बहुत दिन हुए, अपनी कोई रचना को अपने ही ब्लॉग पर स्थान दिये। तो इस बार तत्सम पर अपना ही एक नवगीत...,
प्रदीप कांत
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उठो जमूरे
उठो जमूरे कर लें पूरे
खेल अधूरे
राजा का दरबार लगाएँ
निर्दोषों का दोष बताएँ
अन्यायी को
न्याय दिलाएँ
पूरे पूरे
भले जले ना उनके चूल्हे
भूखों से चालान वसूलें
मस्त रहें फिर
भाँग धतूरे
लोग बिजूके आज सड़क पर
कौन लड़ेगा इनके हक पर
दर्शक बहरे
हम क्यों अपना
राग बिसूरें
आभार: वेब मेग्ज़ीन अनुभूति (http://www.anubhuti hindi.org)
4 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा गीत ! नदीम साहब की याद आ गयी । गीतों पर भी ध्यान देते रहें । धन्यवाद !
--मनोरंजन
प्रदीप भाई भूल सुधार ! नईम साहब की याद आई थी ।
--मनोरंजन
बहुत उम्दा समसामयिक लिखते रहें अच्छा लिख रहें हैं
बहुत उम्दा समसामयिक लिखते रहें अच्छा लिख रहें हैं
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