बुधवार, 5 अप्रैल 2017

मैं सिर्फ गाना जानती हूँ - किशोरी अमोनकर

४ अप्रेल, २०१७, भारतीय शास्त्रीय संगीटी के लिया बेहद दुख भरा दिन रहा।  संगीत विदुषी किशोरी अमोनकर स्मृति शेष रहा गई, हालांकि उनकी गायकी उन्हें स्मृति अशेष बनाती है। मुम्बई से साथी शैलेश सिंह ने एक उनके लिए एक बहुत छोटा सा संस्मरण भेजा है, सोचा आपके साथ सांझा करना बेहतर हो

- प्रदीप कान्त


किशोरी अमोनकर जी को देखने का सौभाग्य अरसा पहले मिला था। दृष्टि फिल्म का प्रीमियर शो मुंबई के मराठा मंदिर में हो रहा था। एक्टिविस्ट व लेखिका कुसुम त्रिपाठी के द्वारा हम लोग आमंत्रित थे।उस प्रदर्शन में फिल्म से जुड़े सभी लोग आए थे।.जैसा कि विदित है किशोरी जी ने उस  फिल्म में संगीत दिया था।जब उन्हें मंच पर बुलाया गया तो वे बहुत ही संकोच से आईं ।ऐसा लग रहा था कि इस रंगारंग कार्यक्रम में उन्हें किसी ने बलात् खड़ा कर दिया हो।.उनका चेहरा आधा ढँका था। दूर से ऐसा लग रहा था मानो घूँघट में हो।वे शायद वहाँ उपस्थित थी हीं नहीं। जब फिल्म के निर्देशक श्री गोविन्द निहलानी ने कहा कि इस फिल्म में संगीत सुश्री किशोरी अमोनकर जी ने दिया है तो वे लाज और विनम्रता से झुक गईं उनका भौतिक शरीर लाज, संकोच और विनम्रता के मिश्रित भार से लगभग दुहारा हो गया था, मानो वे कहना चाहती हों मैं सिर्फ गाना जानती हूँ।.मेरे जीवन व शरीर का सत्व मेरा स्वर है। स्वर से परे मेरा अस्तित्व नहीं है। उस फिल्म प्रदर्श़न में उनकी छवि एक गुड़िया -सी निर्मित हुई। एक ऐसी गुड़िया जो दुनिया को एक अलौकिक स्वर से पुकारती हो।


किशोरी अमोनकर की पुकार में नदियों के जल के मंथर होने का लय था, और हवा  जो लगभग थीर हो चुकी हो और पीपर  अपनी आन्तरिक ऊर्जा से गतिमान हो कर पात को  कंपन  की गति दे,और  अमोनकर का स्वर मानो उसका अनुगमन कर रही हो। किशोरी का व्यक्तित्व शुचिता व पवित्रता का दाय था। आवाज़  के स्तरों में लौकिकता को अलौकिकता के द्वार तक खींच लाने का विनम्र सम -* था।""मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ""जैसी निर्लिप्पता व संसार से वैसी ही निस्संगता थी। स्वर के  सातो द्वार कंठ  व जिह्वा से निकलने को उद्यत हों और वे उन्हें अनुशासित व सँवार कर बाहर कर रहीं हों। उनके स्वर में उल्लास की आभा व खनक लगभग न के बराबर है। वे भक्त की आकुल विनम्र प्रार्थना अपनी पवित्रता से दुहराती रहीं। उनकी आवाज़ में करूणा का चरम लय था। वे करूणा को राग में डुबो कर और आर्द्र बना देती थीं। उनको सुनना सांसारिक भार से मुक्त होने जैसा था। वे अपने स्वर के माधुर्य से माधव व मानव का माधुर्य सहेजती, संवारती व बिखेरती रहीं ।.उनमें मीरा की तरह गहरी आध्यात्मिकता थी। वे मीरा से एकाकार होती दिखीं ऐसे परम आध्यात्मिक स्वर का ब्रह्माण्ड के विराट स्वर में विलीन होना दुख की अनुभूति से चित्त को और गहन कर देता है। किशोरी अमोनकर की स्मृति को प्रणाम।

शैलेश सिंह ,मुंबई

शैलेश भाई प्रसिद्द साहित्यिक पत्रिका चिन्तन दिशा से जुड़े हुए हैं और जनवादी लेखक संघ के सक्रिय सदसय हैं।


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