आभार।

Bahadur Patel ने कहा…

bahut badhiya kavitayen.badhai.

varsha ने कहा…

donon kavitaen achchi hain