1
दुःख की तासीर
पिछले
दो-तीन दिन से
बेटा नहीं
कर रहा सीधे मुँह बात
मुझे बहुत
याद आ रहे हैं
अपने
माता-पिता
और उनका
दुःख
देखो ना!
कितने साल लग गए मुझे
उस दुःख की
तासीर समझने में।
2
क्या हुआ तुम्हें
तुम तो नहीं
थे ऐसे नत्थू
क्या हुआ
तुम्हें
बाजार का
गणित तो
जानते ही
नहीं थे तुम
चालाकी क्या
होती है तुम्हें पता ही नहीं था
जो कहते थे
सीधे-सपाट
मुँह के सामने कहते थे
पीठ पीछे
बात करना तो तुम्हें कभी आया ही नहीं
किसी के घर
पर आने पर
कितने खुश
हो उठते थे तुम
जो भी होता
था भीतर कुछ खास
निकाल लाते
थे अतिथि सत्कार में
अपना धर्म
समझते थे इसे
तुम तो केवल
देना जानते थे
नहीं देखा
तुम्हें कभी
इस तरह
मोल-तोल करते हुए
न किसी की
जेब में हाथ डालते हुए
न गरदन
दबोचते
एक आवाज में
दौड़ पड़ते थे तुम तो
अब तो
तुम्हें आवाज सुनाई भी नहीं देती
कहाँ से सीख
लिया यह सब तुमने
तुम तो नहीं
थे ऐसे नत्थू
क्या हुआ
तुम्हें?
3
ताकि
एक मीठे
अमरूद की तरह हो तुम
जिसका
|
छया: प्रदीप कांत |
पूरा का
पूरा पेड़ उगाना चाहता हूँ
मैं अपने
भीतर
तुम फैला लो
अपनी जड़ें मेरी
एक-एक नस
में
पत्तियाँ एक-एक
अंग तक
चमकती रहें
जिनमें संवेदना की ओस
तुम्हारी
छाल का
हल्का
गुलाबीपन छा जाए मेरी आँखों में
होठों में
तुम्हारे
भीतर की लालिमा
तुम
फूलो-फलो जब
मैं फैल
जाऊॅ
तुम्हारी खुशबू
की तरह
दुनिया के
कोने-कोने तक
ताकि
तुम्हारी
तरह मीठी हो जाए सारी दुनिया।
5
खुरदुरापन
(कवि मित्र केशव तिवारी के लिए)
खुरदुरा ही
है
जो जगह देता
है किसी और को भी
पैर जमाकर
खड़ा हुआ जा सकता है केवल
खुरदुरे पर
ही
वहीं रूक
सकता पानी भी ।
खुरदुरे
पत्थर से ही
गढ़ी जा सकती
हैं सुंदर मूर्तियां ।
उसी से ही
खुजाता है कोई जानवर अपनी पीठ
|
साभार:गुगल चित्र सर्च |
खुरदुरे
रास्ते ही पहुँचाते हैं राजमार्गों तक
परिवर्तन भी
दिखता है खुरदुरे में ही
खुरदुरेपन
के गर्भ में होती हैं अनेकानेक संभावनाएं
ऊब नहीं
पैदा करता है खुरदुरापन
खुरदुरी
बातों में ही व्यक्त होता है जीवन सत्य
सच्चा प्रेम
करने वालों की बातें भी होती हैं खुरदुरी
और
बुजुर्गों की भी
खुरदुरा
चेहरा देखा है अनुभवों से भरा ।
देर तक
महसूस होता है खुरदुरे हाथों का स्पर्श
खुजली मिटती
है अच्छी तरह खुरदुरे हाथों से ही
खुरदुरे
हाथों में ही होती है शक्ति सहने की भी
खुरदुरे
हाथों में होता है स्वाद
खुरदुरे
पैरों में गति
सरसों के
फूलों से घिरे
हरे-भरे
गेहूँ के सीढ़ीदार खेतों
और दूर
पहाड़ी की चोटी में बने घर में
दिखाई देता
है सौंदर्य उनका
सिल खुरदुरा
खुरदुरे
चक्की के पाट
दाँत भी
होते हैं खुरदुरे
कद्दूकस
खुरदुरा
पहाड़ हैं
कितने खुरदुरे
खुरदुरेपन
में ही छुपी है इनकी शक्ति
रेगमाल की
खुरदुरी सतह
से रगड़ पाकर ही बनती हैं सुंदर सतहें
बावजूद इसके
सौंदर्यशास्त्र में
क्यों नहीं
बना पाया खुरदुरापन अपना कोई स्थान
कहाँ है
पेंच
किसने दिया
यह सौंदर्यबोध
कितने कवि
हैं पूरी आत्मीयता से जो कह सकते हों-
‘अपनी खुरदुरी हथेलियां
छिपाएं नहीं
इनसे
खूबसूरत इस दुनिया में कुछ भी नहीं है।’
6
संतोषम् परम् सुखम्
पहली-पहली
बार
दुनिया बढ़ी होगी
एक कदम आगे
जिसके कदमों
पर
अंसतोषी रहा
होगा वह पहला।
किसी
असंतुष्ट ने ही देखा होगा
पहली बार सुन्दर
दुनिया का सपना
पहिए का
विचार आया होगा
पहली-पहली
बार
किसी
असंतोषी के ही मन में
आग को भी
देखा होगा पहली बार गौर से
किसी
असंतोषी ने ही ।
असंतुष्टों
ने ही लाँघे पर्वत पार किए समुद्र
खोज डाली नई
दुनिया
असंतोष से
ही फूटी पहली कविता
असंतोष से
एक नया धर्म
इतिहास के
पेट में
मरोड़ उठी
होगी असंतोष के चलते ही
इतिहास की
धारा को मोड़ा
बार-बार
असंतुष्टों ने ही
उन्हीं से
गति है
उन्हीं से
उष्मा
उन्हीं से
यात्रा पृथ्वी से चाँद
और
पहिए से
जहाज तक की
असंतुष्टों
के चलते ही
सुंदर हो
पाई है यह दुनिया इतनी
असंतोष के
गर्भ से ही
पैदा हुई
संतोष करने की कुछ स्थितियाँ ।
फिर क्यों
सत्ता
घबराती है असंतुष्टों से
सबसे अधिक
क्या इसी
घबराहट का परिणाम तो नहीं
यह
नीति-वाक्य
संतोषम्
परम् सुखम् ।
7
षड़यंत्र
तुम बुनती
हो
एक स्वेटर
किसी को ठंड
से बचाने को
और
मैं रचता हूँ
एक कविता
ठंड को खत्म
करने को ।
गर्म रखना
चाहती हो तुम
और
गर्म करना
चाहता हूँ मैं भी।
कमतर ठहराता
है जो
तुम्हारे
काम को
जरूर कोई
षड़यंत्र करता है
|
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर और प्रभावशाली कविताएं....
महेश जी, अच्छी कविताओं के लिए बहुत बधाई। अच्छी कविताओं को न किसी आलोचक की जरूरत होती है और न किसी इनाम की, उन्हें तो बस एक अदद सहृदय पाठक की जरूरत होती है। यकीन करें कि आज ऐसी कविताओं की अधिक जरूरत है, जो सीधे पाठकों से मुखातिब हों। बहुत सहज और पारदर्शी कविताओं के लिए स्नेह और शुभकामनाएँ भरपूर।
गणेश पाण्डेय जी से पूर्णतः सहमत हूँ..तीन कवितायें पहले से पढी हुई थीं..सभी कवितायें पसंद आईं.. खुरदरे पन का सौंदर्यशास्त्र सामने रख कर जीवन को ही सामने रखा गया है..
बेहतरीन और पाठक की समझदारी को बढाने वाली कवितायेँ अपने सहज और ठेठ लहजे में । तत्सम पर लिखी तद्भव और देशज की कवितायेँ । बधाई ।
सत्यं शिवं सुन्दरं की अनिर्वचनीयता की अनुभूत,अद्भुत ध्वन्यात्मकाभिव्यक्ति.
क्या बात है ?
"इनसे खूबसूरत दुनिया में कुछ भी नहीं है "
हृदयस्पर्शी
सरल भाषा में सच कहने वाली कविताएँ
भौतिकविद लार्ड केल्विन ने कहा था "यदि तुम सत्य को सरल शब्दों में एक अल्पग्य को समझाने में असफल हो तो तुम उसके विषय में नहीं जानते जो तुम कह रहे हो "
आपके शब्दों और समझ में समय है
इस साम्यवाद को सलाम
साम्य है
कितने कवि हैं पूरी आत्मीयता से जो कह सकते हों-
‘अपनी खुरदुरी हथेलियां छिपाएं नहीं
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में कुछ भी नहीं है।’
बहुत खूब! आभार इतनी अच्छी कविताएं पढवाने के लिए...
कितने कवि हैं पूरी आत्मीयता से जो कह सकते हों-
‘अपनी खुरदुरी हथेलियां छिपाएं नहीं
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में कुछ भी नहीं है।’
बहुत खूब! आभार इतनी अच्छी कविताएं पढवाने के लिए...
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