1
रेडियो की स्मृति
गुम हो गए हैं रेडियो इन दिनों
बेगम अख्तर और तलत मेहमूद की आवाज की तरह
कबाड मे पडे रेडियो का इतिहास जानकर
फैल जाती है छोटे बच्चे की आँखें
न जाने क्या सुनते रहते हैं
छोटे से डिब्बे से कान सटाए चौधरी काका
जैसे सुन रहा हो नेताजी का सन्देश
आजाद हिन्द फौज का कोई सिपाही
स्मृति मे सुनाई पडता है
पायदानों पर चढता
अमीन सयानी का बिगुल
न जाने किस तिजोरी में कैद है
देवकीनन्दन पांडे की कलदार खनक
हॉकियों पर सवार होकर
मैदान की यात्रा नही करवाते अब जसदेव सिंह
स्टूडियो में गूंजकर रह जाते हैं
फसलों के बचाव के तरीके
माइक्रोफोन को सुनाकर चला आता है कविता
अपने समय का महत्वपूर्ण कवि
सारंगी रोती रहती है अकेली
कोई नही पोंछ्ता उसके आँसू
याद आता है रेडियो
सुनसान देवालय की तरह
मुख्य मन्दिर मे प्रवेश पाना
जब सम्भव नही होता आसानी से
और तब आता है याद
जब मारा गया हो बडा आदमी
वित्त मंत्री देश का भविष्य
निश्चित करने वाले हों संसद के सामनें
परिणाम निकलने वाला हो दान किए अधिकारों की संख्या का
धुएँ के बवंडर के बीच बिछ गईं हों लाशें
फैंकी जाने वाली हो क्रिकेट के घमासान में फैसलेवाली अंतिम गेंद
और निकल जाए प्राण टेलीविजन के
सूख जाए तारों में दौडता हुआ रक्त
तब आता है याद
कबाड में पडा बैटरी से चलनेवाला
पुराना रेडियो
याद आती है जैसे वर्षों पुरानी स्मृति
जब युवा पिता
इमरती से भरा दौना लिए
दफ्तर से घर लौटते थे।
2
भूकंप के बाद कविता
भूकंप के बाद
एक और भूकंप आता है हमारे अंदर।
विश्वास की चट्टानें
बदलती है अपना स्थान
खिसकने लगती है विचारों की आंतरिक प्लेटें
मन के महासागर में उमड़ती है संवेदनाओं की सुनामी लहरें
तब होता है जन्म कविता का।
भाषा, शिल्प और शैली का
नही होता कोई विवाद
मात्राओं की संख्या
और शब्दों के वजन का कोई मापदंड
नहीं बनता बाधक
विधा के अस्तित्व पर नहीं होता कोई प्रश्नचिन्ह्
चिन्ता नहीं होती सृजन के स्वीकार की।
अनपढ़ किसान हो या गरीब मछुआरा
या फिर चमकती दुनिया का दैदीप्य सितारा
रचने लगते हैं कविता।
कविता ही है जो
मलबे पर खिलाती है फूल
बिछुड़ गये बच्चों के चेहरों पर
लौटाती है मुस्कान
बिखर जाती है नई बस्ती की हवाओं मे
सिकते हुए अन्न की खुशबू।
अंत के बाद
अंकुरण की घोषणा करतीं
पुस्तकों में नहीं
जीवन में बसती है कविताएँ।
3
क्विज
प्रतियोगिता में होने के लिये सफल
इतना मालूम होना चाहिए
कि पूरब से निकलकर सूरज डूब जाता है पश्चिम में,
किस देश की धरती पर पडती है पहली किरणें
और कहाँ होता है सबसे बाद में अंधकार।
ठीक-ठीक क्रम देना है आपको
कि कौन किसके बाद आया इस संसार में,
गाँधी, मार्क्स, लेनिन और बुद्ध को खडा करना है
एक के पीछे एक
कतई आग्रह नहीं है यहाँ कि पढा जाए इनके दर्शन को
बडी सुविधा है कि जीवनी की पुस्तकों में
सबसे पहले छपी होतीं हैं जन्म तिथियाँ।
किसने लगाया था निशाना मछली की आँख में
तेल से भरी हुई परात में देखते हुए,
पत्नी को जुए में लगाने वाले किस युवराज को कहा गया था धर्मराज,
जरूरी तो नहीं कि सीखें आप भी धनुर्विद्या
और जीत कर लाएँ कोई पदक खेल महोत्सव से,
कोई ठेका नही ले रखा प्रायोजकों ने
कि सिखाते फिरें सत्य बोलने का सबक,
दौड-दौडकर बनाई जा सकती है भले ही सेहत
लेकिन पलट सकती है जीती हुई बाजी
विस्मृत है यदि
दुनिया के सबसे तेज धावक का नाम
आपकी स्मृति से।
पुस्तकों के महासागर में गोता लगाकर
मोती निकालने की आवश्यकता नहीं है अब,
मालिक हो सकते हैं आप खजाने के
यदि बता सकेँ पुस्तक के लेखक का सही नाम,
रवीन्द्रनाथ नोबेल पुरस्कार से जाने जाते हैं,
प्रेमचंद कथाकार हैं जो हो गए अमर 'गोदान ' लिखकर
'गोदान' के मर्म को समझने का कष्ट नहीं है अब,
पुरस्कार के चेक का वजन काफी अधिक होता है
उपन्यास की आत्मा के वजन से।
घोषित हो सकते हैं विजेता
बगैर लडे कोई युद्ध,
अगर बता सके विश्वयुद्ध के खलनायकों के नाम।
किसने जाना भाप की ताकत को सबसे पहले,
किसने बनाया टेलीफोन,
किसने किया आविष्कार पहिये का
किसने देखा गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त जमीन पर गिरते सेब में
कौन भटकता रहा समुद्र की छाती पर नई दुनिया की खोज में,
किसको मिला सम्मान और कहलाया राष्ट्ररत्न
कौन बना करोडपति अपनी मेहनत से,
कोई जरूरी तो नहीं कि हम भी करें कोशिश
कर दिखाएँ कोई करिश्मा
व्यर्थ की खोज में
यूँहीं गँवा दें यह प्यारा जीवन।
जरा से खर्च में खरीदी जा सकती है कुंजी
जो करवा सकती है दुनिया भर की सैर
तोडकर लाए जा सकते हैं
आसमान के चमकते सितारे
जीतने के लिए जान लें सिर्फ इतना कि
सुनहरी चिडिया के आखेट के लिए
कौन से शिकारी और चिडिमार कब-कब आए,
क्या करेंगे जानकर कि चिडिया के आकाश में
कैसी सुहानी हवा बहा करती थी उन दिनों।
जरूरी नही कि आप भी बहाएँ पसीना
और बनाएँ कोई यादगार,
पुरस्कार पाने के लिये रखें याद केवल इतना
दुनिया के अजूबे की रचना के बाद
किस शहंशाह ने कटवा दिये थे हाथ कुशल कारीगरों के ।
कब किया गया विध्वंस आस्था की इमारतों का ,
किसने गिराई प्रलय की बारूद धरती पर
किस तारीख को जहरीली हो गई
घनी गरीब बस्तियों की हवा,
इतना ही काफी है आपकी याददाश्त के लिए
मत करिए चिन्ता
कि किस घडी में समाप्त होगा
प्रकृति और मानवता से यह खिलवाड ?
छोटी सी पगडंडी जाती है इस चमकदार नए बाजार में,
वस्तुओं की तरह जानकारियों का हो रहा है लेन-देन
ज्ञान का लेबल लगे खाली कनस्तरों के इस व्यापार में
बेच रहें हैं चतुर सौदागर अपना माल
पूरे सलीके के साथ,
एक भीड है बाजार में आँखों पर पट्टी बाँधे
जो ठगे जाने के बावजूद बजा रही है तालियाँ
बार-बार लगाताऱ !
बृजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, कनाड़िया रोड़, इन्दौर-18
मो. नं. 09893944294
(चित्र: गूगल सच से साभार)
5 टिप्पणियां:
Teeno rachanayen amoolya hain!
सुन्दर रचनायें.....
Brajeshji ki teenon hi nai kavitayen utkrisht hain, vishesh roop se RADIO wali kavita ne prabhavit kiya.
"पुस्तकों में नहीं, जीवन में बसती हैं कविताऍं !"
और जीवन में बीते हुए कल की स्मृति भी होती है, आज के समय की पहचान भी। जीवन में बसी इन तीन कविताओं के लिए ब्रजेश जी और प्रदीप कांत जी को धन्यवाद!
सुधीर साहु
रेडिओ पर कविता नोस्टैल्जिक करने वाली है.
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