नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ तत्सम में इस बार आपनी ही एक ग़ज़ल दे रहा रहा हूँ|
कहाँ हमारा हाल नया है
कहने को ही साल नया है
कहता है हर बेचने वाला
दाम पुराना माल नया है
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
इन्तज़ार है रोटी का बस
हाथ हमारे थाल नया है
लोग बेसुरे समझाते हैं
नवयुग का सुर-ताल नया है
नहीं सहेगा मार दुबारा
गाँधी जी का गाल नया है
- प्रदीप कान्त
7 टिप्पणियां:
Sundar rachana!
Naya saal bahut mubarak ho!
बहुत सार्थक गजल . बधाई.
फिर भी नए साल की शुभकामनाएं।
*
गुलमोहर में मैंने भी कुछ इस तरह के भाव व्यक्त किए हैं। देखें।
पूरी ग़ज़ल आम आदमी की हताशा को प्रकट करती है। लेकिन,
'नहीं सहेगा मार दुबारा
गाँधी जी का गाल नया है'
कहकर आपने माना कि कुछ 'नया' है। इस सकारात्मकता को नमन करते हुए--
बीत गया वो जैसा भी था
बेशक सर, ये साल नया है।
बधाई!
sahee kahaa, fir bhee mubaaraq......
sahi kaha hai...
sahi kaha hai
sahi kaha hai...
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