ख़्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
हमसे पूछो
तत्सम पर इस बार भी अपना ही एक नवगीत...,
प्रदीप कान्त
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कैसे उबरे
ख़्वाब वक़्त ने
जिनके कुतरे
जिनके कुतरे
बन्द खिड़कियाँ
भीतें बदरंग
चुप्पी में हो जैसे जंग
बेचेहरा - वीरान गली है
आप इधर से
कैसे गुज़रे
रखे हुए
बाज़ारों में
बिकते हमी उधारों में
हुई नुमाइश या फरमाइश
उनकी मर्ज़ी
अपने मुजरे
भीतें बदरंग
चुप्पी में हो जैसे जंग
चित्र: प्रदीप कान्त |
बेचेहरा - वीरान गली है
आप इधर से
कैसे गुज़रे
रखे हुए
बाज़ारों में
बिकते हमी उधारों में
हुई नुमाइश या फरमाइश
उनकी मर्ज़ी
अपने मुजरे
आभार: वेब मेग्ज़ीन अनुभूति (http://www.anubhuti hindi.org)
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