खलील जिब्रान |
बलराम अग्रवाल |
विश्व साहित्य में खलील जिब्रान का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं| कुछ पढ़ने के लिए भटकते हुए हिंदी समय पर पहुँचा तो उनकी लोककथाएँ मिली जिनका अनुवाद सुपरिचित लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने किया है| तत्सम पर इस बार ये लोककथाएँ हिन्दी समय से साभार...
- प्रदीप कान्त
पेड़
पेड़ आसमान में धरती द्वारा लिखी हुई कविता हैं। हम उन्हें काटकर कागज़ में
तब्दील करते हैं और अपने खालीपन को उस पर दर्ज़ करते हैं।
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अटल सत्य
महान से महान आत्मा भी दैहिक जरूरतों की अवहेलना नहीं कर सकती।
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आज़ादी
वह मुझसे बोले - "किसी गुलाम को सोते देखो तो जगाओ मत।
हो सकता है कि वह आज़ादी का सपना देख रहा हो।"
"अगर किसी गुलाम को सोते देखो तो उसे जगाओ और आज़ादी
के बारे में उसे बताओ।" मैंने कहा।
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औरत और मर्द
एक बार मैंने एक औरत का चेहरा देखा। उसमें मुझे उसकी समस्त
अजन्मी सन्तानें दिखाई दीं।
और एक औरत ने मेरे चेहरे को देखा। वह अपने जन्म से भी पहले
मर चुके मेरे सारे पुरखों को जान गई।
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प्रेमगीत
एक कवि ने एक बार एक प्रेमगीत लिखा। यह बड़ा सुन्दर था।
उसने उसकी कई प्रतियाँ तैयार कीं और अपने मित्रों व प्रशंसकों को भेज दिया। एक
प्रति उसने पर्वत के पीछे रहने वाली उस युवती को भी भेजी जिससे वह सिर्फ एक बार ही
मिला था।
एक या दो दिन के बाद उस युवती का पत्र लेकर एक आदमी उसके
पास आया। पत्र में उसने लिखा था - "मैं आपको यकीन दिला दूँ कि मुझे लिखे आपके
प्रेमगीत ने मुझे विभोर कर डाला है। आओ, मेरे माता-पिता से मिलो। हम सगाई की तैयारियाँ
करेंगे।"
कवि ने पत्र का उत्तर लिखा - "दोस्त! यह कवि के हृदय
से निकला गीत था। इसे कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री के लिए गा सकता है।"
युवती ने जवाब भेजा - "झूठ और पाखंड से भरी बातें
लिखने वाले! आज से लेकर कब्रिस्तान जाने के दिन तक मैं कभी भी किसी कवि पर यकीन
नहीं करूँगी, तुम्हारी कसम।"
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पोशाक
सुन्दरता और भद्दापन एक दिन सागर किनारे मिल गए। आपस में बोले - "चलो, नहाते हैं।"
उन्होंने कपड़े उतारे और पानी में उतर गए।
कुछ देर बाद भद्दापन किनारे पर आया। उसने सुन्दरता के कपड़े पहने और चला गया।
सुन्दरता भी सागर से बाहर आई। उसे अपने कपड़े नहीं मिले। अपने नंगेपन पर उसे
शर्म आने लगी। इसलिए उसने भद्दापन के कपड़े उठाए और पहनकर अपने रास्ते चली गई।
उसी दिन से लोग दूसरे-जैसा दिखने की गलती करते हैं।
अब, कुछ लोग हैं
जिन्होंने सुन्दरता की नकल कर ली है। वे उसकी वास्तविकता को, उसकी पोशाक के झूठ को नहीं जानते। कुछ ऐसे भी
हैं जो भद्देपन को पहचानते हैं। सुन्दर पोशाक उसको पहचानने से नहीं रोक सकती।
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(चित्र: गूगल सर्च से साभार)
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